वर्षों पुरानी परंपरा के तहत इंद्रदेव को प्रसन्न करने की ग्रामीण मान्यता

सूखे से जूझते रायपुरिया में बारिश के लिए निकाली गई ‘जीवित शव यात्रा

पेटलावद(जितेश विश्वकर्मा)

पेटलावद अंचल के रायपुरिया गांव में इस समय आसमान से बरसात की एक-एक बूंद का इंतजार किया जा रहा है। लगातार कई दिनों से बारिश न होने के कारण खेतों में खड़ी फसलें मुरझाने लगी हैं, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। गांव और आसपास के क्षेत्रों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। इसी कठिन परिस्थिति में मंगलवार को गांव के लोगों ने एक अनोखी और प्राचीन परंपरा का सहारा लिया—‘जीवित शव यात्रा’।

‘जीवित शव यात्रा’ की अद्भुत रस्म
दोपहर बाद इस धार्मिक आयोजन का मुख्य आकर्षण शुरू हुआ—‘जीवित शव यात्रा’। इस परंपरा के तहत एक जीवित व्यक्ति को शव की तरह सजाकर बांस की अर्थी पर लिटाया जाता है। चार ग्रामीण इस अर्थी को कंधे पर उठाकर जुलूस के रूप में लेकर चलते हैं। मंगलवार को यह यात्रा राजगढ़ रोड स्थित बिजली विभाग के ग्रिड से शुरू हुई और गांव के मुख्य मार्गों से होती हुई मुक्तिधाम तक पहुंची।

प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार

मुक्तिधाम पहुंचने के बाद ग्रामीणों ने एक प्रतीकात्मक पुतले का अंतिम संस्कार किया। मान्यता है कि इस रस्म से गांव में फैली नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और इंद्रदेव शीघ्र प्रसन्न होकर वर्षा करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और जब भी बारिश की लंबी खींच होती है, तब इसका आयोजन किया जाता है।

पूजा और उज्जैनी से शुरुआत

सुबह से ही गांव का माहौल धार्मिक और उत्साहपूर्ण बना रहा। ग्रामीणों ने गांव के मंदिर में सामूहिक पूजा-अर्चना की और उज्जैनी का आयोजन किया। महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनकर मंगल गीत गा रही थीं, तो पुरुष व बच्चे भी श्रद्धा से अनुष्ठान में शामिल हुए। ग्रामीण मान्यता है कि सामूहिक पूजा और धार्मिक आयोजन से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है, जिससे वर्षा देवता प्रसन्न होते हैं।

पूरे गांव की सहभागिता

इस आयोजन में गांव के सभी वर्गों के लोग शामिल हुए। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए जुलूस में चल रही थीं, बच्चे ढोलक और मंजीरे बजा रहे थे, वहीं बुजुर्ग इस परंपरा के महत्व और इतिहास को नई पीढ़ी को बता रहे थे। पूरे मार्ग में ढोल-ताशों की गूंज, भजन-कीर्तन और जयकारों से धार्मिक माहौल बना रहा।

मान्यता और विश्वास

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व में भी जब-जब यह ‘जीवित शव यात्रा’ निकाली गई है, उसके कुछ दिनों बाद अच्छी बारिश हुई है। उनका मानना है कि यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गांव की एकजुटता और सामूहिक विश्वास का प्रतीक है। इस रस्म में हर व्यक्ति की भागीदारी से सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं और सभी में एक साथ कठिन समय का सामना करने की भावना विकसित होती है।

बारिश की आस

जुलूस और अनुष्ठान समाप्त होने के बाद ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से प्रार्थना की कि जल्द ही वर्षा हो और खेतों में हरियाली लौट आए। किसानों का कहना है कि समय पर बारिश होने से फसलें बच सकती हैं, अन्यथा नुकसान बड़ा हो सकता है।

रायपुरिया की यह ‘जीवित शव यात्रा’ केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी लोगों के अटूट विश्वास, धैर्य और सामूहिक शक्ति का जीवंत उदाहरण है। यह आयोजन दिखाता है कि कठिन समय में भी उम्मीद और आस्था का दीप जलाए रखना कितना जरूरी है।

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