ज्ञानी कहते है कि शरीर की राख होने से पहले कर्मो को राख कर लेना। परायो की फिक्र करने में अनंत काल निकल गए


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प्रसिद्धि में पड़ने से सिद्धि दूर हो गयी, प्रदर्शन में पड़ गए इसलिए आत्म दर्शन से दूर हो गए -
परम् पूज्य श्री गुलाबमुनिजी म.सा.

जीवन का उद्धार करना है तो इच्छा रहित देव, मूर्छा रहित गुरु और हिंसा रहित धर्म से जुड़ना पड़ेगा।

जीव सम्यक बोध के आभव में अनंत काल से भटक रहा है। 
संसार की भटकन को रोकना है तो क्या करना ? 
सभा से जवाब आया धर्म, सामायिक, प्रतिक्रमण। 
गुरूदेव फरमाते है कि इन सबके पहले दो बातो पर विचार करना है। 
1- जो व्यक्ति अपनो की बाते सुन लेता है 
2- जो व्यक्ति अपनो के कटु वचन सहन कर लेता है ऐसे व्यक्तियों का संसार भ्रमण बहुत सीमित हो जाता है।
 
उक्त विचार प्रकांड पंडित पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी म.सा. ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में 4 सितंबर 2022 को व्यक्त किये उनके प्रवचन से लिए गए अंश   

गुरुदेव पूछते है कि अपने कौन ? अपना किसे मानना ? तो ज्ञानी भगवंत  बताते है कि सपने मत सँजोओ सपने टूट जाते है और अपने मत बनाओ क्योंकि अपने छूट जाते है।

जब तक संसार के समस्त जीवों को अपना नही मानोगे और उन्हें अपने हृदय में स्थान नही दोगे तब तक संसार से मुक्ति नही मिल पाएगी। 
तेरा मेरा कहकर जो झगड़ा करे व करावे वो संसारी और "तेरा मेरा भटकाने वाला है" यह समझाने वाला सन्यासी। अरे भाई कौन तेरा कौन मेरा, ये संसार तो है एक रेन बसेरा। 
मनुष्य भव बड़ी दुर्लभता से मिला है तो इसका सदुपयोग कर लो क्योकि नारकी, देवता व तिर्यंच के जीव संसार परिभ्रमण नही रोक सकते है मात्र 15 कर्म भूमि के मनुष्य ही धर्म को समझकर संसार के परिभ्रमण को समाप्त कर सकते है।
 
ज्ञानी कहते है कि शरीर की राख होने से पहले कर्मो को राख कर लेना। परायो की फिक्र करने में अनंत काल निकल गए है अब स्वयं की फिक्र करना। 
संसारी जीव हमेशा फिक्र, टेंशन और चिंता में रहता है यहां तक बुड्ढे होने के बाद भी आशा खत्म नही होती और ज्योतिष, बाबा- बाबियो, तांत्रिक- मंत्रिको के पास भटकता रहता है अरे भाई कही जाने की जरूरत नही है क्योंकि जो बोकर आये हो उसे काटना ही पड़ेगा, स्वयं के लक्खण खुद देखो और उसमें सुधार करो। 
बुड्ढे होने के बाद आशा नही आस्था करना और वो भी किसमे - अहिंसा, सयंम, तप और  धर्म में। और शाश्वत धर्म से जुड़ोगे तो तीर जाओगे और व्यक्ति से जुड़ोगे तो वो शाश्वत नही है न ही केवलज्ञानी इसलिते वो तुम्हे डूबा देगा।
णमोकार मन्त्र में किसी का नाम नही है वह अनंत काल से ऐसे ही चला आ रहा है। उसमें किसी का नाम नही है इसलिए अनंत तीर्थंकर हो गए फिर भी यह टीका हुआ है,यह शाश्वत मन्त्र है। धर्म समझ में आ जाये तो धर्म से जुड़ जाना। 

अरिहंतों मह देवो - सुसाहूणों गुरुणो। यानी अरिहंत ही मेरे देव (भगवान) है सद्गुणों वाले मेरे गुरु। गुरु उपकारी होते है उनके अनंत उपकार होते है। 
गुरु - मानना है, बनाना नही है। जीवन का उद्धार करना है तो इच्छा रहित देव, मूर्छा रहित गुरु और हिंसा रहित धर्म से जुड़ना पड़ेगा।

 प्रवचन के मुख्य अंश -
@- व्यक्ति को थोड़ी सी प्रतिकूलता मिलती है कि उसका मनजी भाई (मन) डांस शुरू कर देता है और नए टेंडर भर देता है।

@- प्रसिद्धि में पड़ने से सिद्धि दूर हो गयी, प्रदर्शन में पड़ गए इसलिए आत्म दर्शन से दूर हो गए।

@- जिसने पहला गुणस्थान छोड़ दिया वास्तव में वही धन्यवाद के पात्र है बाकी सब तो आनंद मंगल है।

@- जिनको पड़ोसी व परायो की बात अच्छी व अपनो की बात खारी (बुरी) लगती है उनके घर मे आग लगे बिना रहती नही है।

@- महापरिग्रही अंडरग्राउंड ही जाता है फिर चाहे वो संसारी हो या साधु।

@- धर्म में QUANTITY की जरूरत नही है, QUALITY बनाओ। धर्म स्वयं की आत्मशुद्धि के लिए करना है लोगो को दिखाने के लिए नही।

उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र  परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
करही, 4 सितंबर 22
संकलंकर्ता:-
✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110


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