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जैन धर्म के ये शाश्वत सिद्धांत है, यदि व्यक्ति को इन चार बातों पर श्रद्धा हो जाये तो वो सम्यक को प्राप्त कर लेगा व संसार के भव भ्रमण समाप्त कर लेगा और नही तो मिथ्यात्व के अंधेरे में भटक कर दुखी हो जाएगा-
परम् पूज्य श्री गुलाबमुनिजी म.सा.
जीव सम्यक बोध के आभव में अनंत काल से भटक रहा है। सवाल है बोध कितना प्राप्त करना ? मैं स्वयं कर्म का कर्ता हूँ और स्वयं ही कर्म का भोक्ता हूँ साथ ही स्वयं के कर्मो का विकर्ता (नष्ट करने वाला ) भी स्वयं ही हूँ। व्यक्ति को जब यह समझ मे आ जाये तो वह किसी को भी दोष नही देगा।
उक्त विचार प्रकांड पंडित पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी म.सा. ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में 23 अगस्त 2022 को व्यक्त किये उनके प्रवचन से लिए गए अंश
गुरूदेव ने फरमाया की जब तुम्हारा पुण्य उदय में है तो संसार की कोई ताकत तुम्हारा बाल बांका कर नही सकती और यदि तुम्हारा पाप उदय में है तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हे बचा नही सकती।
कोई बाबा-बाबी, तांत्रिक- मांत्रिक या कोई देवी ताकत में इतनी शक्ति नही है कि वो तुम्हारे कर्म बदल सके, ये सब दुकानदारी है। स्वयं पर विश्वास रखो। जो पहले करके आये हो वो अभी भुगत रहे हो और जो अभी करोगे तो अगले भव में मिलेगा, सीधी सी बात है। जो बोया- वो पाया- फिर क्यो रोया। इसलिए अभी पाप कर्मों से बचने की कोशिश करना क्योकि पाप किसी का सगा नही होता और पुण्य किसी को दगा नही देता, यह विश्वास होना ही चाहिए। पाप कौन से ? तो जो व्यवहार आपको पसंद नही है वही तो पाप है। मारने वाला अच्छा या बचाने वाला। जवाब- बचाने वाला अच्छा, तो मारना (हिंसा) ही पाप है। ऐसे जो सच्चा - झूठा, सदाचारी - दुराचारी, क्रोधी - सरल, चोरी करने वाला - चोरी नही करने वाला,, इनमे झूठा, दुराचारी, क्रोधी, चोरी करने वाला अच्छा नही है ना,, यही तो पाप है।
घमंड, मान, छल कपट सब पाप है, ये पाप करके कदाचित संसार से बच सकते हो लेकिन जब टेण्डर खुलेगा तो कर्म सत्ता एक एक पाई का हिसाब लेगी।
जैसे रुई में लगी हुई आग को छुपाया व दबाया नही जा सकता वैसे ही पाप छिप नही सकता। संसार की नजरों से बच गए तो कर्मसत्ता की ED तुम्हे कही से भी ढूंढ ही लेगी, उससे नही बच सकते।
जैन धर्म के ये शाश्वत सिद्धांत है, यदि व्यक्ति को इन चार बातों पर श्रद्धा हो जाये तो वो सम्यक को प्राप्त कर लेगा व संसार के भव भ्रमण समाप्त कर लेगा और नही तो मिथ्यात्व के अंधेरे में भटक कर दुखी हो जाएगा-
1,, स्वयं कर्म का कर्ता हूँ और स्वयं ही कर्म का भोक्ता हूँ साथ ही स्वयं के कर्मो का विकर्ता (नष्ट करने वाला ) भी स्वयं ही हूँ।
2,, जब तुम्हारा पुण्य उदय में है तो संसार की कोई ताकत तुम्हारा बाल बांका कर नही सकती और यदि तुम्हारा पाप उदय में है तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हे बचा नही सकती।
3,, पाप किसी का सगा होता नही और पुण्य कभी किसी को दगा देता नही।
4,, जो अपना है वो कही जाएगा नही और जो अपना नही है वह रहेगा नही।
क्योकि संयोग है तो वियोग होगा ही, टेंडर भरा है तो खुलेगा ही और स्टेशन आया तो उतरना ही है।
गुरुदेव फरमाते है कि तीन ग्रह जीवन मे टेंशन, तनाव को लाते है जैसा कल बताया था। हठाग्रह, पूर्वाग्रह, कदाग्रह।
हटाग्रह यानी जिद, हठाग्रह करना यानी भविष्य में टेंशन बुलाना है। यदि स्वयं का पुण्य नही है तो कोई भी हठ कर लो कुछ भी मिलने वाला नही है फिर क्यो टेंशन लेते हो, जो मिला है उसी में खुश रहो। तन ढकने को कपड़ा, तन टिकाने को भोजन और सुरक्षा के लिए मकान है तो क्यो और किसका लालच करना। करोड़ो, अरबो भी हो गए तो यही छोड़ के जाना पड़ेगा लेकिन उसको पाने में जो पाप किया वो तुम्हारे साथ जाएगा। जिद के कारण आशक्ति हो जाती है, क्यो जिद करना? किसी ने तुम्हारी नही सुनी तो इतना क्रोध क्यो ? विचार करना, लोग जब भगवान की नही सुनते तो तुम कौन ? तुम्हारा पुण्य कमजोर है तो तुम्हारी कोई नही सुनेगा। अपने जीवन मे जब कमतर घटना घटे तो सावधान हो जाना, यानी तुम्हारा पुण्य घट रहा है।
पूर्वाग्रह यानी व्यक्ति विशेष के प्रति स्थाई विचारधारा बनाना गलत है। इतिहास के कथानक भरे पड़े है कि दुर्जन बाद में सज्जन हुआ है, दुराचारी बाद में सदाचारी, कपटी बाद में सरल व क्रोधी बाद में शांति वाला बना है। जो वस्तु आज अच्छी नही लगती वो कल प्रिय हो सकती है।
पूर्वाग्रह से टेंशन आता है और भविष्य बिगाड़ देता है।
पूर्वाग्रह वात्सल्य का संथारा करवा देता है। जीवन मे हर किसी के प्रति अपनत्व रखे बिना मोक्ष का रिजर्वेशन नही होगा।
कदाग्रह के कारण जीव संसार मे भटक रहा है क्योंकि जीव के आचार बिगड़ने के कारण एक भव बिगड़ेगा लेकिन यदि विचार बिगड़ गए तो कई भवो को खराब कर देगा ।नए कर्म मत बांधो, ऐसा व्यवहार, वचन मत करो जो खुद को पसंद नही। जिनवाणी के भाव समझ कर जो भव्य जीव उसे समझेगा जीवन मे उतरेगा तो उसका यहाँ भी कल्याण और आगे भी कल्याण।


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