मध्य प्रदेश के भील जनजाती का भगोरिया उत्सव में
आदिवासी लोक परम्परा में होली के दुसरे दिन धुलेंडी पर अंचल में कई स्थानों पर गल चुल मेले का आयोजन हुआ
जितेश विश्वकर्मा की रिपोर्ट
पेटलावद. होली के दुसरे दिन धुलेंडी पर अंचल में कई स्थानों पर गल चुल मेले का आयोजन हुआ। आस्था से जुड़े इस महोत्सव में शामिल होने हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन पहुँचे। मान्यता है कि आदिवासी अंचलों में ग्रामीण लोग अपने परिवार में कोई विपत्ति आ जाती है तो वह गल बाबजी एवं चुल माता की मन्नत ले लेते हैं। और उनकी मन्नत पूरी होने पर वह उतारने के लिए बीस फिट ऊंचे मचान पर एक गीले बांस की लम्बी लकड़ी पर उस पर मन्नत धारी व्यक्ति को उल्टा लटका कर उसे घुमाया जाता है।
मन्नत धारी आठ दिनों तक नंगे पैर रहता है और आठ दिन जहां जहां भगोरिया हाट रहता हे वहा पर जाते हैं। मन्नत धारी शरीर पर हल्दी लगाकर लाल रंग का कपड़ा धारण करता है। आंखों मे काजल लगाकर मन्नत धारी व्यक्ति स्वयं अपने हाथों से खाना बनाकर खाते है। यहा तक कि वे किसी के हाथों से पानी भी नहीं पीते है। वही चुल माता जिन्हे हिंगलाज माता कहते है। चुल पांच फिट लम्बी होती है, जहां पर लकड़ी के अंगारों को रखे जाते है। इन दहकते अंगारों पर मन्नत धारी चलते हैं। रायपुरिया में लगभग चालीस वर्ष से गल चुल मेला का आयोजन घोडथल के ग्रामीण करते है। सरपंच प्रतिनिधि नन्दलाल निनामा ने भी गल में घुम कर गांव की सुख शांति समृद्धि की कामना की।
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