व्यक्ति को सारी विशेषता (धनबल, शरीरबल, बुद्धि बल, सत्ताबल) पूण्य उदय से ही मिलती है और ये सब अस्थाई होती है
पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी म.सा.
नाना प्रकार की योनियों में जीव विभिन्न दुख सहन करते हुए आ रहा है उसका ज्यादा समय दुख में गुजरा है और अधिकांश जीव तिर्यंच योनि में ही रहा है जहाँ पर अधिकांश दुख ही मिला है। अनंत पूण्य उदय हुआ और मनुष्य जन्म मिला। अकाम निर्जरा से शक्ति और साधन मिल जाते है।
जीव को प्राप्त शक्तियों में यदि परमार्थ जुड़ जाता है वह अमृतकुण्ड बन जाता है और यदि स्वार्थ जुड़ जाता है तो वह विषकुण्ड बन जाता है।
गुरुदेव ने फरमाया की जीवन मे यदि स्वार्थी बनोगे तो दुर्गति मिलेगी लेकिन यदि परमार्थ किया तो जरूर सदगति प्राप्त होगी।
व्यक्ति को सारी विशेषता (धनबल, शरीरबल, बुद्धि बल, सत्ताबल) पूण्य उदय से ही मिलती है और ये सब अस्थाई होती है पूण्य क्षीण होने पर ये सब चली जाती है इसलिए जब ये मिले तो परमार्थ के काम कर ही लेना, नही तो दुखो का अंत नही हो पायेगा। जब तुम्हारे पाप का उदय होगा तो कोई देवीशक्ति, भौतिक शक्ति, बौद्धिक शक्ति, बाबा- बाबी, तांत्रिक- मांत्रिक काम नहीं आएगा संसार की कोई ताकत तुम्हे बचा नही पाएगी और यदि पूण्य उदय है तो कोई शक्ति की जरूरत ही नही पड़ेगी सब अच्छा ही अच्छा होगा।
ब्रह्मदत्त चक्रवती जिनकी सेवा में 25 हजार देवी देवता थे लेकिन जब उनका पूण्य घटा और पाप कर्म उदय में आये तो एक 10 साल के बालक ने गुलेल से उनकी दोनों आंखे फोड़ दी। इतने देवी देवता होने के बाद भी उन्हें बचा नही पाए क्योकि उनका टेंडर खुल गया था। और टेंडर खुलने के बाद ही व्यक्ति सब दूर से थक हार कर देव गुरु धर्म की शरण मे आता है।
जीव सोचता है कि मैंने उसकी सहायता की, मैने उसकी मदद की, नही रे! भले आदमी तूने उसकी नही स्वयं की मदद की है। तूने जिसको बचाया है अगले भव में उससे तुझे भी जीवन दान मिलेगा।
दुसरो को बचाना यानी स्वयं का सहयोग करना होता है। छः काया जीवो की रक्षा करने से उनको शांति मिलेगी और वो भी तुमको शांति प्रदान करेंगे।
बाजरी का एक दाना खेत मे बोते हो तो उससे सैकड़ो दाने प्राप्त होते है ऐसे ही किसी की सहायता, मदद व रक्षा करने से तुम्हे उसका कई गुना लाभ मिलेगा क्योकि जो समेटा जा रहा है वो सपना है और जो लुटाया जा रहा है वो ही अपना है। कर्म से मिली हर चीज टेम्परेरी होती है इसलिए यदि तुम्हे किसी भी तरह की शक्ति मिले तो उसे परमार्थ में लगाना।
पूज्य गुरुदेव ने दो दिन से चल रहे विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा कि तनाव के दो कारण असहकार व अस्वीकार होते है।
तनाव में रहने वाले व्यक्ति का तीसरा लक्षण बताया कि उसकी स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। उसका मन एकाग्र नही रहता टेंशन में जरूरी आवश्यक चीजे भी भूल जाता है। श्रीमती जी ने खाने में नमक यदि डबल डाल दिया तो श्रीमान जी नाराज नही होना चाहिए, ढक्कन नही खोलना चाहिए बल्कि ये सोचना चाहिए कि आज श्रीमती जी जरूर टेंशन में है इसलिए भुल हो गयी। उसे स्नेह व प्रेम से पूछना चाहिए ताकि श्रीमती जी स्नेहभाव में आकर वो बात बता सके जिससे उसे टेंशन आया है। क्योंकि कोई जीव अज्ञात या मामूली टेंशन में आ जाता है फिर अंदर के अंदर घुटता रहता है और ये उसे मृत्यु शैय्या तक ले जाता है। समझ के आभव में जीव भविष्य की टेंशन ले लेता है और उसमें घुटता रहता है वर्तमान में यह बड़ी समस्या है। टेंशन पालने से कर्म कटेंगे तो नही उल्टे नए कर्मो का बन्ध होगा जिससे दुख घटेंगे नही बढ़ेंगे। हर काम मे सीधा देखो, मामूली बातों में आकर जीवन खराब कर लेते है। टेंशन की कोई दवाई नही आती, प्रेम व स्नेह से ही टेंशन को दूर किया जा सकता है। किसी के साथ कोई भी घटना बिना कारण के नही घटती है वह भूतकाल में हुए उसके साथ जो ऋणानुबंध कर के आये वो हिसाब बराबर हो रहे है। सरकार तुम्हारे से मुनाफे में टेक्स लेती है नुकसान में भरपाई करती ? नही ना, ऐसे ही कोई तुम्हारी चुगली करे, बुराई करे या आरोप लगाए तो यह समझना कि तुम्हारी यश, कीर्ती और नाम का टेक्स दे रहे हो। व्यक्ति कई बार ऐसी बात बोल देता है जो बोलना नही चाहता फिर भी टेंशन में बोल देता है बाद में पछताता है कि मुझे ऐसा नही बोलना था। तो भाई तू भी शांति रख, धैर्य रख, उसके बोलने के पीछे क्या कारण है समझ, विषम परिस्थिति में तपेली (दिमाग) गरम मत करो, समभाव रखो तो यहाँ भी आनंद और वहा भी आनंद।
उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
करही, 18 अगस्त 22
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