जो स्वयं पर अनुकम्पा नहीं कर सकता, वो दुसरो पर भी अनुकम्पा नहीं कर सकता है


रक्षा बंधन का मतलब सिर्फ सोने, चांदी, रेशम या सूती धागा बांधना और लिफाफा प्रदान करना नहीं,  बहन को मौके पर जब आपकी आवश्यकता हो तब उसकी मदद व रक्षा करना ही वास्तविक रक्षा बंधन है - 

परम् पूज्य श्री गुलाबमुनिजी म.सा.


जीव पिछले अनंत काल से संसार में चारों गतियों में भटक रहा है। वास्तव में जीव भूल जाता है और अहम का पोषण कर लेता है और यही अहम तो संसार में भटकाव का एक कारण है। 
हमने पिछले भवो में खूब धर्म आराधना की लेकिन आत्म शुद्धि की कमी के कारण अभी तक अपने परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सके। 
गुरुदेव ने फरमाया की बादल में पानी और वृक्ष में फल आने से झुक जाते है और मानव को सत्ताबल, धनबल, बुद्धि बल मिल जाये तो अकड़ जाता है। 
संपत्ति रूपी अग्नि, स्नेह व प्रेम के धीर को सोख लेती है जब थोड़ी विशेषता आते ही व्यक्ति को अहंकार आ जाता है। अरे भाई छोड़ दे ये अहंकार, अहम क्योकि लक्ष्मी आती तो घुंघरू बांध कर के है लेकिन कब लात मार कर के चली जाएगी मालूम भी नहीं पड़ेगा। 

व्यक्ति अहम के शिकार के कारण ही ज्यादा दुखी होता है। ध्यान रखना पैसे प्राप्त करके छोटो को मत भूलना, पद प्राप्त करके अपनों को मत भूलना और प्रतिष्ठा प्राप्त करके मित्रों को कभी मत भूलना। 
आज आप लोग रक्षा बंधन मनाएंगे ! 
किसकी रक्षा करना ?  छः काय जीवो की रक्षा करना, प्रथ्वीकाय, अप्पकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय जीवो की रक्षा करना। हर सूक्ष्म जीव की रक्षा करना। रक्षा हर उस जीव की करना जो बेचारा हो, जिसका कोई नहीं हो, उन समस्त जीवों की रक्षा करना ही वास्तविक धर्म है। 

जो स्वयं पर अनुकम्पा नहीं कर सकता, वो दुसरो पर भी अनुकम्पा नहीं कर सकता है। 
यदि कोई भूखा है तुम उसको भोजन दे रहे हो तो यह उस पर नहीं खुद पर अनुकम्पा  कर रहे हैं। क्योंकि उसे भूखा देख कर तुम्हारे मन में दया करुणा आई कि अरे बेचारा भूखा है उसे भोजन दे देता हूं अतः स्वयं का दुःख दूर करने का मन हुआ खुद पर अनुकम्पा की है, इसलिए उसे देने का मन हुआ। यह खुद के मन को शांत करने की क्रिया है। बस यही बात समझना कि हम किसी और पर नही स्वयं पर उपकार कर रहे है तभी तो जीव का कल्याण होगा। तभी तो ये अहम् और मैंपना दूर होगा। इस मैं को निकले बिना जीवन का उत्थान होने वाला नहीं है। जहाँ प्रेम होता है वहाँ स्वार्थ नहीं होता, प्रेम वस्तु नहीं मन देखता है, प्रेम हमेशा बिना शर्त के समर्पण से होता है। 

रक्षा बंधन का मतलब सिर्फ सोने, चांदी, रेशम या सूती धागा बांधना और लिफाफा प्रदान करना नहीं जबकि बहन को विपरीत व विकट परिस्थितियों में  जब आपकी आवश्यकता हो तब उसकी मदद व रक्षा करना ही वास्तविक रक्षा बंधन है।  
एक बहन भाई को कहती है कि हे भाई मेरा किसी से घर्षण न हो, यदि हो तो उस समय मेरी ढाल बनना। मौका पड़ने पर की गई मदद, सहाय व ढाल बनना ही सच्चा रक्षाबंधन है। 
भारत में कभी भी त्योहार व व्यवहार खत्म नहीं होते है और लोग अधिकांश समय, शक्ति और संपत्ति इसमे बर्बाद कर रहे है यदि ये बन्द हो जाये तो भारत दुनिया का नम्बर 1 देश बन जायगा। वृद्धजनों, अपंगजनों और अनाथजनों जिनकी नीचे धरती व उपर आकाश के अलावा कोई नही, इनकी सेवा करने से, सहाय करने से उनका नहीं तुम्हारा ही लाभ होने वाला है, वो मांगने नहीं तुम्हें तिराने आये है। वो तुम्हारा अगला भव सुधारने आये है। घर पर मांगने आने वाले का कभी तिरस्कार और अपमान मत करना क्योकि उससे उसका तो कुछ भी बिगड़ेगा नहीं, तुम अपना टेंडर भर लोगे। जरूरतमंद की मदद जरूर करना और सद्कर्मो को अदृश्य रखो तो वो ज्यादा फलीभूत होते है । बुद्धिमान और साहसी व्यक्ति ही रक्षा का संकल्प लेता है।

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उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र  परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
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संकलंकर्ता:-
✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110

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