जो शुद्ध भाव से अहिंसा, संयम और तप को ग्रहण करे, निर्मल भाव से पालन करे उसी का धर्म है


धर्म को मानना नही-धर्म को जानना है, धर्म अंधविश्वास नही-धर्म को अनुभव करने का है, धर्म किसी का हाथ पकड़कर चलने का नही-अपने भीतर आत्मा की शक्ति को जाग्रत करना ही धर्म है -
परम् पूज्य श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब

संसार मे रहकर जीव तरह तरह के सुख का अनुभव करता है लेकिन धर्म के बिना जीव को शांति, समाधि मिलने वाली नहीं है। 
संसार मे नए नए अविष्कार, शस्त्र और भौतिक सुविधाएं आ गयी  है लेकिन उन साधनों से जीव को शांति नहीं मिलेगी, शांति तो धर्म से ही मिलेगी। 
गुरुदेव फरमाते है कि धर्म को मानना नही-धर्म को जानना है, धर्म अंधविश्वास नही-धर्म को अनुभव करने का है, धर्म किसी का हाथ पकड़कर चलने का नही-अपने भीतर आत्मा की शक्ति को जाग्रत करना ही धर्म है। 
आज प्रायः धर्म मे धर्मान्धता और जड़ता घुस चुकी है। धर्म से मैत्री भाव, अपनत्व का भाव दूर हो रहा है, अराजकता फैल रही है। 

व्यक्तिपूजा, जड़पूजा के नाम पर समय, शक्ति और संस्कृति बर्बाद हो रही है क्योंकि धर्म में आडम्बर बढ़ गया है। 
धर्म दिखावे कि नहीं अनुभव करने का है। धर्म आंगन जैसा नहीं आकाश जैसा है, आंगन में व्यक्तिगत अधिकार होता है, आकाश सबका होता है। इसी तरह धर्म पर किसी का अधिकार नहीं होता। धर्म किसी एक की बपौती नहीं है, जो शुद्ध भाव से अहिंसा, संयम और तप को ग्रहण करे, निर्मल भाव से पालन करे उसी का धर्म है। 
धर्म के नाम पर खाना पीना, मौज करना यह धर्म नहीं है ये सब आडम्बर है और ये कर्म बन्ध के कारण है। 
धर्म के नाम पर- रिश्ता टूटे, समाज टूटे, राष्ट्र टूटे वह धर्म नहीं, धर्म के नाम पर ढोंग है। टूटे हुए दो दिलो को जोड़ने का नाम है धर्म। 
दुकानदारी के नाम पर, स्वार्थ के नाम पर धर्म में हिंसा, लड़ाई ये सब दिखावा है जीव के पतन का कारण है। 
मारने से धर्म नहीं होता, बचाने से धर्म होता है । धर्म के नाम पर लड़ जाएगें, मर जाएंगे लेकिन धर्म के लिए जियेंगे नही, यह अराजकता फैली हुई है। 
जीव यदि व्यक्ति पूजा,  जड़ पूजा से ऊपर होकर आत्मबल को मजबूत करके सच्ची धर्म आराधना करे तो मोक्ष सम्भव है। संसार के समस्त जीवों को अपने हृदय में स्थान दे देना, ये मेरा दुश्मन है ये विरोधी है ये सब विचार डूबने के धंधे है, ये अंडरग्राउंड ले जाएगा।
 
धर्म किसी की बपौती नहीं होती है कोई भी जाति कुल का व्यक्ति अहिंसा, संयम व तप का निर्मल भाव से पालन कर सकता है। 
शास्त्रों में वर्णन आता है कि ब्राह्मण कुल से कपिल केवली, वैश्य कुल से चित्त मुनि, क्षत्रिय कुल से नमिराज ऋषि और शूद्र कुल से हरी केशिबल ने धर्म को स्वीकार कर (अपनाकर) अपनी आत्मा का उत्थान किया। ये हमारा धर्म है, नही किसी का ठेका है। 
अहिंसा, संयम व तप की कोई साधक उत्कृष्ट साधना करे तो स्वयं देवता भी उन संयमी की सेवा करते है और लोग उल्टे देवता को मनाने में लगे हुए हैं। धर्म की समझ के आभाव में जीव अनंत काल से भटक रहा है। 
यदि जीव इन तीन बातों को आत्मसात कर ले तो ग्यारंटी है कि आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो जाएगा, वो तीन बातें है, सभी जीवों के प्रति- 
1- जुबान में मिठास हो, 
2-आंखों में स्नेह हो, 
3- ह्रदय में मैत्री भाव हो। 
चण्डकौशिक सर्प के जीव को जब मनुष्य भव मिला था तब उन्होंने वेश परिवर्तन किया (मुनि बने) लेकिन भाव परिवर्तन नहीं किया तो तिर्यंच योनि मिली और तिर्यंच भव (सर्प) में भगवान के उपदेश से भाव बदले, भगवान से संथारा लिया तो उसका भव सुधर गया। आप लोग भी बोलते हो कि हम भगवान महावीर के अनुयायी है, अनुयायी याने अनुसरण करने वाला तो भगवान के बताए मार्ग पर चलोगे तो आत्मा को इसी भव में भी शांति व समाधि मिलेगी व अगला भव भी तीर जाएगा।

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उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र  परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
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संकलंकर्ता:-
✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110

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