अगर परिस्थिति बदलने की स्थिति न हो तो मनोस्थिति बदल लो, उसी समय शांति मिल जाएगी: परम् पूज्य श्री गुलाबमुनिजी म.सा.
जीव जो वस्तु रहने वाली नही है उसमें सुख की अनुभूति करने लगता है।
पानी पीने के बाद हर प्यासे की प्यास बुझ जाती है लेकिन पैसा (धन) मिलने के बाद जीव की तृष्णा बढ़ जाती है कैसे लक्खण है तुम्हारे पानी से प्यास बुझ जाती है लेकिन धन से जीव की कभी तृप्ति नही होती।
उक्त विचार संयम सुमेरु पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब द्वारा करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में व्यक्त किये गए। गुरुदेव फरमाते है कि आत्मा की आधारशिला सद् गुणों का सुवास है। सद् गुण के बिना आत्मा का उद्धार नही हो सकता है।
आत्मा के चार गुण है क्षमा, विनय, सरलता और संतोष, ऐसे ही आत्मा के चार दोष है क्रोध, मान, माया, लोभ। जीव दुख से ज्यादा परेशान होता है या दोष से ? दुख इतना दुखदायी नही होता जितना दोष दुखदायी है। दुख तो इसी भव में रहेगा व खत्म भी हो जाता है लेकिन दोष भव भव तक चलता है और और ये कई भव बिगाड़ देता है।
यदि जीवन मे दुख आये तो दोष को दूर कर लेना दुख अपने आप दूर हो जाएंगे।
संसार मे दुख को पैदा करने वाला और कोई नही ये क्रोध, मान, माया और लोभ ही है।
अगर परिस्थिति बदलने की स्थिति न हो तो मनोस्थिति बदल लो, उसी समय शांति मिल जाएगी।
मनस्थिति कैसे बदलना ? दुख आये तो सिर्फ ये ही सोचना की ये सब मेरे कर्मो का ही फल है। मैने जरूर पिछले भव में किसी को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या परिवारिक दुख दिए होंगे तभी तो मुझे ये दुख आये है।
जीवन मे जब भी दुख आये तो समझशक्ति, सहनशक्ति और संयमशक्ति को हमेशा बड़ा लेना ये ही दुखो को नष्ट करेगी। अब बताओ यदि तुम्हे दो दिन के लिए बाहर जाना हो तो कितने दिन तैयारी में लगाते हो, सभा से जवाब मिला चार दिन तो गुरूदेव फरमाते है कि जन्म हुआ तो मृत्यु निश्चित है तो उसकी क्या तैय्यारी की, कुछ नही। पिछले भव में किसी को साता पहुँचा के आये हो किसी को सहयोग करके सेवा करके आये हो तो इस भव में तुम्हे भी साता रहेगी, सहयोग मिलेगा।
विज्ञान ने वर्तमान में खूब तरक्की की राजस्थान जैसी सुखी धरती को भी गिला बना दिया और इस विज्ञान ने गीले हृदय को सुखा बना दिया।
परिवार में साथ मे रहते है एक दूसरे के प्रति विश्वास व संवेदना कितनी ? अपनत्व कितना ? जड़ के लिए चेतन से संबंध मत बिगाड़ो।
सपूत किसे कहते है - जिसने पिता से नही बल्कि खुद के दम पर अर्जन व सृजन किया हो उसके बाद भी पिता को उपकारी मानता हो वह सपूत है।
पाप कर्म का उदय हो तो बुद्धि भी काम करना बंद कर देती है।
जीव को लगता है कि जीवन मे जब सब 'सेट' हो गया है तभी एक ऐसा प्रसंग आता है कि जीव पुनः 'अपसेट' हो जाता है।
मनस्थिति बदल कर के यह सोच लो कि मेरा कोई विरोधी, दुश्मन, अपराधी नही है यदि यह सोच लिया तो एक जीव के प्रति भी द्वेष नही आएगा और शांति समाधि चाहिए तो ये करना ही पड़ेगा। किसी को दुखी करोगे नही तो खुद भी दुखी नही होगे।
उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
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