समझदारी के बिना जीवन मे उत्तमता नहीं आती है



चिंता से मुक्त, घबराहट से मुक्त और भय से मुक्त ये तीन बातें जीव को उत्तम बनाती है: पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी म.सा.

चिंता से मुक्त, घबराहट से मुक्त और भय से मुक्त यें तीन बातें जीव को उत्तम बनाती है। चिंता से मुक्त कौन होगा जिसके पास समझ है, घबराहट से मुक्त कौन होगा जिसके पास समझदारी है और भय से मुक्त कौन होगा जिसके पास बहादुरी है। 
पूज्य गुरुदेव ने फरमाया की जो भूतकाल को रोता नहीं, भविष्य से डरता नहीं वो कभी पीछे गिरता नहीं। 
भय कब तक है जब तक अपने ऊपर मलिकी है, स्वयं मालिक बनो, मोक्ष की राह चलो भय गायब हो जाएगा। तिरस्कार, अपमान, बदनामी ये सब किसकी होती है, ये सब कर्म की होती है।  
बुराई या तारीफ मात्र जड़ की होती है चेतन की नहीं। जीव को स्वयं समझना होगा वरना समय तो समझा ही देगा। 
दो बातें है समझदारी व जानकारी। अब टीवी मोबाइल और  गूगल में जानकारी तो है लेकिन समझदारी नही है, वह किसके पास है, तुम्हारे पास। समझदारी के बिना जीवन मे उत्तमता नहीं आती है। 
वर्तमान में जीव ने यदि सिर्फ ये समझदारी रख ली कि जैसे मेरे कर्म है वैसा ही होगा, इसमें किसी का भी कोई दोष नाम मात्र का नहीं है, यदि इतनी समझदारी आ गयी तो तुम्हारा भव निश्चित ही सुधर जाएगा। 
संसार कर्म का नाटक है और कुछ नहीं, जैसे टीवी सीरियल में नकली पात्र होते है वैसे जीवन में तुम असली पात्र हो। 
जब तुम बाजार में सब्जी लेने जाते हो तो कैसी सब्जी लेते हो अच्छी की खराब, अच्छी ना। और सब्जीवाला खराब सब्जी दे तो तुम उस पर नाराज हो जाते हो कि ऐ भाई अच्छी सब्जी दे। जब तुम किसी से खराब सब्जी नहीं लेते हो क्योकि वो स्वास्थ के लिए हानिकारक है तो फिर तुम दुसरो की खराब बातें (गाली, दुर्वचन, अपशब्द) क्यों लेते हो ? यह आत्मा के लिए हानिकारक है। खराब वचन किसी के ग्रहण ही नहीं करोगे तो माथे की तपेली ही गर्म नहीं होगी। 
भौकने वाला कुत्ता काटता नहीं और काटने वाला भौकता नही, ऐसे ही बकने वाले को बकने दो और अपना काम धकने दो। 
सती अंजना का दृष्टांत देते हुए पू. गुरुदेव ने फरमाया कि गर्भावस्था में जंगल में रहते हुए भी सती अंजना ने समझ को नहीं छोड़ा, समझदारी को नहीं छोड़ा और बहादुरी को नहीं छोड़ा तो आए हुए कष्टों को समभाव से पार कर लिया यह उत्तम आत्मा की निशानी है। इसके पूर्व पूज्य श्री कैलाशमुनिजी महाराज साहब ने फरमाया की क्रोध एक विषधर सर्प जैसा होता है वो ऐसा डसता है कि व्यक्ति बेभान हो जाता है। क्रोध में व्यक्ति का विनाश है जबकि क्षमा में विकास है,  क्रोध में विध्वंस है जबकि क्षमा में सृजन है। क्रोध को जुबान का सहारा मिल जाता है तो रामायण की जगह महाभारत होती है।  
क्रोध रूपी अग्नि के पांच दुर्गुण बताए: 
1 सद् गुणों को जला देती है।
2 प्रेम जो समाप्त कर देती है। 
3 संबंधों को कटु बना देती है।
4 शांति को खंडित कर देती है।
5 सद् गति को बंद कर देती है।

उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र  परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार

संकलंकर्ता:-
✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

". "div"