मन का रोगी तन का रोगी बन जाता है

 4 जून 


जब दुख आते हैं तो समझना कर्मो का कर्ज दूर हो रहा है। यदि आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान किया तो टेंडर भर जाएगा

उक्त प्रवचन शासन प्रभावक, प्रखर वक्ता जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने धर्मसभा में फरमाया 

भगवान महावीर ने भव्य जीवो के कल्याण कामना का मार्ग बताया है। दूसरों के द्वारा कष्ट सहन करके कर्म दूर करने से अच्छा है स्वयं संयम तप के द्वारा कर्मो को दूर करें कर्मो की निर्जरा करे। 

सुख आते हैं अच्छा लगता है, दुख आते हैं बुरा लगता है। बैंक से पैसा उठाते किस्त भरनी पड़ती है। कर्ज चुकाना पड़ता है। इसी प्रकार जब दुख आते हैं तो समझना कर्मो का कर्ज दूर हो रहा है। यदि आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान किया तो टेंडर भर जाएगा। 

पंचम आरा है दुखम आरा है दुख आने वाला ही है। सुख में मस्त हुआ, नया पुण्य उपार्जन नही किया तो दुख भोगने के लिए तैयार रहना। मात्र सुख का उपभोग ना करते हुए उसका सदुपयोग करें। 

किसान खेत में अच्छे से अच्छे बीज बोता है ताकि फसल अच्छी हो और हमें भी फसल तो अच्छी से अच्छी चाहिए लेकिन हमने बीज कैसा बोया। समय बीता जा रहा है बुढ़ापा आ जाता है लेकिन धर्म आराधना करने का मन नहीं होता। चांदी को लोहा बना लेते हैं बुढ़ापे को छुपाने की कोशिश करते हैं। स्वयं को ही छल रहे हैं। 

भगवान महावीर ने बताया नयसार के भव में श्रावक बना चक्रवर्ती बना वासुदेव बना मरीचि के भव में संयम अंगीकार किया लेकिन शरीर की आसक्ति नहीं छुटी शक्ति का सदुपयोग नहीं किया विचित्र स्थितियां बनी। कर्मो  का भुगतान करना पड़ा।

मन का रोगी तन का रोगी बन जाता है। बुराई चुगली आरोप गाली गलौज हल्के शब्द आदि के द्वारा मानसिक दुख आते हैं। मन मे बदले की भावना रखी तो निश्चित ही वो जीव बदला लेने आएगा। बिना कारण से कोई कार्य घटित नहीं होता। दूसरों के दोष त्रुटि को उजागर किया तो वे दोष इस भव में नहीं तो अगले भव में अपने आप निश्चित आ जाएंगे। यदि आंखें टेढ़ी की तो टेढ़ा बनना पड़ेगा। अनुकूल हमें स्वयं को बनना है सामने वाले को नहीं बनाना है।

शारीरिक कष्ट सहन करने से जो निर्जरा नहीं होती उससे कहीं अधिक गुना मानसिक कष्ट सहन करने से होती है। कब कैसा दुख आएगा कुछ नहीं कहा जा सकता। जड़ और चेतन मात्र दो ही पुद्गल है। जड़ की आसक्ति दूर करो और जीव की अप्रीति दूर करो। ज्ञानियों ने बताया है मोक्ष निश्चित है। जरा से प्रतिकूल व्यवहार से जीव तीलमिला जाता है। सामने वाले का दोष नहीं है वह तो मात्र रिप्लाई कर रहा है।  दोष तो तुम्हारे स्वयं के कर्मों का है।

जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏

संकलंकर्ता:- डा. निधि जैन - 9425373110




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