मन में ठान लिया तो कुछ भी असंभव नहीं

 5 June

भगवान महावीर ने अपने अनुभव से बताया जीव अनंत काल से चार गति में परिभ्रमण कर रहा है।

उक्त प्रवचन शासन प्रभावक, प्रखर वक्ता जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने धर्मसभा में फरमाया 

भगवान महावीर ने अपने अनुभव से बताया  जीव अनंत काल से चार गति में परिभ्रमण कर रहा है। संसार में सुख की बजाय दुख का प्रमाण बहुत ज्यादा है। सुख अल्पकालीन है, दुख दीर्घकालीन है।

भगवान स्वयं नयसार के भव में सुतार थे। जंगल में मंगल हुआ। सुपात्र दान दिया। जिनवाणी श्रवण की। जिनवाणी को ग्रहण किया  श्रावकपना स्वीकार किया। भाव पूर्वक आराधना की। प्रथम देवलोक में उत्पन्न हुए।

कर्म बँधने के बाद उदय आने में गेप (gape) होता है। अंतर होता है। तुरंत उदय में नही आते। यह अंतर है धर्म आराधना का। अनंत कर्मो की निर्जरा का। लेकिन भव्य आत्मा तू क्या कर रहा है। योग मिल गया मनुष्य भव का, संयोग मिला संयमी आत्माओं का लेकिन उपयोग कितना किया ?

संसार में अनंत जीव भागमभाग कर रहे हैं। होड़ा होड़ी देखा देखी में लगे हैं।

आपके पास अभी भी समय है यदि बहाने बाजी की तो कर्म सत्ता छोड़ने वाली नही। छक्के छूट जायेंगे। सब कुछ अनुकूल मिला है मौसम के अनुसार। पूर्व के बैलेंस का उपयोग कर रहे हैं। पूर्व की धर्म आराधना के फल स्वरूप सारी सुविधाएं मिली है। अनुकूलताए मिली है। 

पूर्व में खाने को दिया तो खाने को मिला। किसी को स्थान दिया तो रहने को मकान मिला। किसी का तन ढका तो तन ढकने को कपड़े मिले। लेकिन यदि बोया ही नही तो पाएगा क्या। पुण्य की साधन सामग्री मिलते ही पुण्य समाप्त हो जाता है। 

साधन स्वार्थी बनाने के लिए होते हैं। काल के अनुसार स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन, सुखी परिवार सब कुछ मिला। कर्म सत्ता ने चांस दिया है। शक्ति है काया का सदुपयोग कर लो। तप त्याग वैयावच्च द्वारा। परवशता से पहले पुण्य का उपयोग कर लो। बीच के समय का, अंतर का लाभ उठा लो। कर्म सत्ता ने सुअवसर दिया है।

देवता सुख में लीन, नारकी दुख में लीन, तिर्यंच पराधीन केवल मनुष्य ही स्वाधीन।   समय मिला पूर्व के कर्मों को दूर करने का, समय शक्ति के सदुपयोग का, शक्ति भी सदा रहने वाली नही है। एक दिन लोग ले जायेंगे कांधे बदल बदल कर। चार ड्राइवर एक सवारी उसके पीछे दुनिया सारी। संसार के व्यवहार कई प्रकार की शिक्षाएं देते हैं। इसलिए उपयोग करे, परिवर्तन करे, दूध के जैसा पानी जैसा नही। पानी तो बर्फ बनकर फिर पानी हो जाएगा। लेकिन दूध का दही जमने पर फिर से दूध नही बनेगा।

मन में ठान लिया तो कुछ भी असंभव नहीं।   श्रेष्ठ स्थान की तुझे प्राप्ति हुई है। अनुत्तर विमान से भी श्रेष्ठ। सर्वार्थ सिद्ध से मोक्ष नजदीक है लेकिन फिर भी वहां से जा नहीं सकते। आना यहीं पड़ेगा। जिस प्रकार पढ़ने वाले बच्चे 18 घंटे पढ़ाई करते हैं मात्र पास होने के लिए नहीं, अच्छे नंबर लाने के लिए। हमने अपना नंबर लगाया कि नहीं ?

जिनवाणी कितनी  याद रखी ?                          स्वार्थ पूर्ति के लिए संसार के व्यवहार में आप हमेशा पहला स्थान चाहते हैं। किंतु ज्ञानियों की दृष्टि में पहला स्थान देने की भावना बनी या नहीं ? संभवत नहीं। यदि बनी होती तो लक्खण सुधारने में देर नहीं करते।

जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏

संकलंकर्ता:- डा. निधि जैन - 9425373110

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