पाप को पाप ही समझना आवश्यक है
जीव प्रायः पाप को पाप के रूप में समझता ही नहीं है
उक्त विचार प्रखर वक्ता, परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनिजी महाराज साहब ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में व्यक्त किये।
पाप को पाप ही समझना आवश्यक है। जीव प्रायः पाप को पाप के रूप में समझता ही नहीं है। और स्वयं के पापों को आवश्यकता, जरूरत, व्यवहारिकता आदि का बाना पहना कर पाप करता है। चोरी को चोरी ही समझना उसमें सीनाजोरी मत करना। तो बात हमारी चल रही थी कषायों की।
जब तक जीव कषाय चक्र से मुक्त नहीं होगा और धर्म चक्र की शरण में नहीं आएगा तब तक उसका कल्याण नहीं हो सकता।
मुझे कुछ रखना ही नहीं है तो लोभ क्यों करूं। लोभ होता ही क्यों है ?
मुझे यह चाहिए, वह चाहिए। ये आकांक्षाएं अभिलाषाएं इच्छाएं लोभ का रूप है।
तीन कारण से जीव ने शांति का बलिदान दे दिया है।
नंबर 1 अप्राप्त को प्राप्त करने की इच्छा- जो चीज प्राप्त नहीं है उसे प्राप्त करने की इच्छा रखना ही लोभ है। फलाने व्यक्ति के पास सुख सुविधा के इतने साधन है इतना पैसा है बंगला फर्नीचर आदि है महंगा मोबाइल आदि है तो मुझे भी वैसा प्राप्त करना कहने को तो यह हमें सामान्य व्यवहारिकता का बाना लगता है किंतु वास्तविकता यह है कि यह लोभ है।
अरे भाई जो है उसमें संतोष करो और चाहिए और चाहिए में रहे तो लोभ के शिकार बन जाओगे। और लोभ ही है जो कषायों की शुरुआत करवाता है।
महाराष्ट्र की घटना है 2009 की। एक अरबपति सेठ जी बड़ा ज्वेलर्स का शोरूम था। उनकी लड़की 1000000 की ज्वेलरी लेकर के एक मुसलमान लड़के के साथ भाग गई। परिवार बड़ा ही प्रतिष्ठित था। जैसे तैसे उन्होंने लड़की को समझा कर के डिवोर्स करवाया और अपने घर ले आए।
संबंधों का तलाक तो करवाया किंतु मोबाइल का तलाक नहीं करवाया। परिणाम यह निकला कि कुछ ही समय बाद वह लड़की 20 लाख के आभूषण लेकर के उस लड़के के साथ भाग गई। हम तब वहीं पर ही थे। सेठ जी आए मेरे पास बोलने लगे गुरुदेव ऐसा ऐसा हो गया है। कैसी कपूत लड़की निकली जो इस प्रकार विश्वासघात किया आदि कहने लगे। मैंने कहा देखो अब उस लड़की को दोष मत दो। हो सकता है उस लड़की के जीव का पैसा आपने कभी हड़पा हो या उसे मानसिक अशांति पहुंचाई हो जिसके कारण इस लड़की ने ऐसा कदम उठाया। और इसमें गलती तो आपकी भी है आपने संबंधों का तलाक तो करवा दिया किंतु मोबाइल का नहीं करवाया।
पूज्य गुरुदेव ने सभा में पूछते हुए कहा कि आज कितने पेरेंट्स ऐसे हैं जो अपने बच्चों के मोबाइल चेक करते है।
एक बार मैंने यह घटना सुनाई तो एक अनुभवी श्रावक जी ने मुझे अपनी आपबीती सुनाई। गुरुदेव मेरी बच्ची भी शहर में पढ़ने की जीद करने लगी। मेरा मन तो नहीं था किंतु उसका बहुत आग्रह होने से मैंने उसे शहर में पढ़ने के लिए भेजा किंतु साथ ही एक व्यक्ति को गोपनीय तरीके से उस लड़की पर निगाह रखने के लिए रख दिया। वह लड़की की हर प्रवृत्ति की जानकारी देता था। एक बार लड़की ने किसी लड़के से बात की और फिर उसके कॉल को डिलीट कर दिया उस व्यक्ति की ओर से मुझे सूचना मिल गई थी कि इतने इतने बचकर इतने मिनट पर किसी से बात की है। मैंने बेटी से पूछा तो पहले तो वह झूठ बोल गई। फिर बाद में जब मैंने प्रमाण देते हुए पूछा तो उसकी नजर नीचे हो गई। पापा माफ कर दो अब दोबारा ऐसी गलती कभी नहीं होगी। और अब मैं पूरे मन से पढ़ाई करूंगी। बाद में वह लड़की अच्छी संस्कारी पढ़ी लिखी बहू बनकर के संस्कारी कुल में गई।
हां तो मैं कह रहा था कि सेठ जी को मैंने समझाया उस लड़की के बारे में आप खोटे विचार मत करो यदि आपको शांति से रहना हो तो। ये समझो कि अपना कर्ज देना बाकि था। सेठ जी ने स्वीकार किया।
लोभ के वशीभूत होकर के उस लड़की ने मां-बाप के साथ भी गद्दारी कर दी। और अप्राप्त को प्राप्त करने की चाह में कुल संस्कार धर्म किसी की भी परवाह नहीं की।
उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
संकलंकर्ता:-✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110
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