कर्मों को समाप्त करने के 3 उपाय एवं आत्मसमर्पण क्या है

 प्रवचन, 3/5/23


प्रभु महावीर ने हमें प्रतिपल सावधान रहने को और कर्म बंध से दूर रहने को कहा है

उक्त बात प्रवचन प्रभावक, प्रखर वक्ता तपस्वीराज परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने बुरहानपुर धर्मसभा में  फरमाया कि  

प्रभु महावीर ने हमें प्रतिपल सावधान रहने को कहा है, कर्म बंध से दूर रहने को कहा है। हमारी इच्छाएं अनंत है पुण्य शक्ति सीमित है और कार्य शक्ति उससे भी अधिक सीमित है। 

पुण्य उदय से सुनने के लिए हमें 24 घंटे कान मिले हैं लेकिन हम 24 घंटे तेज आवाज में संगीत नहीं सुन सकते यदि सुनेंगे तो सिर दुखने लगेगा या कानपुर में हड़ताल हो जाएगी।  आपको देखने के लिए आंखें मिली है किंतु यदि आप चौबीसों घंटे उससे टीवी मोबाइल देखते रहेंगे तो अंधत्व आ जाएगा या आंखें दुखने लगेगी। 

अर्थात पुण्य उदय से पांचों इंद्रियां तो 24 घंटे के लिए मिली है किंतु हम चौबीसों घंटे उन इंद्रियों का उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि कार्य शक्ति सीमित है। इसी तरह पांचों इंद्रियों को भी समझना चाहिए। 

कर्मों को समाप्त करने के 3 उपाय है -  प्रतिक्रमण, तप या भोगना। प्रतिक्रमण क्या है हमारी भूल को स्वीकार करना हमने यदि हमारी भूल को स्वीकार कर लिया तो हमारे कर्म वहीं समाप्त हो जाएंगे, उदाहरण के तौर पर हम फूलन देवी को देखते हैं। आज से 32 वर्ष पूर्व फूलन देवी जो की एक डकैत थी उसके नाम उसका इतना दबदबा था कि उसके नाम से लोग डरते थे, पुलिस तो क्या सेना भी पकड़ने में असमर्थ थी। उस समय में उन पर 500000 का इनाम था। 

वह डाकू क्यों बनी क्योंकि उसके साथ एक साथ 14 लोगों ने रेप किया था और उसका बदला लेने के लिए वह 14 लोगों से अकेली नहीं लड़ पाई असमर्थ थी और उनसे बदला लेने के लिए वह डकैत बनी। उन्होंने एक साथ उन 14 लोगों को खड़ा करके बंदूक से शूट कर दिया था। 

उस समय उनका इतना आतंक था कि उस रास्ते से रात में कोई जाता भी नहीं था कि कहीं उनसे सामना ना हो जाए। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें समझ आई कि ऐसा भी क्या जीवन हे कि दिन भर पुलिस से डरकर भागना, छिपना पड़े और जान को खतरा हो। ऐसे जीवन से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने आत्मसमर्पण किया। 

आत्मसमर्पण क्या है अपनी भूल को स्वीकार करना। आत्मसमर्पण करने से अपनी भूल को स्वीकार करने से उन पर जो दोष लगे थे वह भी कम हो गए उनकी सजा भी कम हो गई और सरकार उनकी सुरक्षा करने लग गई। ऐसे ही हमने यदि अपनी भूलों को स्वीकार कर लिया तो हमारे कर्म वहीं समाप्त हो जाएंगे और जिनशासन हमारी रक्षा करेगा। और फूलन देवी के पुण्य  प्रबल थे कि उन्होंने अपनी सजा काट के वें आगे सांसद बने ऐसे ही हम भी अपनी भूलों को स्वीकार करके अपने कर्मों को यहीं काट सकते हैं और सिद्धत्व प्राप्त कर सकते हैं। 

कर्म दो प्रकार के हैं

निकाचित और अनिकाचित 

अनिकाचित कर्म हम वहीं के वहीं तुरंत काट सकते हैं यदि वे लंबी स्थिति के न बंधे हो तो उसी भव में भी काट सकते हैं। और जो निकाचित कर्म है वें बहुत आशक्ति के कारण बंधते है। जिन्हें हमने जिस रूप में बांधा हो उसी रूप में भोगना पड़ता है और जिस अंग से बांधा उसी अंग से भोगना पड़ता है।

जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏🙏🙏

संकलंकर्ता: - लता जैन बुरहानपुर

डा. निधि जैन - 9425373110


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

". "div"