4/5/23 प्रवचन, बुरहानपुर
प्रभु महावीर ने अपने अनुभव से अपने ज्ञान से हमें बोध दिया और उस पर चलने का मार्ग बताया
उक्त बात प्रवचन प्रभावक, प्रखर वक्ता तपस्वीराज परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने आनंदा भवन बुरहानपुर धर्मसभा में फरमाया कि
प्रभु महावीर ने अपने अनुभव से अपने ज्ञान से हमें बोध दिया और उस पर चलने का मार्ग बताया।
वर्तमान में सांप्रदायिक संकीर्णता बढ़ती ही जा रही है। कोई भी संत सती जी कहे कि हमारे गुरु बहुत अच्छे हैं आप उनको अपना गुरु बना लो तो मान लो कि वे उनके एजेंट है। अढ़ाई द्वीप 15 क्षेत्र में रहे हुए समस्त साधु जघन्य 2000 करोड़ और उत्कृष्ट 9000 करोड़ साधु साध्वी हमारे गुरु है।
भगवान ने यह कभी नहीं कहा कि तुम मुझे मानो। देव हमारे अरिहंत हैं। अरिहंतो महादेवो अर्थात अरिहंत ही मेरे देव है वहां पर भगवान ने अपना नाम नहीं डाला और ना ही गणधरो ने अपने गुरु का नाम डाला। इसी तरह केवली भगवान द्वारा प्ररूपित दयामय धर्म ही सुधर्म है।
जो कोई भी साधु के वेष में अपने अपने गुरु की गुरु - धारणा का प्रचार, आग्रह आदि करते हैं तो समझना चाहिए कि वें किसी कंपनी के एजेंट है। किसी की इस तरह की बातों में नहीं उलझना है। यदि कोई संत - सती जी इस तरह की बात कहें तो आप विनय के साथ निवेदन करें कि आप तो जिनवाणी फरमाइए।
वितभय नगरी के राजा उदायन थे। जिन्होंने प्रभु महावीर की वाणी सुनी और उस पर आस्था होने पर,श्रद्धा होने पर उन्होंने श्रावक व्रत ग्रहण किए। श्रावक को रात्रि के अंतिम प्रहर में धर्म जागरणा करनी चाहिए। वैसे ही उदायन राजा भी अंतिम प्रहर में धर्म जागरण कर रहे थे और उनको विचार आया कि मैं व्यर्थ में ही समय व्यतीत कर रहा हूं मुझे अब संयम ले लेना चाहिए। उन्होंने यह चिंतन किया कि मैं यदि पुत्र को राज्य भार सौपता हूं तो वह भोग विलास में और राज्य के लालच में फंस जाएगा तो दुर्गति को प्राप्त होगा। उसमें इतनी योग्यता नहीं है कि वह भोग विलास से निवृत्त हो सके। इसलिए मुझे अपने भांजे को राजगद्दी दे देनी चाहिए। और उन्होंने सुबह राज्यसभा में अपने भांजे को राज गद्दी दे दी और संयम अंगीकार कर लिया। किंतु यह बात पुत्र को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। पुत्र अभिची कुमार पिता का द्वैषी बन गया उसने गांठ बांध ली कि मेरे पिता मेरे हितैषी नहीं हैं। वह अभय कुमार के पास चला गया उसने वहाँ 12 व्रत अंगीकार किए। श्रावक बना अंतिम समय में संथारा सल्लेखना भी की। सभी जीवो को खमाया। किंतु एक जीव को छोड़कर वह कौन स्वयं के पिता जो कि सिद्ध बन गए थे। सिद्ध बनी हुई आत्मा को भी न खमाने से वें विराधक बने और भवनपति जाति के देव बने। जो आत्मा आराधना करके वैमानिक देव बन सकती थी वह केवल एक जीव को न खमाने से विराधक बन गई। क्योंकि उनके प्रति उसे द्वेष हो गया था और उसने गांठ बांध ली थी। अभीची कुमार ने अपने पिता को छोड़कर सभी को खमत खामना की और मृत्यु को प्राप्त हो गया अपनी दुर्गति कर ली।
इसलिए हे मानव किसी से भी गांठ मत बांध। हर जीव जीना चाहता है हर जीव से खमतखामना करो। जिस से भी द्वेष हुआ है जिससे भी तेरा राग है सभी से खमतखामना करके विराधक बनने से बचना चाहिए। जिसने वैर की गांठ बांध ली उसने अपनी दुर्गति कर ली। और जिसने गांठ नहीं बांधी सभी से क्षमा याचना कर ली उसकी सदगती होगी।
जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏🙏🙏
संकलंकर्ता: - लता जैन बुरहानपुर
डा. निधि जैन - 9425373110


0 टिप्पणियाँ