मानव भव भवों का अंत करने के लिए मिला है ना कि पोषण करने के लिए

6.4.23

मानव भव भवो का अंत करने के लिए मिला है

निर्भय प्रखर प्रवक्ता, प्रवचन प्रभावक, जन जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने धर्मसभा में फरमाई

मानव भव भवो का अंत करने के लिए मिला है अज्ञानता के कारण जीव संसार में दुखी होता है ज्ञान हो जाता तो दुखी नहीं होता। भगवान ने अपने अनुभव से बताया कि जीवन में दुख और सुख दोनों आते हैं। उनके जीवन में भी अनेक दुख आए परंतु उन्होंने अपने दुखों को दुख नहीं माना क्योंकि उनको ज्ञान था कि इसका कारण मैं स्वयं ही हूं मेरे ही कर्मों का फल है।

मानव भव भवों का अंत करने के लिए मिला है ना कि पोषण करने के लिए

एक को अपना माना एक को पराया माना। राग द्वेष इन सबके लिए यह जीवन नहीं मिला है। मैं संसार में मानव बना हूं कितना प्रबल पुण्य होगा असंख्य देव जिनकी गिनती करना मुश्किल है। एक हजार टन खसखस के दाने उनको भी गिना जा सकता है उससे भी अधिक गुना देव तिर्यंच गति में चले गए परंतु मानव जीवन में इतने नहीं जा सकते यहां कम जीवो को ही स्थान प्राप्त होता है। मानव भव मिला जिनवाणी सुनने को, जिनवाणी के बिना उत्थान नहीं होगा। अगर एक वचन भी लग जाता है तो नरक के द्वार बंद हो जाते हैं। अवसर्पिणी काल के साथ जीवन परिवर्तन होता जा रहा है आयुष कम हो रही है, वह तो पूर्व में जो भी जीव को साता पहुंचा कर अभय दान देकर सुपात्र दान देकर आया है वही जीव लंबी आयु लेकर आया है। 

बुद्धि कम होती जा रही है, याद रखना जो तुम्हारे पास पुण्यवानी हैं वह पापनुबंधी पुण्य है, कद कम होते जा रहा है। बल कम हो रहा है। यह काल का प्रभाव है पूर्वजों के पास जो पुण्य था वह शांति का संतोष का पुण्य था आजकल के घरों मे इन मिन तीन यह बनाना यह करना। वनस्पतियों का कलर फूलों की सुगंध कम होते जा रही है। वर्ण गंध रस स्वाद यह सभी कम होते जा रहा है। हमकों मानव भव मिला अनंत अनंत पुण्यवाणी का उदय है। यह भवों का अंत करने के लिए मिला है। जहां तेरा मेरा कम होगा भव भ्रमण कम होते जाएगे। जब तक सभी आत्माओं को अपना नहीं मानेंगे मोक्ष में एडमिशन नहीं मिलेगा भले ही साधु साध्वी बन जाए। सभी जीवो को अपना मानना है ऐसी करुणा सभी के प्रति आएगी तो ही मोक्ष में एडमिशन मिलेगा। कब कौन से कर्म उदय में आ जाए कोई भरोसा नहीं कोई दुख आए तो सोचना मैं स्वयं इस दुख का कारण हूं। शारीरिक और मानसिक दुख वेदनिय कर्म के उदय से आते हैं। पारिवारिक दुख मोहनीय कर्म के उदय से आते हैं आर्थिक दुख अंतराय कर्म के उदय से आते हैं। ऐसा कोई भी दुख आने से मानव परेशान हो जाता है टेंडर खुला तो आएगा ही पर तुम शांति और धैर्य बनाए रखो चला जाएगा। भगवान को तो साढ़े बारह वर्ष तक कष्ट सहन करने पड़े अपना तो कुछ नहीं है। 

याद रखना कभी-कभी इसी भव के कर्म इसी भव में सामने आ जाते हैं 

हर एक जीव के पास स्वयं की बुद्धि और उसका पुण्य स्वतंत्र होता है। दुनिया की कोई ताकत नहीं कोई शक्ति नहीं कि उससे उसकी बुद्धि और पुण्य छीन ले। जहां साधु संत को किसी ने देखा नहीं वहां भी उनका काम हो जाता है उनके पुण्य से। 

जब भी तुम्हारा दिमाग उल्टा चले नवकार मंत्र लोगस्स गिनो इससे मन शुद्ध होगा और कर्म बंध नहीं होंगे और मन को शांति मिलेगी। 

धर्मात्मा का तिरस्कार अपमान आत्मा को पतन के मार्ग पर ले जाता है। व्यक्ति को काम मिल जाए तो वह दाम के पीछे जाता है दाम मिल जाए तो नाम के पीछे जाता है। अज्ञानता के कारण इनके पीछे दौड़ता है। मेरा है तो जाएगा नहीं और नहीं है तो आएगा नहीं। 

चार ड्राइवर एक सवारी पीछे रहती दुनिया सारी। सोने से पहले स्वयं से दो प्रश्न अवश्य पूछने चाहिए मैं किसके लिए कर रहा हूं और क्यों कर रहा हूं एक दिन आत्मा इसका उत्तर दे देगी। मीठी जबान खुले हाथ सारा जहान अपने साथ। 

जिनवाणी सुनो जिनवाणी सुनने से कोई घाटा नहीं होगा। कभी भी बिना कारण से कोई कार्य मत करो। हल्की भाषा का प्रयोग मत करो नहीं तो अगले भव में यह लौटकर तुम्हें मिलेगी

जिन आज्ञा विरूद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामी दुक्कड़म🙏🏻

संकलंकर्ता:- रानू जैन मंडलेश्वर

डा. निधि जैन - 9425373110


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