चारवा प्रवचन, 5/04/23
संसार का दुख और सुख दोनों अस्थिर हैप्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, जन जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया
भगवान ने जीव को संसार में सुख समाधि शांति को प्राप्त करने का मार्ग बताया। भगवान ने बताया कि जो दुख का अनुभव नहीं कर सकता वह सुख का अनुभव भी नहीं कर सकता। क्योंकि इस संसार का दुख और सुख दोनों अस्थिर है। दोनों हमेशा बने रहने वाले नहीं हैं। जीवन में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और वही तो जीवन है। संसार में जितने अज्ञानी हैं सभी दुखी है, चाहे उनके पास तन बल, धन बल बुद्धि बल यह तीनों बल ही क्यों ना हो अगर उनमें ज्ञान नहीं है तो यह बल रहने के बाद भी वह दुखी रहता है। आज जीव अज्ञानता के कारण दुख भोग रहा है।
आज संसार में जीव दो कारण से दुखी है पहला अहम दूसरा वहम।
अहम् टकरा देता है और वहम् भटका देता है। अगर जीव को स्वयं का अहम् समझ आ जाए तो अशांति नहीं रहेगी। अहम् रहेगा तो वह सोचेगा कि मेरे से किसी ने पूछा नहीं, किसी ने मेरी बात मानी नहीं आदि तरह-तरह की बातें उसके दिमाग में आती है। अरे !तुम्हारे लक्खण भी हो ना वैसे तब कोई तुम्हें पूछेगा। कोई व्यक्ति विधायक के पद पर है तो सलाम करेंगे और हारने पर उसे देखकर मुंह फेर लेंगे। अतः संसार का सुख और तन बल, बुद्धि बल, धन बल सभी अस्थिर रहता है। ज्ञानी भगवान बताते हैं कि मानव किस गरुर में बैठा है यह तीनों बल अस्थिर है। अतः जब तक आत्म - बल जागेगा नहीं तू शांति का अनुभव नहीं कर पाएगा। सिकंदर एक बार भारत आया था तब उनके गुरु ने उससे कहा कि वहां से एक महात्मा को लेकर आना। सिकंदर ने उसके सैनिकों को भेजा और बोला कि किसी महात्मा को लेकर आओ। महात्मा ने बोला मैं नहीं जानता तुम्हारे मालिक को और तुम जाओ यहां से, तब सिकंदर खुद उन्हें लेने गया सिकंदर ने उन्हें बोला मैं विश्व विजेता हूं विश्व को जीतने निकला हूं और अभी आपको यहां पर लेने आया हूं। मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ? तब महात्मा ने कहा पहले स्वयं को जीत, स्वयं को जीत लेता तो यहां नहीं आता। सिकंदर हतप्रभ रह गया और महात्मा के सामने कुछ बोल नहीं सका क्योंकि उसके सामने आत्म बल की शक्ति थी। सिकंदर समझ गया और वहां से चला गया अर्थात आत्मशक्ति के सामने बाह्य शक्ति काम नहीं करती। जीव बस यह तीन बल के पीछे पड़ा हुआ है अरे 6 खंड के चक्रवर्ती भी काल के गाल में चले गए। योग और भोग जवानी की चीजें हैं। वृद्धावस्था में कानपुर की हड़ताल, नागपुर की लाइन चालू हो जाती है और आंख पुर के दर्शन बंद होने लगते है। ज्ञानियों ने बताया मुनियों का आचरण ही उनका व्याख्यान है।
अर्थात आचरण के बिना भाषण का प्रभाव गिरता नहीं है।
अहिंसा रैली निकली। सभा हुई और अलग-अलग लोगों ने अपना भाषण दिया भाषण में एक नेता जी ने बहुत जोरदार भाषण दिया और अहिंसा के बारे में बताया थोड़ी देर बाद उन्होंने जेब से रुमाल निकाला और उससे दो सफेद नींबू नीचे गिर गए तब लोगों ने देखा कि यह बोल क्या रहा था और इसके जेब से यह क्या गिरा ? अर्थात आचरण के बिना भाषण का प्रभाव गिरता नहीं है। क्या भरोसा जिंदगी का ? जीते हैं कपड़े बदल- बदल कर एक दिन लोग ले जाएंगे कंधे बदल-बदल कर।
जो पास है उसे बांटते रहो तो बढ़ेगा, संग्रह करोगे तो समाप्त होगा।
खाया पिया अंग लगा, दे दिया संग चला, बचा कुचा जंग लगा। काल के आगे किसी की चलती नहीं सभी बल अस्थिर है।
चिता मुर्दे को जलाती है और चिंता जिंदे को जलाती है।
तुम लोगों ने पुछडे पकड़ रखे है मैंने कहा तुम्हारे सामने जिंदा देवता बैठा है फिर क्यों डरते हो ? मैं तो खुद गारंटी देता हूं। पूजा अगरबत्ती इन सब आडंबरों में लगे हो उसके पीछे समय शक्ति संपत्ति सब बर्बाद कर रहे हो। देव अरिहंत, गुरु निर्ग्रंथ केवली प्ररूपित दयामय धर्म। येँ तीन तत्व ही सार्थक है इनके सामने झुक जाओ तो कहीं झुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आजकल मनोरोगी बहुत हो गए हैं। फिर लोग डोरे धागे करवाने के लिए जाते हैं। अधिकांश अंदर की बाधा (मन की ) होती है। कभी भी डरना नहीं घबराने की जरूरत नहीं है। यह सब स्वयं के कर्म के उदय से है। वंदना से कर्म टूटते हैं। दुख आते हैं पाप कर्म के उदय से उसके लिए वंदना करो पाप कर्म को कम करने के लिए पगलिए से क्या होता है लक्खण बदलो तो सब बदलेगा। साढ़ेसाती नहीं लगती आठ कर्म की आठी लगती है। जीवन में विवेक आ गया तो 60%- 70% कर्म बंध से बच सकते हैं।
संकलंकर्ता:- कीर्ति पवार
डा. निधि जैन - 9425373110

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