कभी भी किसी को सलाह देना हो तो तीन बातों का ध्यान जरूर रखें

चारवा प्रवचन, 4/04/23

कभी भी किसी को सलाह देना हो तो तीन बातों का ध्यान जरूर रखें.

जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है.

पाप किसी का सगा नहीं होता और पुण्य किसी को दगा नहीं देता. 

प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, जन-जन की आस्था के केंद्र पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया  भगवान महावीर जो परम करुणाकर है, उन्होंने भव्य जीवो के कल्याण के लिए सुख शांति का मार्ग बताया। जीवन के अंदर कैसे कैसे उतार चढ़ाव आते रहते है और जीवन झूले के समान है, उतार चढ़ाव चलता रहता है। भगवान महावीर का जीवन कैसा त्रीपुष्ठ वासुदेव के भव में कितनी क्रूरता व महावीर के भव में जीवों के प्रति कितनी करुणा। इसलिए ज्ञानिजन ने फरमाया है कि किसी के दुर्गुण देखकर उसके प्रति पूर्वाग्रह मत बनाओ। कोई व्यक्ति विधायक की टिकट लेकर आया जितने की पूरी उम्मीद पर अब उसके पास जुते भी नहीं है फिर भी आप उसका सम्मान करते हैं। 
पाप किसी का सगा नहीं होता और पुण्य किसी को दगा नहीं देता। पापानुबंधी पुण्य अवनति के मार्ग पर ले जाते हैं। संसार की दृष्टि से आप कितनी ही सफलता प्राप्त कर लो वह आपको दुर्गति में लें ही जाएगा। छल कपट, दाव पेच, खोटे काम सब इसी के अन्तर्गत आता है। जितना भी हराम का लिया हुआ है वह कर्मसत्ता वसूल जरूर करेगी। भगवान महावीर को त्रीपुष्ठ वासुदेव के भव में तन बल धन बल बुद्धि का बल सत्ता का बल प्रचुर मात्रा में मिला।पापानुबंधी पुण्य वाला सामने वाले को दबाने की हड़पने की कोशिश में लगा रहता है। समय शक्ति और संपत्ति को कोई बांध नहीं सकता है। शरीर की शक्ति सीमित होती है व आत्मा की शक्ति असीमित होती है। लोगों को धर्म आराधना में बड़ा संतोष है बस जितना का जितना रखना है। व्यापार बढाते जाना है  किन्तु धर्म नहीं। धर्मो रक्षति रक्षित: जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है। अगर किसी के जीवन में कोई भी त्रुटि आए तो उसे समझाने कि कोशिश करे। किसी के दुर्गुणों को देखना उसे अपने जीवन में आमंत्रण देना है। एक ही चीज को देखकर हर किसी का नजरिया अलग होता है। हर व्यक्ति अपनी अपनी बुद्धि से सोचता है। अच्छी सोच उत्थान के मार्ग पर और बुरी सोच पतन के मार्ग पर ले जाती है। जवानी में जो शक्ति रहती है बुढ़ापे में नहीं। सभी पुदगल नाशवान है इस शरीर से हम उत्थान के मार्ग पर भी जा सकते है और पतन के मार्ग पर भी। आज नहीं तो कल, जैसी करनी वैसे फल। कभी भी किसी को सलाह देना हो तो इन तीन बातों का ध्यान जरूर रखें :-  
1. स्वयं का पुण्य (ये मेरी बात सुनेगा या नहीं) 
2. सामने वाले की पात्रता (ये मेरे वचन झेलेगा या नहीं) 
3. अवसर (समय के पूर्व अपने मुंह का फाटक ना खुले) चाहे घर पर हो सगे संबधियों के साथ हो, मित्रों के साथ हो ये तीन बाते अपना ली तो दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी। किसी की सुपारी मात्र बोलकर नहीं मन से भी दी जा सकती है। मन बड़ा खतरनाक है, सोचा कि सुपारी दे दी। जब तक मिच्छामी दुक्कड़म नहीं कहोगे कर्म और क्रिया लगती रहेगी। घोटाले की शुरुआत मन से होती है। घर में अनबन हुई मतभेद हुआ। जब तक छदमस्थ है मतभेद होगा, पर कभी किसी से मनभेद मत करना। मनभेद में ये भव भी बिगड़ जाएगा और अगला भव भी । 

बदले की भावना, बेर की गाठ भव भ्रमण बड़ा देती हैं। जीव के पास जब थोड़ी सी विशेषता आ जाती है तो वह भान भूल जाता "मै " "मै " करने लग जाता है। झुकने से कोई कमजोर नहीं होता कोई नुकसान नहीं होता। जबकि नहीं झुके तो कमजोर बनकर झुकना ही पड़ेगा। एक वक्त का प्रसंग देखकर किसी के प्रति पूर्वाग्रह ना बनाए। हवा भी ध्वजा की दिशा बदल देती है। हमेशा कोई एक जैसा नहीं रहेगा। आज के डॉक्टर हड्डी को भी मोढ़ देते है फिर मन तो बड़ा कोमल है। चेतन है वो कैसे नहीं मुड़ सकता। मै कितना भी आपको बता दूं पर आपके स्वयं का क्षयोपशम, पूर्व भव के संस्कार होंगे उतना ही आप ग्रहण कर पाएंगे। हिम्मत ना हरे प्रयास जारी रखे जब पुण्य का उदय होगा तब वो जीव समझेगा। दर्शन मोहनीय कर्म के उदय से जीव सही बात को समझ नहीं पाता हैं। चरित्र  मोहनीय कर्म का उदय रहेगा तो जीव उसे आचरण में नहीं ला पाता है। वीर्यातंराय कर्म के उदय से जीव आचरण में दृढ़ता नहीं ला पाता है। मोहनीय कर्म के उदय से जीव संसार में तरह तरह के नाटक करता है। जिसके साथ आप पूर्वभव में अनुकूल थे इस भव में वह आपके साथ अनुकूल हो जाता है। 

संसार में लोग अहम व वहम से ज्यादा दुखी होते है अहम टकराता है और वहम भटकाता है। इन दोनों का एक ही उपाय है ठोकर, ठोकर खाए बिना ठाकुर नहीं बनते। कभी भी किसी से बदले की भावना नहीं रखना, हो जाए तो यही वोसिरा देना उसने तो आपके कर्म कम किए है उनका उपकार मानिए, उन्हें आत्म हितैषी मानिए। पूतना व्यंतरी ने भगवान को ठंडे पानी से कई उपसर्ग दिए भगवान के पास कई लब्धि थी पर उन्होंने प्रतिकार नहीं किया उस पर करुणा बरसायी। करुणा का भाव सम्यक दृष्टि व बदले का भव मिथ्या दृष्टि की पहचान है। आपके प्रति किसी के क्या भाव है यह महत्वपूर्ण नहीं है आपके दूसरो के प्रति क्या भाव है यह महत्वपूर्ण है। आंखो में प्रेम, जिव्हा पर मिठास, हृदय में मैत्री भाव, मोक्ष जाना हो तो ये तीन काम जरूर करें। जैसे ही प्रेम कम होता है नफरत बढने लगती है। अगर आंखो में प्रेम होगा तो विश्व सुंदर दिखने लगेगा और जबान में मिठास होगी तो विश्व झुकने लगेगा। जहां प्रेम होता है वहां द्वेष नहीं होता। ना सामने वाले के दोष नजर आते है। जहा आपने दोष देखे समझ लेना अपने जीवन में उन्हें आमंत्रण दे दिया। अगर आपने जिनवाणी का एक शब्द भी किसी को सप्लाई कर दिया तो उससे आपकी दिशा और दशा दोनों बदल जाएगी।

संकलंकर्ता:- किर्ती पवार

डा. निधि जैन 


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