*महावीर जन्म कल्याणक*
प्रवचन चारवा 3/4/23
जब कहने वाला और सुनने वाला दोनों ही व्यक्ति योग्य हो तो बात का महत्व बढ़ जाता है
प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, जन-जन की आस्था के केंद्र पूज्य गुरुदेव गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया
भगवान महावीर ने अपनी देशना में आत्मा के संसार में भटकने का कारण बताये। जब किसी के पिता मरणासन्न हो और उनके पुत्र उनके सामने खड़े हो तो पिता अपनी पूरी जिंदगी के अनुभव का निचोड़ शिक्षा के रूप में अपने पुत्रों को कहते हैं तथा पुत्र भी पिताजी की बाते बहुत ध्यान से सुनते है। और उनका आयुष पूर्ण होने पर कहते है पिताजी ने अंतिम शिक्षा में यह - यह कहा था। उन बातों का मोल बढ़ जाता हैं। उसी प्रकार अपने शासन पिता भगवान महावीर ने निर्वाण से पूर्व १६ प्रहर तक देशना दी अधिक से अधिक लोगों को सुख शांति और समाधि का मार्ग बताया भगवान ने फरमाया सुख शांति और समाधि साधनों से नहीं साधना से मिलेगी। तृप्ति का अनुभव साधनों को छोड़ने के बाद ही होता है। भगवान महावीर के पास क्या कमी थी फिर भी भगवन ने त्याग का मार्ग अपनाया। आत्मा का सुख शाश्वत है आने के बाद कभी जाता नहीं। लोगों को दुखी देख उन्हें दुख होता था स्वयं के दुखों से नहीं। कैसी अनुकंपा भरी हुई थी उनके रोम-रोम में !
जन्म जैसा कोई रोग नहीं, जन्म से ही सभी बीमारी है, संसार की सभी समस्या है। अज्ञानी मृत्यु को मिटाने की कोशिश करते है और ज्ञानी जन्म को मिटाने की। भगवान ने तो त्याग मार्ग अपनाया और हम उनका जन्म कल्याणक कैसे मनाते है ? सोचिये ! भगवान ने क्या उपदेश दिया और हम उनके नाम पर क्या कर रहे हैं ? भोग का मार्ग संसार का मार्ग है और त्याग का मार्ग आत्मा उन्नति का मार्ग है। इस प्रकार भगवान महावीर ने दान का महत्व बताया कि खिलाकर खाना, खाकर खिलाना नहीं। सुपात्र दान में विधि, द्रव्य, पात्र और दाता ये चारों ही योग्य होने चाहिए। पात्र 5 प्रकार के होते है - हीरा पन्ना, सोना, चांदी, पीतल, मिट्टी। यहां पात्र कोई भी हो महत्व भाव का है। अगर तीर्थंकर देव को बहराया तो हीरे पन्ने के पात्र का अवसर मिलता है, तपस्वी हो तो सोने का, साधक हो तो चांदी का, स्वधर्मी हो तो पीतल का और गरीब को मिट्टी के पात्र जैसा अवसर मिलता है। कोई त्यागी तपस्वी घर पधारे तो समझना लक्ष्मी स्वयं तिलक करने आयी है। उन्हें प्रासुक व एषणीय आहार पानी बहराये। त्यागी, तपस्वी, ब्रम्हचारी के अंदर देवता रहते है। आपने क्या चीज बहरायी यह महत्वपूर्ण नहीं है भाव और सामने वाले को उसका कितना उपयोगी है उसका महत्व है। अधिकांश जीव का सुपात्र दान देने के बाद उत्थान होता है। जन और जैन मे दो मात्रा का अंतर है। ये दो मात्रा आचार शुद्धि और आहार शुद्धि की है। जो ये दो काम करले वह जन से जैन बन जाता है। लोकोत्तर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ पद तीर्थंकर का और लौकिक क्षेत्र में चक्रवर्ती का होता है। जब पुराना बेलेंस (पुण्य )जमा होता है तब सर्वश्रेष्ठ कुल में जन्म होता हैं। दान का अर्थ देना नहीं बोना होता है। दान लोग देते है पर छपाकर देते है। वृक्ष की जड़ जमीन में अदृश्य रहती है तो वृक्ष हरा भरा रहता है दिखने लगेगी तो सुख जाएगा। पुण्य को पचाना भी सरल नहीं है जिसने पुण्य को पचा लिया उसका उत्थान हो गया। "मै " जब तक नहीं मरेगा तब तक स्वयं की आत्मा पनपेगी नहीं।
ग्रह कितने ही खराब हो यदि कर्म और आराधना अच्छी रहेगी तो कुंडली अपने आप ही अच्छी बन जाएगी। देवता की कुंडली से भी श्रेष्ठ कुंडली संयम रत्न पाने वालो की होती है। पुरुषार्थ करके आप अपना भाग्य बदल सकते है। कुएं में पानी होगा तो ही रस्सी डालने पर बाहर आएगा नहीं होगा तो कहा से आयेगा ? भगवान महावीर ने भव्य आत्मा को उपदेश दिया - अपना बनाने के लिए नहीं अपने जैसा बनाने के लिए। जन्म हुआ तो मृत्यु निश्चित है अगर जन्म को ही मिटा दिया तो जीव अमर हो जाता है।
जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏🙏🙏
संकलंकर्ता:- कीर्ति पवार, चारवा
डा. निधि जैन

0 टिप्पणियाँ