वशीकरण मंत्र, लक्ष्मी प्राप्तीकरण मंत्र यह सब मंत्र मांगीलाल लोगों ने मांगीलाल लोगो के लिए बनाए है

 Date:15/04/2023


भगवान ने अपने ज्ञान से बताया है कि जीव स्वयं अपने कर्म का कर्ता है और स्वयं  अपने कर्म का भोक्ता है।                    

स्वयं का हित करने वाला भी खुद है और स्वयं का अहित करने वाला भी खुद ही है। 

उक्त बात प्रखर वक्ता, परम् पूज्य श्री गुलाबमुनि जी महाराज साहब ने धर्मसभा में कही कि

आडंबर के पीछे दुनिया भागती है। बैंक मे कौन जाता है जिसके पास Balance है। प्रमाद में समय बर्बाद न करो। चमत्कार को नमस्कार ना करे। 

रात को सोये और सुबह सही सलामत उठे उसे कहते है चमत्कार। 

अतिवृष्टी, अनावृष्टी, भूकंप, बाढ, चोरी चकारी, लुटपाट यह अगर बंद होते हो तो उसे चमत्कार कहेंगे। पुण्य जब तक है तब तक ही दुकानदारी चलेंगी। हम स्वयं ऐसी आराधना करे, तप करे, त्याग से पुराने कर्म घटकर नये कर्मबंध नही होगे।

वशीकरण मंत्र, लक्ष्मी प्राप्तीकरण मंत्र यह सब मंत्र मांगीलाल लोगों ने मांगीलाल लोगो के लिए बनाए है। 

नवकार मंत्र सभी मंत्रो मे श्रेष्ट है, उसे गणधरों ने रचा है उसमे किसी एक व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है अरिहंत मतलब सभी अरिहंत, सिद्ध जितने अनंत सिद्ध हुए है वे सब, आचार्य जितने आचार्य हो चुके हैं और वर्तमान मे है वे सब, उपाध्यय और साधु भी जितने है वे सब याने किसी एक व्यक्ति विशेष का उल्लेख नहीं है।

श्रमण की उपासना करे उसे श्रमणोपासक कहते है। 

आज व्यक्ती ने धरती अंबर के साथ, गुरु के भी बटवारे कर दिये है। धर्म को तो ना बाँटो। टूटे हुए दो दिलों को जोड़ता उसे धर्म कहते है। अगर धर्म के नाम पर समाज से, घर परीवार से, भाई-भाई से अलग हुए तो वह धर्म नहीं ढोंग है। धर्म तो दो दिलों को जोड़ता है, दीवार को हटाता है। जैसे सब्जी मे नमक ज्यादा हो गया, घी नमक को कम नहीं करता किन्तु वह नमक की पावर को कम करता है ठीक वैसे ही धर्म से कर्म का पावर कम हुआ तो कर्म घट जाएंगे और वे दुखदाई नहीं होंगे। आने वाले  समय में नए कर्मबंध नही होंगे। 

भीम को दुर्योधन ने जहर देकर मारने की कोशिश की लेकिन भीम को उसका कोई असर नही हुआ उन्होंने जहर भी पचा लिया। कृष्ण महाराज को कंस ने मारना चाहा लेकिन पुण्य प्रबल था तो उनका कोई बाल भी बाका न कर सके।

Balance है तो वो कही नही जाएगा मिलेगा ही मिलेगा। तन ढकने के लिए कपडे, ठंड मे लड्डु, गर्मी मे आम, बारीश मे छत और सुरक्षा के लिए मकान आदि मिला है तो यह पूर्व का Balance  ही तो है। 

जंगल मे लगी आग से बचने के लिए खरगोश ने अपनी जान बचाने के लिए जगह ढूंढी तो हाथी ने खरगोश को देख अपना पैर तीन दिन तक ऊँचा ही रखा और कालधर्म को प्राप्त हुआ लेकिन हाथी के भव में अनुकंपा के भाव से पुण्य उपार्जन करके श्रेणीक महाराज का पुत्र बना।   500 महलों का मालिक बना। 

शालीभद्रजी के जीव ने खीर का दान किया तो गोभद्र सेठ के यहाँ पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। जो खीर उन्होंने बहुत प्रयासो से बनाई थी लेकिन उदार भाव से दान देकर पुण्य का उपार्जन कर लिया। देनेवाला और लेनेवाला दोनों पात्र होने चाहिए।                                                

पांच पात्र होते है - हीरे पन्ने, सोना, चांदी, पीतल, मिट्टी 

१ तीर्थकर का पात्र - हीरे पन्ने  विशीष्ट, उत्तम पात्र 

२ साधु साध्वी- सोने का पात्र 

३ सच्चा श्रावक - चाँदी का पात्र 

४ साधर्मी - पित्तल का पात्र 

५ भिखारी - मिट्टी के पात्र है। दानधर्म प्रतिफल की भावना से नही करना। 

किसान अनाज बोता है तो प्रतिफल में अनाज की ही भावना रहती है किन्तु उससे चारा सहज रूप में प्राप्त हो जाता है। चारे के लिए अलग से मेहनत नही करनी पड़ती है। ऐसी ही आराधना करते रहो फल की आकांक्षा ना रखो  फल तो सहज में प्राप्त होगा ही। यदि धर्म आराधना की और फिर भी विपरीत परिस्थिति बन रही है यह समझना की मैने किसी को अंतराय दी होगी तो मुझे भी अंतराय आई। 

मैंने किसी को फेँककर दिया तो मुझे भी फेँककर ही मिलेगा यह ध्यान रहे। छत्ते में शहद होगा तो ही मधुमक्खीयाँ मंडराएगी। तिरस्कार भावना से कभी नहीं दान देना। भुख और नींद कभी किसी की सगी नही होती। धर्म मे मन नही लगता तो भी लगाना चाहिए धनचंद नही धरमचंद बनना है।

जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏

संकलंकर्ता:- रूपाली भंडारी, सावलिखेड़ा

डा. निधि जैन - 9425373110

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