शरीर आत्मा का घर हैं। शरीर को पीड़ा हो रही है तो कोई बात नही, आत्मा को परमात्मा मे लगाए

  17 अप्रैल 2023, खालवा


कट-कट से बीत जाएगी उमरीया
हमें जो शरीर मिला है वो किराये भाड़े का है फिर भी रोज सुबह से हम शरीर के कामो में लग जाते है उसको नहलाते है, धुलाते हैं, श्रृंगारते है, किसलिए जो साथ मे जाने वाला ही नहीं है 
उक्त बात परम् पूज्य गुलाब मुनिजी म.सा. ने  प्रवचन के दौरान धर्मसभा में फरमायी
कट-कट से बीत जाएगी उमरीया। रसनेन्द्रीय के अंदर रस की ललुपता क्षणभर सुख पाने के लीए जीव भागता ही रहता है। लेकीन थोड़े समय का सुख लंबे समय के दुख का बुलावा ही तो है! 
कषाय के चार प्रकार के अजगर है ? क्रोध, मान, माया लोभ 
दो प्रकार के चुहे - रात और दीन। 
जन्म दुख: जरा दुख:। 
भगवान ने अपने ज्ञान से बताया है की ज्ञानी लोग जन्म को मिटाने का प्रयास करते है और अज्ञानी लोग जन्म  बढ़ाने का  (84 योनि  का चक्कर) अपने ही किये कर्म से जीव भटक रहा है, समस्या से जूझ रहा है। एक समस्या खत्म की तब तक दुसरी खड़ी हो जाती है। 
जन्म टेंशन, जीवन टेशन ,मृत्यु भी टेंशन। 

ना तेरा है न मेरा है ये जीवन रैन बसेरा है। 
आसक्ती और ममत्व भावना  ही जीव को दुख देती है और दुख से कर्मबंध होते है और लगातार बढ़ते ही रहते है। 
हार और हाथी के लिए युद्ध मे १ करोड ८० लाख लोग मृत्यु को प्राप्त हो गए लेकीन ना किसी को हार प्राप्त हुआ ना हाथी 

हमें जो शरीर मिला है वो किराये (भाड़े) का है फिर भी रोज सुबह  से हम शरीर के कामो मे लग जाते है उसको नहलाते है, धुलाते है, श्रृंगारते है किसलीए ? जो साथ मे जाने वाला ही नहीं है। 

हे ज्ञानी जाग- मैं  मेरा मेरा की हाय हाय में जीवन से बिदायी लेनी पडेगी। 
बैंक बैलेन्स, घर, फैक्ट्री, प्रॉपर्टी, FD सब किस के लिए ? अरे विचार कर जिनके लिए तूने कमाया है वही तुझे जलाएगा। 2-5 साल मे अस्तीत्व ही खत्म हो जाएगा।
सुत की रस्सी भी पत्थर से काटने गए तो वो भी पत्थर को काट देती है।
स्त्री का चरीत्र और पुरुषों का भाग्य स्वयं ब्रह्मा भी नही जान सकते।
सनत चक्रवर्ती का रूपलावण्य भरपुर था यहाँ तक की देव भी उनकी प्रशंसा करते। एक बार वह स्नान कर रहे थे तो स्वयं देव भी उनके रूप लावण्य को देखने ब्राह्मण का रूप बनाकर आए द्वारपालो से भी वह नही रुके और स्नातकक्ष मे पहुँच गए। कहने लगे की हमने आपके रुप की बहुत प्रशंसा सुनी है तो सनत चक्रवर्ती ने कहाँ की अभी क्या देखते हो जब मैं सजधज के राज सिंहासन पर आरूढ हो जाऊंगा तब देखना
उनके मन में अहंकार के भाव आ गए।
विनाश काले वीपरीत बुद्धी - राज सिंहासन पर आरूढ़ हुए फिर उन्होने कहाँ देखो मेरा रूप तभी वह ब्राह्म्मण ने कहाँ की अब वह बात नही रही जो पहले थी। तो राजा ने कहाँ क्या हुआ, तो ब्राह्म्मण बोले तुम थुकदान मे थूकिए तुम्हारे इस शरीर की आसक्ती से तुम्हारे शरीर मे कीड़े पड़ गए तभी राजा ने देखा की सच मे असंख्य कीड़े किलबिला रहे हैं तभी उन्हें विरक्ति के भाव आ गए राजपाठ त्यागकर मुनि बन गए।
यह शरीर किराये का मकान है। 700 वर्षो तक शरीर मे रोग रहा। लेकीन उन्होंने समभाव से सहन किया उन्होंने तन की चिंता, शरीर की चिंता छोड़कर तप में मन लगाया बहुत तपस्या की और सभी कर्म क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर लिया।

शरीर आत्मा का घर हैं। शरीर को पीड़ा हो रही है तो कोई बात नही, आत्मा को परमात्मा में लगाए लेकीन हम सुबह पहले शरीर के कामो में भंगी बन जाते, फिर नाई, फिर धोबी, फिर मोची दिन रात इस शरीर की सेवा करते आए है और कर रहे है फिर भी गंदा की गंदा, आखीर मे शरीर दगा ही देगा।
शरीर तीन मंजीला मकान है। शरीर, हडी मांस, चमड़ी पहले अशुची स्थान (पैर से कमर, फिर जहाँ पचता भोजन पान वह है पेट से गर्दन का स्थान ) बाबुजी का दफ़्तर (गले से सर )। 
शरीर आख़िर है तो किराये का घर  हम किराये के मकान मे रहते है तो उसमे साज सज्जा रिनोवेशन करते है क्या ? या  खुद (स्वंय) के घर मे। तो फिर शरीर की इतनी साज सज्जा क्यो ? इसे वो अपना क्या मान बैठा है ? मौत का पैगाम आता है तो तुरंत खाली करना पड़ता है। यह जीवन मौजमस्ती करने के लिए मिला है या भजन, त्याग, तप करने के लिए ? यहाँ शहद के एक बूँद जितना सुख है और अपार सागर जितना दुःख फिर भी क्षणभर सुख को पाने के लिए जीव पाप पर पाप किये जा रहा है। 
विटामिन M अगर  आ जाए तो मकान भी छोटा पड़ जाता है। इस 5वे आरे का सबसे बड़ा पुण्य स्थानक के पास घर का होना है ।

पाप किसी का सगा नहीं होता पुण्य किसी को दगा नहीं देता। मुनियों  का आचरण ही मुनीयो का प्रवचन होता है। 
साप का जहर मीठा होता है और बिच्छु का कड़वा होता है। साप के जहर से नींद आती है और बीच्छु के जहर से आदमी को डांस क्लास की आवश्यकता नही रहती 24 घंटो मे वो परफेक्ट डांसर बन जाता है। अर्थात  दर्द के  कारण इतनी अधिक बेचैनी होती है। मोहजाल दुख का घर है। सावधान रहो कब विकेट डाउन हो जाए 4 दिन बाहर जाना हो तो उसकी तैय्यारी कब से ?  ऐसे ही जीवन है तब तक पुण्यरूपी पाल बांध लो पता नही कब डोर टूट जाए। जीव की इच्छाशक्ती अनंत है 5 इन्द्रीयो के 240 विकार है पता नही कब कानपुर मे हड़ताल हो जाए नयन कब बंद हो जाए, पेट का पाचन कब बंद हो जाए। हाथ पैर का कब दगा दे दे कोई भरोसा नही। तनबल, बुद्धि बल, सत्ताबल, धनबल पूर्व की पुण्य से मिलता है। लेकीन सही समझ है तब तक पुण्य का उपार्जन करें ले।

जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏

संकलंकर्ता:- रूपाली भंडारी, सावलिखेड़ा

डा. निधि जैन - 9425373110


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