कर्म सत्ता चाहे तो अरबपति भी रोड़पति और रोड़पति भी अरबपती बन जाता है

 Date : 14/4/23


किसी का किया सत्कार्य का फल कही जाता नही वह यही का यही मिल सकता है।

प्रखर वक्ता, परम् पूज्य श्री गुलाबमुनि जी महाराज साहब

भगवान ने अपने ज्ञान से बताया है कि अहिंसा मतलब स्वयं के लिए कठोर बनना और दूसरो के लिए कोमल बनना। 

भगवान महावीर ने साढ़े बारह वर्ष जो चोविहार सहित तप उपसर्गो परिषहो को सहन किया। उसमे से मात्र 349 दिन ही पारणे के थे। 5 माह 25 दिन के उपवास के बाद सती चंदनबाला के हाथो से भगवान महावीर का पारणा उड़द के बाकुले से हुआ। उड़द के बाकुले अर्थात बफे हुए उड़द। अहोभाव से बहराने से सती चंदनबाला के हाथों की बेड़िया टूट गई, कलंक मिट गया,  नये केश आ गए पूर्ण श्रंगार रूप मे आ गई। कहने का आशय है कि जब धर्म भावपूर्ण किया जाता है तो चमत्कार की तरह फल की प्राप्ति होती है। धर्म में भाव की प्रधानता है द्रव्य से तो मात्र उड़द के बाकुले थे किंतु भावों ने चमत्कार दिखा दिया।

भगवान महावीर को बहुत से उपसर्ग आए, कीड़े, मकोड़े, जानवर, देवता, आनार्य देश के मनुष्यों आदि से  कष्ट सहन करने पड़े। 

तिर्थंकर भगवान को तो उत्कृष्ठ शक्तियां  प्राप्त होती है। वे तो अपनी नजर से किसी को भी देख ले तो वो वही भस्म हो सकते है। लेकीन उन्होने किसी की गलती न देखते हुए स्वयं की गलती देखी। यही विचार किया कि मेरे कर्म का उदय है। इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। मेरे स्वयं का दोष है। उन्होने सोचा मेरे कर्म का कर्जा कम हो रहा है। 

भगवान कष्ट को कर्ज उतारने वाला सहयोगी मानते थे और आप कष्टों को क्या मानते हैं? 

कष्ट देने वाले के प्रति कितने क्रूरता के, रोष के भाव आ जाते हैं। किंतु भगवान महावीर देव तो कष्ट देने वालों के प्रति भी सद्‌भावना रखते थे। किसी के प्रति रखी गई सद्‌भावना जीवन की रेखा बदल देती है। सोच बदली तो जीवन बदल जाता है। 

कर्म सत्ता चाहे तो अरबपति भी रोड़पति और रोड़पति भी अरबपती बन जाता है। टेंडर खुल गया तो उसे भगवान भी बदल नही सकते। जब स्वयं की अंतराय  टूटती है तो  2 डॉलर 2 करोड़ के बराबर बन जाते है। 

किसी का किया सत्कार्य का फल कही जाता नही वह यही का यही मिल सकता है। जीवन कैसे जीना चाहीए ? 

यह प्रश्न उठाते हुए पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि नमीराज ऋषी के जीवन मे चिंतन की सही दिशा से परिवर्तन आ गया। जरूरी नहीं की सिर्फ धर्म से ही जीवन का परिवर्तन होता है, कभी-कभी निमित्त मिलने पर जड़ वस्तु से भी जीवन परिवर्तित हो जाता है। एक जड़ वस्तु कंगन (चूडी) एक से एक टकराने से जोर -जोर से आवाज करती है, अगर कंगन 1 हो तो आवाज नहीं आती है । इससे नमीराजर्षी के जीवन मे परिवर्तन आ गया उन्हें समझ आ गया की 2 मेँ क्रांति है और 1 मे शांति है। जड़ से ज्ञान प्राप्त कर लिया और संयम ग्रहण कर लिया। 1 मे शांति 2 मे क्रांति। एकांतवासा, न झगडा न झाँसा। आत्मशक्ति के आगे सब शक्ति बेकार है। धर्म की शक्ति अलग और पैसो की शक्ति अलग। पुरुषों  की 72 कलाएँ होती है। स्त्रियों की 64 कलाएँ होती है। 

लेकीन धर्मकला नही तो सब कलाएँ बेकार हो जाती है।

   सामने वाले के अपराध की सजा खुद भुगतना क्रोध है। क्रोधी लोगो को जब अधिक क्रोध आ जाता है तो उनका खुन का पानी हो जाता है, धड़कन तेज हो जाती है, आँखे लाल हो जाती है, विवेक शुन्य हो जाते हैं तो नुकसान स्वयं का ही होता है।  

 किसी से गलती हुई तो उसकी गलती न देखते हुए उसकी वजह ढूंढना उसकी मजबूरी समझना, उससे भुल क्यू हुई वह किस परेशानी मे है यह सोचना और मेरे ही पाप का उदय है जो मेरे साथ ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति बनी। किसी ने आप को टक्कर मार दी अब आप को आया गुस्सा कि देखो उस नालायक में ध्यान नहीं रखा और मुझे टक्कर मार दी। तो सोचो क्या वह टक्कर मारने के लिए ही अपने घर से निकला था ? ऐसा क्यों हुआ कि वह जब आपके पास आया तभी उसका बैलेंस बिगड़ा और उसकी आपको टक्कर लग गई। 

अर्थात आपके ही उस समय भारी कर्म का उदय था जो उसकी टक्कर आपको लग गई। 

ऐसे ही जीवन की हर प्रतिकूल परिस्थिति में जीवन सोचना सीखने ले तो जीवन में शांति आ जाएगी। स्वयं की गलती मानना सुखी बनने का राजमार्ग है।

अहम मानव को टकरा देता है और वहम भटका देता है। और इसी से जीव को स्वयं की गलती दिखाई नहीं देती।

गुस्सा करेंगे तो सब आपसे प्रतिकुल ही रहेंगे। जो कोध मान, माया, लोभ करता है वह अकड़ जाता है और जो अकड़ जाता है वो भटक जाता है। मस्तिष्क में हडताल चालू हो जाती है।

धारा हुआ होता नहीं, जो हो रहा है वह भाता नहीं जो भाता है वह रहता नहीं। 

रावण कौरव, कंस ने मान किया और अपने वंश का अपनी गलतियों से संहार किया। इसलीए तपेली गरम करना नही। क्रोध, मान से मस्तिष्क मे हड़ताल चालू हो जाती है। और मुंह में ओवरटाइम चालू हो जाता है। माया -  छलकपट में मिलावट करता है, करता कुछ और है बताता कुछ और है। इससे उसका यह भव भी बिगड़ता है और परभव भी।

जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏

संकलंकर्ता:- रूपाली भंडारी, सावलिखेड़ा

डा. निधि जैन - 9425373110


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