चारवा प्रवचन, 02.04.2023
संसार के अंदर कोई सुख शांति समृद्धि का मार्ग है तो वह एकमात्र धर्म का ही मार्ग है
उक्त बात प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने फरमाई
संसार के अंदर कोई सुख शांति समृद्धि का मार्ग है तो वह एकमात्र धर्म का ही मार्ग है यह मार्ग ही जीव को सुख शांति समृद्धि प्रदान कर सकता हैं, तन की जितनी फिक्र है उतनी आत्मा की नहीं। अरे! तन तो जल करके राख हो जाएगा, किन्तु परभव में किए हुए कर्मों के साथ आत्मा ही चलेगी। तन को कुछ हुआ तो डॉक्टर के पास चले गए, वहां से आराम नहीं लगा तो बाबा - बाबियों के पास चले गए। उन लोगों ने भोले लोगों के दुखों की नस पकड़ ली है, उन्हें पता है मानव में धेर्य, सहनशीलता, गंभीरता नहीं हैं पर जीव इन सबके पीछे पड़ा हुआ है। उसे लगता है तन कमजोर हुआ, धन - हानि हुईं तो नजर लग गई। पर अगर तुम्हारे पुण्य का उदय है तो किसी की नजर नहीं लग सकती। ना कोई मुठ काम कर सकती है ना कोई देवीय शक्ति का प्रभाव पड़ेगा। संसार के अंदर जीव का तन बल कमजोर होता है तो वह बाबा के पास जाता है। कोई कह देते हैं की साढ़ेसाती चल रही है अरे! साढ़े साती नहीं लगती आठ कर्म की आठी लगी है। नकली माल उसी के पास जाता है जिसके कर्म की दशा खराब है। जीव अपने स्वयं के कर्म के कारण दुख भोगता है। जो बोया वो पाया फिर क्यों रोया ? क्या खाया यह महत्वपूर्ण नहीं है कितना पाचन हुआ यह महत्वपूर्ण है। जो माल खाता है वह मार खाता हैं। अगर कच्चा (जमीकंद आदि ) किसी को खाया तो वह भी तुम्हे कच्चा खा जाएगा किसी भव में।
दाल रोटी सबसे मोटी बाकी झंझट खोटी। असाता से बचने के दो उपाय है :- पहला जीवो को अभयदान दो दूसरा उन्हें साता पहुंचाओ। किसी को बचाने का फल इसी जन्म में भी मिल सकता है और आगे भी। दूसरे जीवों को दुख दिया छेदन -भेदन किया तो स्वयं को दुख भोगना पड़ता है। मानव में सहनशीलता का अभाव है इसलिए इधर उधर भागता हैं। धर्म तत्व से ही जीव सुखी होता है। संसार में एकमात्र शरणभूत धर्म ही है।
संकलंकर्ता:- कीर्ति पवार
डा. निधि जैन

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