भव बदलने से पहले भाव बदल लेना, गति बदलने से पहले मति बदल लेना और देह बदलने से पहले दिल बदल लेना
प्रखर वक्ता, परम् पूज्य श्री गुलाबमुनि जी महाराज साहब
जीव को भव भ्रमण करते हुए अनंत काल हो गए है। लगातार परिवर्तन और पुनरावर्तन भी हो रहा है।
जिनवाणी सुनकर आप सबको आनंद भी आता है लेकिन उससे आपमें परिवर्तन हो रहा जबकि आपको पुनरावर्तन लाने की आवश्यकता है।
गुरुदेव फरमाते है कि आप जब तक स्थानक में रहते हो जिनवाणी सुनते हो वह अच्छी लगती है यह परिवर्तन है। यानी कि पानी से बर्फ को बनाना, और फिर बर्फ गलकर पानी बन जाती है। जबकि अब जरूरत है पुनरावर्तन की जैसे दूध में नींबू डाल दो दही बन जायेगा फिर कितनी ही कोशिश कर लो दही दूध नही बनेगा ऐसे ही आपको सिर्फ स्थानक में ही नही हमेशा जिनवाणी अच्छी लगनी चाहिए और भगवान के वचनों का पालन करना चाहिए।
द्रव्य, क्षेत्र, काल से जीव ने अनंत बार परिवर्तन किए लेकिन भाव नही बदले, इसलिए जीव इस संसार मे भटक रहा है।
संसार के भटकाव को खत्म करना है तो भाव को बदलना होगा।
आकर्षण के कारण से जीव से कोई चीज छूटती नही है। जीव को यहाँ पर 50 डिग्री गर्मी भी सहन नही होती जबकि नरक में 1 लाख डिग्री गर्मी भी सहन करनी पड़ेगी चाहे तुम्हारा मन हो या न हो, कोई भी तुम्हे वहाँ बचाने नही आएगा। इससे अच्छा है इसी भव में सहन कर लो। लेकिन यहाँ तो जीव को शरीर के अंदर (पेय पदार्थ) भी कुल कुल, शरीर को बाहर से भी (कूलर, एसी) कुल कुल मिलता है फिर भी कुड़ कुड़ करता है, अभी भी मौका है इस भव को तप के ताप से सुधार लो भव भव सुधर जाएंगे।
तप के साथ में भाव शुध्दि बहुत आवश्यक है
क्योंकि पिछले अनंत भवो में हम सैकड़ो बार मासक्षमण, वर्षीतप, और कई बड़ी बड़ी तपस्याएं कर चुके है लेकिन अभी तक हमारा उद्धार नही हुआ क्योकि हमने तप तो किया लेकिन भाव में परिवर्तन नही किया।
भव बदलने से पहले भाव बदल लेना, गति बदलने से पहले मति बदल लेना और देह बदलने से पहले दिल जरूर बदल लेना।
क्योकि भाव बदले बिना मोक्ष सम्भव नही है। अर्जुनमाली ने छः माह में अनेकों हत्याएं की लेकिन उसके बाद उसने भाव बदले तो सीधे मोक्ष गति को प्राप्त हुए। लक्खण बदले बिना उत्थान होने वाला नही है।
किसी के लिए भी अपना फाटक (मुँह) मत खोलना, यह सीधा अंडर ग्राउंड जाने का रास्ता है।
सामने वाले के दुर्व्यवहार को बिल्कुल याद मत रखना, क्योकि जितना ज्यादा याद रखोगे उतना दुखी होंगे। अपनी आत्मा ने वस्त्र परिवर्तन तो अनंत बार किये है लेकिन भाव परिवर्तन नही हुआ जिससे अभी तक जीव भटक रहे है । इसलिए भाव परिवर्तन करने का लक्ष्य रखना तो यहाँ भी आनंद और वहाँ भी आनंद।
उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
संकलंकर्ता:-✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110

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