प्रवचन, खालवा 12/4/23
संसार के जीव सुख, समृद्धी, एश्वर्य की इच्छा करते हैं। लेकिन वैसा पुरुषार्थ किया क्या ?
उपरोक्त प्रश्न उठाते हुए शासन प्रभावक परम् पूज्य गुरुदेव गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया
जैसे कर्म किये वैसा ही पुण्य बंध और उन फलों की प्राप्ति होती है जेसे कर्म किये वैसा भुगतान करना पड़ेगा इस अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी 27 भव किये उन्हें भी मरिची के भव मे बहुत दुःख सहने पडे, 7वी नरक मे भी जाना पड़ा।
भगवान ने अपने ज्ञान से 18 पाप बताए है।
पाप का उदय होगा तो दुनीया मे ऐसी कोई शक्ति नही जो आप को बचा सके और पुण्य का उदय होगा तो कोई ऐसी शक्ति नही जो आपको उस पुण्य के सुख ना मिले, ना भूतो ना भविष्यति।
दुख मे सुमिरन सब करे, सुख मे करे ना कोय, जो सुख में सुमिरण केरे तो दु:ख कहे को होय !
भगवान महावीर जो की इस अवसर्पिनी काल के अंतिम तीर्थंकर थे उन्हें भी कर्म ने नही छोडा। उन्हें भी दीक्षा लेते ही परिषह उपसर्ग आये। अपरिमित शक्ति होते हुए भी उन्होने समभाव से कष्टो को सहन किया। वे तो अवधिज्ञान के धनी थे। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी थे। फिर भी पूर्व भव में किए हुए कर्मो का भुगतान तो करना ही पड़ा।
डॉक्टर भी छुरा चलाते है और डाकू भी छुरा चलाते है पर दोनो की भावना अलग - अलग होती है। एक की हित बुद्धी और दूसरे की क्रूर बुद्धी।
आजकल सभी लोग थ्योरी पर विश्वास नही करते सभी प्रेक्टिकल पर विश्वास करते है तो गुड़ का स्वभाव या शक्कर का स्वभाव (गुण) मीठा है लेकीन हम जब तक खुद उसे नही चखते तब तक हमे उसके स्वाद का अनुभव नहीं होता।
हिंसा, झूठ, चोरी, मैथून, परिग्रह यह सब दुराचार है, इसके विपरीत आचरण सदाचार है। एक 1000 टन वजन वाले लकड़े को जिसे हम आसानी से खिसका नही सकते, लेकीन वही लकड़े को अगर हम पानी मे डाल दे तो एक हाथ से हिला सकते हैं मतलब पानी ने लकड़े को स्वीकार कर लिया क्योकि लकड़ा आखिर बना तो पानी से ही।उसी तरह से दुख आए तो उसे स्वीकार कर लेने से वह हल्के महसूस होते हैं।
जो टेंडर भरेगा तो वह उसे भुगतना ही पड़ेगा। परिवार भी रेलगाड़ी का डब्बा है। अनंतकाल से चला आ रहा है। हम हर गति से जन्म लेकर आए है, इसमे सुख सपना, दुख बुलबुला, दोनो हे मेहमान।
कर्म सत्ता किसी को ना तो परीपूर्ण सुख दे सकती है ना किसी को परीपूर्ण दुःख, सुख का कर्ता और दुःख का कर्ता हम स्वयं है। आप समझ जाओ नही तो समय आप को समझा देगा। दशा और दिशा दोनो बदल जाएगी। जैन धर्म जबरजस्त है लेकीन जबरजस्ती का नही।
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग ? संसार मायाजाल है उपर से बेहाल है। समय, शक्ति, और संपत्ती किसी का इंतजार नही करती।
तो जब तक बल है, समझ है, तब तक जीतना हो तप, त्याग कर लो, ना तीर्थंकर की सत्ता रही, ना चक्रवती की ना ही वासुदेव की तो फिर हमारा क्या वर्चस्व है ? क्या वजूद है ?
धन और धरती हमेशा कवारे है उनका कोई मालिक नहीं है। सिकंदर की पूरी जहाँगीरी थी आखिर में उन्हें जग से विदाई के वक्त दोनो हाथ से खाली जाना पड़ा। दुःख आया है दुःख को घटाने के लिए सहन नही किया तो अगला टेंडर भरना पड़ेगा। एक कर्ज को घटाने के लीए दुसरा कर्जा लेना तो अकलमंदी नही है ना, दुःख को दुर नही करना दुख के कारण को दुर करना है। धूल के कारण दरवाजा बंद करते है तो पाप से बचना है तो आश्रव के द्वार को बंद करना होगा।
जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड🙏
संकलंकर्ता:- रूपाली भंडारी, सावलिखेड़ा
डा. निधि जैन - 9425373110

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