मानव सोचता कुछ है और होता कुछ और है

 प्रवचन 13/04/2023

किसी पुत्र को उसके पिता कई शिक्षाएं देते हैं, किंतु अंतिम समय में दी गई शिक्षा को वह बार-बार याद करता है। उसी तरह हमे भी भगवान महावीर देव ने अंतिम समय में जो शिक्षा दी वह आज उतराध्ययन सूत्र के रूप में आज हमारे सामने है। 

उक्त बात प्रखर वक्ता, परम् पूज्य श्री गुलाबमुनि जी महाराज साहब ने धर्मसभा में कही कि 

भगवान महावीर की पूर्ण आयु 72 वर्ष में से लगभग 30 वर्ष तक उन्होंने धर्म देशना दी। 

भगवान महावीर का ज्ञान विशिष्ट प्रकार का है। 24 तीर्थंकरों में उन्होंने सर्वोत्कृष्ट दुःख को नरक में जाकर भोगा तो वहीं  चक्रवर्ती और वासुदेव  के सुख को भी भोगा। चक्रवर्ती को कोई बिमारी नही आती सारी सुख सुविधा के वे धारक होते है 25000 देवी देवता उनकी सेवा मे रहते हैं। 14 रत्नों के 14000 देव, नवनिधि के 9000 देव भ, और 2000 आत्म रक्षक देव ऐसे 25000 देव हमेशा चक्रवर्ती की सेवा में रहते हैं। ऐसे चक्रवर्तीपने के सुख के साथ ही सातवीं नरक के दुख को भी भगवान महावीर ने अनुभव किया।

भगवान महावीर की वाणी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उत्तराध्यान सूत्र में भगवान महावीर ने कहा है आत्मा का दमन करना सरल नहीं है। दमन करना अर्थात दबाना नहीं  समझाना है। क्योंकि जहां दमन होता है वहां विस्फोट होता है। 

यह अवसर्पिणी काल का दुखमा आरा चल रहा है इसमे भाई-भाई को, सांस-बहु को, जेठानी-देवरानी को, नंनद भोजाई को अमीर-गरीब को दबाने मे लगा हुआ है। यह स्थिति जीव की अनंत-अनंत काल से चली आ रही है।

शक्ति की भी एक सीमा एक लिमीट होती है, शक्ति और सत्ता यह किसी के पास हमेशा टिकी नहीं रहती। हरिशचंद्र राजा ने भी विश्वामित्र को अपनी पूरी जहाँगीरी समर्पित कर दी थी, तन पर रखा तो बस एक जोड़ी कपड़े। 

जड़ और चेतन्य को मत दबाओ। देना हो तो मार्गदर्शन दो दबाओ मत। जबरदस्ती दबा भी दिया तो कर्म उदय में  आएगा तो किसी ना किसी भव में  वो पाप उदय मे आएगें ही ! दमन मतलब दबाना नही भुल स्वीकार करना है। दीवार का काम क्या एक से दो कर देना। किसी ने तुम्हे अच्छा कहा, सम्मान दिया, तारीफ की, तो उसे तुम  याद नही करोगे लेकिन अगर एक कड़वा शब्द, प्रतिकुल शब्द किसी ने कह दिया तो मन में वैर की गाठ बांध लोगे और उसे ही याद करते रहोगे। बदला लेने की अपेक्षा से वह हल्का शब्द बार बार रिवाइज़ करेंगे। हल्के शब्द का संग्रह करके मन में या दिमाग मे रखा उसे क्या कहोगें। फ्रीज में या सब्जी सुधारते वक्त हम कौनसी चीज संभाल कर रखते है ? अच्छी ही ना! तो फिर  प्रतिकुल बातो का कचरा दिमाग में क्यो ? तो सुखी बनने के लिए दिमाग में कचरा नही भरना स्वयं दुखी होगे, कर्मबंध होगा वो अलग। 

अगर किसी को अंगुली दिखाते है तो 3 अंगुली अपने तरफ रहती है और उसकी साक्षी अंगुठा होता है। तो भुल को स्वीकार करना है। पहले किए कर्म बंध के वजह से इस काल (5वे आरे) मे जन्म हुआ अगर अच्छे कर्म करते तो अब चौथे आरे मे जन्म होता। 

तो हमे दुःख  से नही दुःख के कारण से घबराना है। सब मैं ही हूँ, बाकि सब तुच्छ है यह समझना अज्ञान है। 

जहाँ अनुकुलता हो या प्रतिकुलता हमे हमारे व्यवहार, संस्कार अच्छे रखना है। बच्चो में बचपन से ही धार्मिक ज्ञान सिखाना है  झूठ नही बोलना,  चौरी नही करना, मिलावट नही करना, सामाईक, प्रतिक्रमण बने जहाँ तक  कभी नही छोड़ना। यह संस्कार सदैव अपने साथ रखना। आर्य संस्कृती है 

"अतिथी देवो भवः" 

यह संस्कृति अनंतकाल से चली आ रही है। अगर हमारे संस्कार पक्के हो तो  हम दूसरो का भी हित कर सकते है। जो अपना  है भाग्य का है वो कहीँ नहीं जाएगा हमे मीलेगा ही। 

"मीठी जवान, खुले हाथ सारा जहाँ आपके साथ” 

अगर धरमचंद नही बनोगे धनचंद ही बनोगे तो फिर करमचंदजी अपना चमत्कार दिखाएंगे ही। 

मानव सोचता कुछ है और होता कुछ और है। रिश्ते नाते, अनुकुल प्रतिकुल मिलते ही ! जीव की मति भ्रष्ट हो जाती है तो जीव खोटे काम करने लग जाता है पाप को पाप मानना  ही सुख की चाबी है। 

जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏

संकलंकर्ता:- रुपाली सुनील भंडारी

डा. निधि जैन 9425373110

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