दुःख कही बाहर से नही आते अपने किये हुए कर्म के कारण ही आते है।

 प्रवचन, खालवा 11/4/23   

प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन जन की आस्था के केंद्र, तपस्वीराज पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी म.सा. सेवाभावी पूज्य श्री कैलाश मुनिजी म.सा. पूज्य श्री अर्पित मुनिजी म.सा. आदि ठाणा  -3 
आज सुबह खुर्द से विहार कर 7:30 को खालवा स्थानक में सुख साता पूर्वक पधारे  है। 

पूज्य गुरुदेव ने प्रवचन मे फरमाया 

भगवान ने अपने अनुभव से बताया है जो दुख से बचने की कोशिश करता है वो ज्यादा दुखी होता है। 

पंखे के एक चक्र को घुमने मे खसखस के एक करोड़ टन दाने जीतने वायुकाय के जीव की हिंसा होती है। जैसा "supply वेसा Reply   

संसार मे 4 प्रकार के दुःख होते है - 

1 शारीरिक 2 मानसिक 3 पारिवारिक 4 आर्थिक  

आज के मनुष्य का जन्म, जीवन और मृत्यु तीनों मे tension भगवान महावीर ने जब दीक्षा ली तब उन्हें कोई कमी नही थी, कोई दुःख नही था सब चीजे उनके अनुकुल थी फिर भी संसार के अपार सुखों को त्याग कर दीक्षा ली। अभी 5:वा आरा 'दुखमा' चल रहा है तो उसमे दुःख ही होगा, सुख कहाँ से आएगा। अपने कर्म का गड्डा भरा हुआ है तो दुःख तो निश्चित आना ही है। वो सब हमारे किये हुए कर्मों का ही फल है। 

दुःख कही बाहर से नही आते अपने किये हुए कर्म के कारण ही आते है। 

जैसे बोओगे वैसे फल पाओगे। जो कर्म हमने किये है वो उदय मे आएगें ही उन्हें भगवान भी नही बचा सकते लेकीन कर्म के बदलने का उपाय बता सकते है। 

"जो बोया  वो पाया फिर क्यो रोया" 

जीतनी सुविधा उतनी दुविधा (जैसे-कार) कर्मसत्ता जैसी सत्ता दुनीया मे और कोई नही है। दुनिया में जितने भी लोग दुःख देने वाले है या दे रहे है उन्हें अपना दुश्मन ना समझकर अपना उपकारी समझे। आर्द्रध्यान दुःखो  को बढ़ाने वाला है और कर्मबंध का कारण है। 

"दुःख से नही सुख से बचे तो सुखी होंगें।" तुटी की बूटी नही होती"  

vitamin M दुख का कारण है। इसके उपभोग से  पुण्य घटता है।  

जीव को सुखी करने के भौतिक साधनो से दुख और बढ़ेगा और कर्म का टेंडर भरेगा। मांगीलाल नहीं बनना। तीर्थंकर भगवान जब दीक्षा लेते है तो असंख्य देवो के देव इन्द्र भी उनकी सेवा में रहते है लेकीन भगवान भी उनकी सेवा नही लेते। वे कहते है की पूर्व के तीर्थंकर भगवान ने भी किसी से सेवा नही ली थी, ना वर्तमान मे ऐसा हुआ, ना  भविष्य मे ऐसा होगा कि कोई तीर्थंकर अन्य किसी बल से अपने कर्मों को क्षय करेंगे। 

जो पुण्य है वो अपना Balance  है, उसे यूँ ही व्यर्थ ना गँवाना। लौकिक आडंबर की आड़ मे सिर्फ और सिर्फ ठगाई हो रही है। बेवकुफ बनाने वाले 4 राम तो जेल मे है। फिर भी लोग बेवकुफ बन रहे है।

 अगर ऐसे महामंगलीक से जन  - जन का कल्याण होता तो ऐसी मंगलीक का बड़ा आयोजन स्थानक में ना करके मंगलीक अस्पतालों मे करवानी चाहीए। तो फीर देखे की कैसे कल्याण होता है ! महामारी (कोरोना) के टाईम पर यह जो लौकीक जादु टोना, मंगलीक वाले कहाँ चले गए थे ? यह सब भ्रम है। जो बोया वो पाया वो ही मिला। अपनी पुण्यवाणी को सही जगह नही लगाई तो वो दुःख बढानेवाली ही होगी। 

जितने सुख सुविधा के कारण, वे दुविधा बढाने वाले ही है। साधनो ने ही कर्म बंध बढ़ा दिये है। अपने पुर्वज की पुण्यवानी ज्यादा है या अपनी ? कर्मसत्ता जैसी उदारसत्ता दुनीया मे कोई नही है। साता वेदनीय कर्म का जब तक उदय नही होगा तब तक ना तो कोई दवा ना ही दुआ काम मे आएगी। 

रेवतीगाथापत्नी ने और चंदनबाला ने तीर्यँच को बना को बना बहराया तो उस पुण्य के उपार्जन से तीर्थंकर गोत्र बांधा मानव पुरुषार्थ और खुद की की हुई साधना से ही सुखी हो सकता है। बचना नही सहना सीखो।

जिन आज्ञा के विरूद्ध कुछ लिखने मे आया हो तो मिछामि दुकड़म🙏

संकलंकर्ता:- रूपाली भंडारी, सावलिखेड़ा

डा. निधि जैन - 9425373110

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