संसार के समस्त जीव अपने अपने पुण्य-पाप, कर्म के हिसाब से जीवन जीते है, इसमे किसी का कोई लेना देना नही है, जो भी प्रतिकूलता आती है उसमें सामने वाला तो निमित्त मात्र है मूल में तो स्वयं के कर्मो का दोष है -
प्रखर वक्ता, परम् पूज्य श्री गुलाबमुनि जी महाराज साहब
संसार के समस्त जीव अपने अपने पुण्य-पाप, कर्म के हिसाब से जीवन जीते है, इसमे किसी का कोई लेना देना नही है, जो भी प्रतिकूलता आती है उसमें सामने वाला तो निमित्त मात्र है मूल में तो स्वयं के कर्मो का दोष है।
सम्यक बोध यानी सही समझ के अभाव में ही जीव संसार मे भटक रहा है। दर्शन यानी सही समझ, सही समझ है कैसे मालूम पड़ेगा ?
यदि किसी व्यक्ति के प्रति ईर्ष्या आए, स्वयं पर विश्वास ना हो, देव गुरु धर्म एवं कर्म पर विश्वास नहीं हो यानी दर्शन नहीं है, सही समझ नहीं है।
द्वेष करना यानी भैंस का काम करना है। भैंस का स्वभाव होता है वह पानी दिखते ही पानी में गिरेगी, लोट लगाएगी, उसी में गोबर व पेशाब करेगी फिर उसी को पिएगी। ऐसे ही ईर्ष्यालु लोग भी होते हैं, किसी का यश वैभव, उनसे सहन नहीं होता, पहले कर्म बांधेंगे फिर भोगेंगे। सोचो सूर्य पर धूल उड़ाओगे तो क्या होगा, खुद पर ही धूल उड़ेगी ना यही तो सम्यक बोध का अभाव है। यदि कोई तुम्हारी बुराई करता है, गलत टीका टिप्पणी करता है, बदनाम करता है तो उसे उपकारी मानो क्योंकि वह तुम्हारे अशुभ कर्मों को क्षय करने का काम रहा है । यदि कोई मुफ्त में तुम्हारे कपड़े धो दे तो तुम्हें कैसा लगेगा, ऐसे ही वह तुम्हारा मुफ्त में प्रचार कर रहा है तो खुश रहो।
दर्शन - समकित के 67 बोल बताए हैं । इसमें सम्यक्त्वी के पांच लक्षण बताए हैं - पहला सम - यानी समभाव। चाहे शत्रु - मित्र हो, त्रस - स्थावर हो , प्रतिकूल - अनुकूल हो, जीवन - मरण हो, लाभ -हानि हो, मान - अपमान हो, निंदा - प्रशंसा हो, लाभ - अलाभ हो, सारी स्थितियों में समभाव रखना चाहिए। भगवान महावीर के सामने गौतम (अनुकूल) थे और गौशालक (प्रतिकूल) थे फिर भी भगवान को दोनों के प्रति समभाव था। भगवान यह जानते थे कि एक जीव के प्रति भी भाव बिगड़ जाने पर गति बिगड़ जाती है।
सही समझ यही रखना होगी कि अपने पाप और पुण्य उदय के कारण सामने वाला आपसे प्रतिकूल व्यवहार करता है तो यह सब आपके कर्मो का दोष है। एक बात बताओ आपने बैंक से लोन लिया और पैसे नहीं भरें तो बैंक मैनेजर ने आप को नोटिस दिया इसमें किसका दोष ? मैनेजर का ? क्या आप मैनेजर पर केस करेंगे, नहीं ना ! यदि मैनेजर पर केस किया तो स्वयं को कृष्ण जन्मभूमि जाना पड़ेगा क्योंकि इसमें मैनेजर का कोई दोष नहीं है, आपने लोन नहीं भरा इसलिए नोटिस आया। ऐसे ही यदि कोई प्रतिकूल स्थिति बनती है तो सामने वाला तो निमित्त मात्र है यह आपके स्वयं के कर्मों का दोष है उसका दोष नहीं है, बस यही समझ आ गई तो बेड़ा पार हो जाएगा। कुत्ता भोंकता है तो तुम कुछ बोलते हो ? नहीं ना ! चुपचाप निकल जाते हो। ऐसे ही यदि कोई आप को अपशब्द कहे तो चुपचाप निकल जाओ उसी में जीवन का सार है।
अनंत काल से सम्यक बोध के अभाव में आत्मा अपना अवमूल्यन करती आ रही है। यदि आपको सन्मान सत्कार मिल रहा है तो वह पुण्य है और अपमान बुराई मिल रही हैं यानी आपका पाप कर्म उदय में है। बुराई कलंक लगाने वाले को पत्थर समझो और अपने कर्म को ही दोष दो, हाय - हाय मत करो।
परिवार रेल के डिब्बे के समान है इसमे प्रियजनों का आना जाना चालू रहता है। जिसने टेंडर भरा है उसका खुलेगा ही और जिसका स्टेशन आएगा उसे उतरना ही पड़ेगा। शोक क्यों मनाते हो यदि वास्तव में शोक ही है तो रात्रि भोजन का त्याग करो, जमीकंद का त्याग करो। अठारह पापों का त्याग करो।
जीव पाप के तो सारे कार्य करता है लेकिन धर्म के काम को छोड़ देता है आत्मा के लिए जो घातक है उसे पकड़ रखा है और धर्म को छोड़ रखा है।
संसार के समस्त जीव अपने अपने पुण्य-पाप / कर्म के हिसाब से जीवन जीते है, इसमें किसी का कोई दोष नहीं है, जो भी प्रतिकूलता आती है उसमें सामने वाला तो निमित्त मात्र है मूल में तो स्वयं के कर्मो का दोष है।
अपने मन को हमेशा स्थिर बनाए रखें यदि कोई अपनी प्रशंसा या गुणगान करें तो भी स्थिर रहें या निंदा या अपमान करें तो भी स्थिर रहें।
धर्म के लिए अभी समय निकाल लो नहीं तो डंडे खाकर समय निकालना पड़ेगा। नदी बह रही है आपने उसमें जितने पानी का उपयोग किया वह आपका है बाकी सारा बह कर चला जाएगा। ऐसे ही समय, शक्ति, संपत्ति आदि मिला है तो उसका सदुपयोग कर लो वरना वह समय के साथ जाने ही वाले हैं।
देव गुरु धर्म के प्रति दृढ़ आस्था होनी चाहिए। यें कैसे होना चाहिए- देव इच्छा बिना के, गुरु मूर्छा बिना के और धर्म हिंसा बिना का होना चाहिए।
इसी तरह संवेग - मोक्ष की अभिलाषा। कर्म रहित अवस्था की भावना भावना ,सिद्धत्व की भावना भावना।
निर्वेद - में 9 पापों की अरुचि उदासीनता होनी चाहिए। चार गतियों के प्रति उदासीनता, पांच इंद्रियों के 23 विषय और 240 विकारों में उदासीनता होना।
अनुकंपा - स्वयं की आत्मा पर एवम अष्ट कर्म से पीड़ित जीव के प्रति अनुकम्पा होनी चाहिए।
आस्था - सुदेव - गुरु - धर्म पर दृढ़ आस्था रखनी चाहिए ।जैसी मैना सुंदरी और श्रीपाल ने रखी थी।
उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
संकलंकर्ता:-✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110

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