पाप के कांटो को भीतर से निकालना जरुरी है.

ब्यावर प्रवचन
कुछ पाप ऐसे हो जाते किसी को कह नही सकते

पाप के कांटो को भीतर से निकालना जरुरी है. श्री लाघव मुनि जी म.सा.

        आचार्य श्री रामेश के शिष्य शासन दीपक श्री लाघव मुनि जी म.सा. ने समता भवन मे प्रवचन के दौरान आचार्य रामेश व उपाध्याय प्रवर को कोटि कोटि प्रणाम करने के बाद कहा रोम रोम से निकले गुरुवर नाम तुम्हारा हा नाम तुम्हारा, बड़ा कठिन होता है सयंम पथ पर चलना, लेकिन गुरु कृपा से बहता अमृत झरणा।  तेरी भक्ति मै तुम चरणो मे प्रित हमेशा रखना।

         पूज्य श्री ने कहा भीतर रहे कांटे को निकालना जरुरी है जो हमे सोने नही देता, कुछ पाप ऐसे होते है किसी को कह नही सकते अंदर ही अंदर जल रहा है बोलू तो किसको बोलू, जीवन मे गुरु के प्रवेश होने पर गुरु के प्रति समर्पणा होने पर मन की सब बात बता देना चाहिए गुरु बनाना सरल होता है उनके प्रति समर्पणा होना जरुरी हे, नही तो नजरो से गिर जायेगें चाहे कितनी सजा दे दो अगर हम नजरो से गिर जाएगे तो संभल नही पायेगें।

   गुरु के सामने सब कुछ कह दो आलोचना करने पर गुरु की दृष्टि से नही गिरेगें। सब कुछ सरल है पर आलोचना करना कठिन है। मन हल्का तभी होगा जब हम पापो की आलोचना करेगें। पापो से जीने की आदत हुई मेरी पापो को कहने की आदत नही मेरी। पाप करना बंद करो। छोटा सा पाप प्रकट नही किया तो भविष्य मे न जाने कितनी वेदना सहन करनी पड़ जायेगी।

     इससे पहले श्री यत्नेश मुनि जी म.सा. ने कहा सयंम ही जीवो को अभय दान देने वाला बनता है। जिसका जीवन सयंमित होता वो रोगो से दूर होता है सदा सुखी रहेगा। आज सयंम ही वास्तविक रुप से जीवन है। गोचरी जाने  पर साधु ग्रहस्थ के घर नही बैठ सकता।

संकलंकर्ता:- नोरतमल बाबेल

साधुमार्गी जैन संघ,ब्यावर

मोहनलाल जी बाफना

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