अपनी गलती स्वीकार करना ही हमारी सफलता है.

 ब्यावर प्रवचन, 28.03.23


सयंम ही जीवन है....
अपनी गलती स्वीकार करना ही हमारी सफलता है.
सयंम ही संसार का सार है, साधना किर्ति बढाता हैश्री लाघव मुनि जी म.सा

           आचार्य श्री रामेश के शिष्य शासन दीपक श्री लाघव मुनि जी म.सा. ने कहा स्वीकार करना ही सफलता है। अपनी गलती का पाप स्वीकार करना ही धर्म की सफलता होती है। अनंत महापुरुष व सिद्धो मे एक भी ऐसा नही जिन्होने पाप ना किया हो। उन्होने पाप  को स्वीकार कर लिया था और आलोचना करके प्रयाश्चित करने के बाद यह पाप वापस नही करूंगा।

    संसार मे ऐसा कोई व्यक्ति नही जिसने पाप ना किया हो। लोगो को मन से पाप करने मे रस आता है। पाप करते समय मन, वचन, काया का ध्यान नही रहता। पाप करते बेशर्म बनता है तो उसे कर्म कभी नही छोड़ता । पाप की गलती स्वीकार करना धर्म की सफलता होती है।

   पाप का क्षय करना है तो गुरु के सामने स्वीकार कर आलोचना कर लो। बड़ा व्यक्ति ही पाप को क्षय करता है वो गुरु से प्रयायश्चित लेकर आलोचना मे आनंद आता है। संसार ही सयंम का सार है। दीक्षा लेने पर व्यक्ति मे बहुत से बदलाव आ जाते है। साधना करने से किर्ति बढती जाती है।

       इससे पहले श्री यत्नेश मुनि जी ने भजन के माध्यम से कहा सयंम ही जीवन है, इस दुनिया मे उलझन ही उलझन है, कभी राग मे कभी द्वेष मे पाप का बीज बोया है।

संकलंकर्ता:- नोरतमल बाबेल

साधुमार्गी जैन संघ ब्यावर

मोहनलाल जी बाफना

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