थांदला प्रवचन, 29.03.2023
अरिहंत भगवान ने भवि जीवो के कल्याण के लिए जिनवाणी फरमाई है आईने मे मुख और संसार मे सुख दिखता है।
संसार मे जो भी तकलीफ आए उसके लिए भौतिक सुख हे जो दिखता है, वास्तव मे ऐसा नही है। चिंतन करना संसार मे सुख होता तो तीर्थंकर भगवान संसार को छोड़कर त्याग मे क्यो जाते, संसार मे कोई सुख नही है। भगवान ने संसार को दुःखो से भरा बताया है, जन्म, मरण, रोग और बुढ़ापा दुख है। हमने पैसा, परिवार, प्रतिष्ठा को सुख माना है जो वास्तव मे नही है।
भगवान ने सम्यक्तव का मार्ग बताया सम्यक्तव के आने से जीव का उद्धार होगा। जब तक सही समझ नही होगी तब तक इस संसार से मुक्त होने वाले नहीं है। बिना सम्यक्तव के साधुपना व श्रावकपना भी नहीं है, सम्यक्तव की नीव मजबूत होगी तो मोक्ष मार्ग भी निश्चित है। सम्यक्तव के कारण सही समझ सही रास्ते की प्राप्ति होती है।
मोक्ष मार्ग पर चलते हुए भी जीव भटक सकता है। देव गुरु धर्म के प्रति पूर्ण श्रद्धा चाहिए यदि श्रद्धा में आंशिक कमी भी है तो वह संसार को बढ़ा लेगा। सम्यक्तवरूपी रत्न जिस जीव के पास होता है तो भटकाव के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, जिस आत्मा को संसार दुख रूप लगे वही आत्मा आगे बढ़ सकती है। साधु जीवन में जो भी कष्ट आते हैं वह कर्म निर्जरा करते हैं। मोक्ष मार्ग सही होगा तो ही लक्ष्य को प्राप्त करोगे।
जो जीव आराधना करते वह निश्चित ही दूसरे तीसरे या पंद्रहवे भव में सम्यक्तव को प्राप्त कर लेते हैं।भगवान ने बताया कि जिस जीव को जरा भी मद आता है तो वह नीच गोत्र का बंद करता है।
सही क्रिया व सही लक्ष्य होगा तो ही सही मार्ग मिलेगा।

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