अपने हाथ जगननाथ, पर की आस सदा निराश

प्रवचन हरदा, 29 मार्च 2023

मीठी जबान, खुले हाथ सारा जहां अपने साथ

प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक परम्  पूज्य  गुरुदेव  श्री गुलाब मुनि जी महाराज सहाब  ने हरदा के धर्म स्थानक में फरमाया

एक नगर में एक सेठ रहते थे। वे बड़े ही धर्मात्मा और ईमानदार थे। वे अपना काम बड़ी ईमानदारी से किया करते थे। एक दिन उस सेठ ने अपनी दुकान के लिए माल खरीदा, उसी दिन बाजार में उस माल का भाव गिर गया। सेठ को बहुत नुकसान हुआ। यहां तक की हालत ऐसी हो गई कि सुबह का खाना है तो शाम का नहीं। तब सेठानी ने सेठ से कहा आप नगर सेठ के पास चले जाइए और उनसे ₹ 200 की उधारी लेकर कुछ नया काम शुरू कीजिए। नगर सेठ बहुत कंजूस था। जब आदमी सेठ के यहां पर गया तब नगर सेठ के वॉचमैन ने उसे भीतर नहीं जाने दिया। फिर भी जैसे तैसे वह आदमी सेठ के यहां पर घुस गया। नगर सेठ ऊपर से यह सब देख रहा था। जब वह आदमी सेठ के घर की सीढ़ियां चढ़ रहा था तब ऊपर से नगर सेठ ने वॉचमैन को उसे धक्का देने का इशारा किया। वॉचमैन ने उस आदमी को धक्का दे दिया जिस कारण उसके सिर पर गहरी चोट आ गई। वह आदमी निराश होकर अपने घर पहुंच गया। कुछ दिन बाद वह आदमी काम की तलाश में घर से बाहर निकला। रास्ते में उसे कुछ मजदूर मिल गए जो जंगल में घास काटने का काम किया करते थे। उस आदमी ने उन मजदूरों से पूछा क्या मैं भी तुम्हारे साथ चल सकता हूं। उन मजदूरों ने कहा क्यों नहीं। वह आदमी उनके साथ घास काटने के लिए जंगल में निकल गया।

इस प्रकार उस आदमी को काम करते करते 3 महीने निकल गए। इन 3 महीनों में उसने ₹ 20 बचा लिये। उस आदमी ने एक नियम लिया के दिन का जितना भी कमाया हुआ होगा उसका 10 परसेंट वह रोज दान देगा। उसने ठीक वैसा ही किया। शुरुआत में वह एक रुपए दान दिया करता था और धीरे-धीरे उसने हजारों दान देना शुरू कर दिए। इधर जो नगर सेठ था उसके पाप कर्म उदय में आने लगे व्यापार में नुकसान शुरू हो गया। नगर सेठ रोड़पति बन गए। अब राज्य में नगर सेठ चुनने की बात हुई। नगर के बड़े बड़े सेठ राजा के पास पहुंचे और उन्होंने उस आदमी को नगर सेठ बनाने की राय दी। उस आदमी की दानवीरता से प्रसिद्धि हो गई। राजा को यह सुझाव पसंद आया। उन्होंने उस आदमी को बुलाया और नगर सेठ बनने का प्रस्ताव रखा। उस आदमी ने हाथ जोड़कर राजा से कहा मैं इस काबिल नहीं हूँ । राजा के आग्रह करने पर वह आदमी मान गया। अब वह आदमी नगर सेठ बन गया । इधर पूर्व नगर सेठ की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि अब उस हवेली बिकने का भी समय आ गया था। नए नगर सेठ ने वह हवेली खरीद ली। लेकिन नया नगर सेठ काफी दयालु था। उसने पुराने नगर सेठ के लिए एक छोटा घर तैयार कर दिया। 

कुछ दिन बाद पुराने नगर सेठ की बीवी ने उनसे कहा कि आप नगर सेठ के पास मदद मांगने के लिए जाइए। पुराने नगर सेठ बोले कि पहले मैंने उन्हें धक्का मारकर के निकाल दिया था तो वह पता नहीं मेरे साथ कैसा सलूक करेंगे ? किंतु सेठानी जी को विश्वास था - आप जाइए तो सही वे बड़े दयालु व्यक्ति है। पुराने नगर सेठ ने ठीक वैसा ही किया। वह नए नगर सेठ के यहां मदद मांगने पहुंच गये। जैसे ही वह हवेली के गेट पर पहुंचे तो वॉचमैन ने बड़े सत्कार से उसे भीतर बिठाया। सेठ को लगा मेरा ही वॉचमैन है इसने मेरा ही नमक खाया है इसीलिए मेरा इतना सत्कार कर रहा है। बल्कि सच तो यह था कि नगर सेठ ने सभी कर्मचारियों को यह सीख दी थी कि किसी भी अतिथि का तिरस्कार नहीं होगा। नया नगर सेठ नीचे उतर कर आता है और जैसे ही वह पुराने नगर सेठ को देखता है वह उसके सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो जाता है और पूछता है मैं आपकी क्या सेवा करूं ?

ज्ञानी जन फरमाते हैं गटर का ढक्कन खोलने से बदबू ही आएगी ठीक वैसे ही दूसरों की गलतियों को उजागर करने से रिश्ते में खटास ही आएगी।

पूराने नगर सेठ ने नजरे नीचे झुकाते हुए नए नगर सेठ से ₹ 200 की मांग की। इतना सुनते ही नए नगर सेठ ने ₹ 500 की गड्डी निकालकर उनके हाथ में थमा दी। यह देख कर पुराना नगर सेठ अचंभित हो गया और कहा मैंने आपके साथ इतना बुरा किया फिर भी आप मेरी मदद क्यों कर रहे हैं ? तब नगर सेठ ने कहा कि मैं तो आपका उपकार मानता हूं, आपने मेरी बहुत मदद की है। उस दिन अगर आपके यहा  मेरा माथा न फुटता तो मैं मेहनत करने के लिए पुरुषार्थ नहीं करता। आपने तो मुझे काम करना सिखाया। यह उस नए नगर सेठ के संस्कार थे। क्योंकि उसे पता था जैसा दोगे वैसा ही मिलेगा। 

अपने हाथ जगननाथ, पर की आस सदा निराश।

कोई भी साधनों से कभी सुख की प्राप्ति नहीं होती है। शांति की अनुभूति नहीं होती है। सुख और शांति की प्राप्ति के लिए साधना करनी होगी। 

संसार एक मायाजाल है, ऊपर से मालामाल है और अंदर से कंगाल है।

संकलंकर्ता:-  महक बाफना हरदा

डा. निधि जैन 

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