मुनि श्री पूर्णसागर जी का समाधिमरण

धरियावद में 82 वर्षीय मुनि श्री पूर्णसागर जी का समाधिमरण: आचार्य मुनि संघ के सानिध्य में हुआ अग्नि संस्कार

थांदला की माटी के गौरव मुनि श्री पूर्णसागर जी म.सा.

धरियावद, (राजस्थान) जैन धर्म की परंपरा और तप की महानता का एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, आचार्य श्री अजित सागर जी के शिष्य और मुनि श्री पुण्यसागर जी से दीक्षित मुनि श्री पूर्णसागर जी का 24 मार्च 2025 को पूर्वाह्न 9:40 बजे समस्त संघ सानिध्य में समाधिमरण हुआ। मुनि श्री का अंतिम संस्कार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी, मुनि श्री पुण्यसागर जी और उनके संघ के 52 साधुओं के सानिध्य में विधिपूर्वक संपन्न हुआ।

मुनि श्री पूर्णसागर जी का समाधिमरण और विमान यात्रा:

समाधि मरण से पूर्व मुनि श्री ने सभी साधु-संतों से क्षमा याचना कर, यम संल्लेखना धारण की और चारों प्रकार के आहार का पूर्णतः त्याग कर दिया। 22 मार्च 2025 को, आचार्य श्री वर्धमान सागर जी और मुनि श्री पुण्यसागर जी की उपस्थिति में मुनि श्री ने अंतिम समय तक शांति और निराकुलता से संयम का पालन किया।

मुनि श्री पूर्णसागर जी का समाधिमरण दिनांक 24 मार्च को सुबह 9:40 बजे हुआ। दोपहर 12:10 बजे समाधिस्थ मुनि श्री का डोला विमान यात्रा आचार्य श्री वर्धमान सागर जी, मुनि श्री पुण्यसागर जी और हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में निकाला गया। मुनि श्री के डोले के आगे कमंडल लेकर भूमिशुद्धि का कार्य किया गया, और मुनि श्री के डोले को कंधा देने का सौभाग्य महावीर, राजेंद्र मेहता थांदला एवं उनके परिजनों को प्राप्त हुआ।

समाधि स्थल और अंतिम संस्कार:

समाधि स्थल पर पहुंचकर पंडित हंसमुख जी के निर्देशन में मंत्रोच्चार से स्थल शुद्धि की गई। समाधिस्थ मुनि श्री की शांतिधारा और पंचामृत अभिषेक उनके गृहस्थ अवस्था के परिजनों—पुत्र महावीर, राजेंद्र मेहता थांदला एवं परिवार द्वारा किया गया। समाधि के कारण संघ के सभी साधुओं ने उपवास रखा। अग्नि संस्कार के पश्चात आचार्य संघ, आर्यिका माताजी एवं समस्त समाज ने मुनि श्री की परिक्रमा कर विनयांजलि अर्पित की।

मुनि श्री का साधना जीवन:

मुनि श्री पूर्णसागर जी का जन्म थांदला, मध्य प्रदेश में हुआ था। गृहस्थ जीवन के दौरान उन्होंने मुनि श्री पुण्यसागर जी से प्रेरणा लेकर दीक्षा का मार्ग अपनाया। उन्होंने 9 जुलाई 2023 को सिद्धक्षेत्र सोनागिर में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की और मुनि श्री पुण्यसागर जी के करकमलों से 'क्षुल्लक श्री पूर्णसागर' नाम से प्रतिष्ठित हुए। 6 मई 2024 को उन्होंने अपने भतीजे मुनि श्री पुण्यसागर जी से मुनि दीक्षा प्राप्त की।

गृहस्थ अवस्था की पत्नी ने भी आर्यिका दीक्षा लेकर 'श्री पूर्णिमा मति' नाम धारण किया और उनकी भी पूर्व में समाधि हो चुकी है। मुनि श्री ने आचार्य श्री वर्धमान सागर जी, मुनि श्री पुण्यसागर जी और अन्य साधुओं के सानिध्य में अपने केशलोचन भी संपन्न किए।

संघ और समाज की श्रद्धांजलि:

समाधि स्थल पर पारसोला, बांसवाड़ा, थांदला, धरियावद, नरवाली, मुंगाडा, गामड़ी, दाहोद सहित विभिन्न स्थानों से हजारों श्रद्धालु उपस्थित हुए। समाधि स्थल पर सभी श्रद्धालुओं ने मुनि श्री के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की और धार्मिक विधि-विधान से अंतिम संस्कार में भाग लिया।

मुनि श्री के समाधि मरण के उपलक्ष्य में संघ के सभी साधुओं ने मौन साधना की और उपवास रखा। मुनि श्री के निधन से जैन समाज में एक गहरा शोक व्याप्त है। संघ के साधुओं ने उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके सिद्धत्व की कामना की।

त्याग, संयम और समर्पण:

मुनि श्री पूर्णसागर जी का समाधि मरण जैन धर्म की तपस्या, संयम और त्याग का एक उच्चतम उदाहरण है। उनकी साधना, समर्पण और तप की गहराई ने समाज को प्रेरित किया है। उनके निधन से जैन समाज ने एक महान तपस्वी को खो दिया, लेकिन उनकी शिक्षा और साधना की ज्योति सदा सभी को प्रेरित करती रहेगी।
धरियावद के इस ऐतिहासिक अवसर ने मुनि श्री के त्याग, संयम और समर्पण को अमर कर दिया, जो आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन और प्रेरणा देता रहेगा।

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