हठाग्रह, पूर्वाग्रह, कदाग्रह इन तीनो ग्रहों के कारण जीव अनंत काल से भव भ्रमण कर रहा है, वितरागी और तीर्थंकर को छोड़कर जीव व्यक्तिपूजा और जड़पूजा में लगा हुआ है -
परम् पूज्य श्री गुलाबमुनिजी म.सा.
हठाग्रह, पूर्वाग्रह, कदाग्रह इन तीनो ग्रहों के कारण जीव अनंत काल से भव भ्रमण कर रहा है, वितरागी और तीर्थंकर को छोड़कर जीव व्यक्तिपूजा और जड़पूजा में लगा हुआ है कैसे उद्धार होगा ?
थोड़ी सी नासमझी भी जीव को दुख के बड़े गर्त में डाल देती है, ऐसे प्रसंगों से इतिहास भरा पड़ा हुआ है और वर्तमान में भी जीव यही दोहरा रहा है।
जीव भूल करना बंद कर दे तो मोक्ष ही हो जाएगा और भूल है तो जन्म मरण चलता रहेगा।
सम्यक बोध (सही समझ) के आभव में जीव अनंत काल से भटक रहा है, पुराने कर्म कटते नही और नासमझी के कारण नए कर्मो का बन्ध करता जा रहा है। उसे यथार्थ समझ को प्राप्त करने की कोशिश करना चाहिए।
उक्त विचार प्रकांड पंडित पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी म.सा. ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में 22 अगस्त 2022 को व्यक्त किये उनके प्रवचन से लिए गए अंश
गुरूदेव ने सभाजन से पूछा की अच्छा बताओ सबसे खराब ग्रह कौन सा है। सभा से जवाब आये,, शनि, राहु, केतु।
गुरूदेव ने फरमाया की भाई जो खराब काम तुमने किया नही और तुम्हारा कोई नाम ले तो तुम्हारी तपेली (दिमाग) गर्म हो जाती है वैसे ही ग्रह (शनि, राहु, केतु) किसी का कुछ बिगाड़ते नही है फिर भी तुम उनका नाम लोगे तो वो तुम्हारे पीछे पड़ सकते है।
गुरुदेव कहते है कि मैं आध्यात्मिक ग्रह की बात कर रहा हुं।
"जीव तीन ग्रहों के कारण इस संसार में अनंत काल से भव भ्रमण कर रहा है,,
पहला- हठाग्रह
दूसरा- पूर्वाग्रह
तीसरा- कदाग्रह
हठाग्रह किसी वस्तु के लिए होता है और इससे वैराग्य चला जाता है। ऐसे ही पूर्वाग्रह किसी व्यक्ति के लिए होता है और इससे वात्सल्य चला जाता है तथा कदाग्रह विचार के लिए होता है और इससे विवेक चला जाता है।
इसमें हठाग्रह और पूर्वाग्रह तो और भी छूट सकते है लेकिन कदाग्रह को छोड़ना बहुत मुश्किल है। कदाग्रह का मतलब है मैने जो कहा वो ही सही है।
कदाग्रह के कारण खोटी परम्पराए चालू हो गयी है लोग व्यक्तिपूजा व जड़पूजा में उलझ गए है। धर्म के लिए लड़ते है, मरते है लेकिन जीते नही है, धर्म के लिए जीते तो कभी का मोक्ष हो जाता।
हमारे जीव ने संयम तो अनेको बार ले लिया लेकिन विचारों की पकड़ में उलझे गये इसलिए तो आत्मा के लिए फलदायी बना नहीं, हमें यहाँ अरबों खरबों का लाभ होना था वहाँ 1- 2 रु का लाभ हुआ।
लोगो की अंधभक्ति और अंधश्रद्धा के कारण निर्ग्रन्थ धर्म और तीर्थंकर को तो छोड़ दिया और व्यक्तिपूजा और जड़पूजा को महत्व दे दिया। धर्म के नाम से लोग ढोंग में लगे हुए है जो तिरने का नही डूबने का काम है।
धर्म से जुड़ोगे तो तीर जाओगे और व्यक्ति से जुड़ोगे तो डूब जाओगे। जहाँ तेरा मेरा है वहाँ ढोंग है। सम्यक बोध के आभव के कारण ही तो जीव इस ढोंग को समझ नही पा रहा है और भटक रहा है। अभी भी समय है सही समझ प्राप्त कर लो तो अभी भी भव भ्रमण से छुटकारा हो सकता है।
भगवान का जीव भी मरीचि के भव में विचारों की पकड़ के कारण ही भटका तो 99 लाख करोड़ सागर का भव भ्रमण बढ़ गया। सत्य से दूर विचारों की पकड़ करने वाले, धर्म के नाम पर ढोंग कर रहे है, दुकानदारी चला रहे है यह कदाग्रह है।
अहिंसा, संयम और तप से जहाँ जीव अलग हुआ तो समझो वो गया काम से। लोग पकड़ लेते है कि मेरे गुरु ने जो कहा वही सही है अरे भाई अभी तो सभी छदमस्थ है वो कहां केवली है ? केवली भगवान जो बता गए है उसी पर चलकर व अमल करके जीव का उत्थान हो सकता है।
श्रद्धा का मतलब होता है जहां किसी प्रकार की डिमांड न हो और अंधश्रद्धा का मतलब है जहाँ किसी भी प्रकार (धन, शरीर, व्यापार, बीमारी) की डिमांड हो। व्रत, तप, साधना आदि करो वह भी डिमांड से तो समझना मामला गड़बड़ है। जरूरी नहीं की मेरे विचारों से आप सहमत हो, समझ में आये तो ग्रहण करना, नही आये तो समाधान कर लेना, पीछे से कुर कुर मत करना। नहीं तो मेरा तो कुछ बिगड़ेगा नहीं, तुम टेण्डर भर लोगे जिसमें नुकसान तुम्हारा ही होगा।
हठाग्रह यानी वस्तु (जड़,चेतन) के प्रति हठ करना। रावण की हठ के कारण लाखो लोग मारे गए, उसका वंश समाप्त हो गया फिर भी उसे सीता नही मिली। और पूर्वाग्रह यानी यह व्यक्ति ऐसा ही है, या यह गलत है ऐसा किसी के लिए भी तय मत करना। *समय, परिस्थिति और उम्र के कारण बदलाव आते है। अर्जुन माली हत्यारा ही है लेकिन बाद में समय परिस्थिती बदली तो मोक्ष चले गए, इसलिए किसी के लिए भी एक फिक्स धारणा बनाना गलत है। व्यक्ति हमेशा एक जैसा नहीं रहता उसमें बदलाव आता रहता है।
प्रकांड पंडित आचार्य पू. श्री घासीलाल जी महाराज साहब ने जब दीक्षा ली थी तब उन्हें नवकार मन्त्र याद करने में भी बहुत समय लगा था। तब विचार किये कि- अरे रे ! ऐसा कैसे चलेगा। फिर उन्होंने 6 माह तक लगातार आयम्बिल किये। आयम्बिल में वे केवल कड़वे नीम की सूखी पत्तियों को पानी में भिगोकर के खा लेते थे और यदि वह नहीं मिले तो लकड़ी का बुरादा यदि कहीं से मिल जाता था तो उसे पानी में भीगा करके खा लेते थे उसके अलावा और कुछ भी 6 माह तक उन्होंने नहीं खाया और ज्ञान प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ किया। बाद में ऐसे प्रकांड विद्वान बने की 32 आगम की टिकाएं लिखी, 18 भाषाओं के जानकार बने और एक साथ 8 पंडितो को टिकाएं लिखवाते थे वो भी अलग - अलग भाषा में। तो उनमें दीक्षा के पहले और बाद में कितना परिवर्तन। इसलिए किसी के लिए एक धारणा तय नहीं करना चाहिए।
व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति के सदैव प्रयास करना चाहिए क्योकि सब कुछ यही रह जाएगा लेकिन ज्ञान दशर्न अगले भव में साथ जाएगा।


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