इच्छाओं की गति को रोकने के लिए "इसकी मुझे क्या जरूरत है" का चिंतन करना

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इच्छाओं का निरोध करना है तो मन की शुद्धि, बुद्धि की निर्मलता और अहंकार का विसर्जन करना होगा, क्योंकि इच्छाये कभी बाँझ नही होती एक पूरी होती है तो दूसरी खड़ी हो जाती है -  

परम् पूज्य श्री गुलाबमुनिजी म.सा.

जीव ने सुखी होने के लिए अनेक उपाय किये और अनेक साधन इकट्ठे भी किए लेकिन संसार की इच्छाएं अनंत होती है जो कभी किसी की पूरी हुई नही, होती नही और होगी नही। 

यदि संसार की इच्छाएं चालू है तो जीव का भव भ्रमण भी चालू रहेगा क्योकि मोक्ष की तीव्र इच्छा जगाए बिना जीव का भव भ्रमण समाप्त नहीं हो सकता है।
 
उक्त विचार प्रकांड पंडित पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी म.सा. ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में 3 सितंबर 2022 को व्यक्त किये उनके प्रवचन से लिए गए अंश  
गुरुदेव ने फरमाया कि इस जीव ने अनेको बार बड़ी बड़ी तपस्याएं भी कर ली है और अनेको बार दीक्षा भी ले चुके है लेकिन मोक्ष की तीव्र इच्छा नही होने के कारण जीव अभी भी भटक ही रहा है क्योकि मोक्ष की इच्छा के बिना यें सब अकाम निर्जरा है। 
मोक्ष प्राप्ति की इच्छा से कि गयी कर्म निर्जरा  सकाम निर्जरा होती है। प्रायः जीव इच्छाये रखता है और सुखी भी होना चाहता है तो कैसे होगा ? 
संसार के साधनों से कभी किसी की तृप्ति नही होती है। छः खण्ड के राजा की इच्छाये भी तृप्त नही हुई तो दूसरों की तो बात ही क्या करे। 
खाना खाते, प्रशंसा सुनते, नाटक, सीरियल देखने व देश विदेश में घूमने वाले भी आज तक कभी तृप्त नहीं हो पाए। अनंत भोगो को भोगने के बाद भी जीव कभी तृप्त नही होता। संसारी जीव तो ठीक संसार का त्याग करने के बाद भी जीव इच्छाओं से निवृत नही हो पाता है। 
पद, प्रतिष्ठा, सम्मान, कीर्ति, की इच्छाये चलती ही रहती है वो कभी तृप्त नही होता। 
जैसे आग में घी डालेंगे तो आग बढ़ेगी वैसे ही विषयो के साधनों को जितना बढ़ाओगे उतनी ही इच्छाएं बढ़ेगी। 
इच्छाओं का निरोध करने पर जीव को शांति समाधि प्राप्त हो सकती है। और इच्छाओं का निरोध करना है तो मन की शुद्धि, बुद्धि की निर्मलता और अहंकार का विसर्जन करना होगा, क्योंकि  इच्छाये कभी बाँझ नही होती एक पूरी होती है तो दूसरी खड़ी हो जाती है । 
यदि आपको मोक्ष की इच्छा होगी तो संसार की इच्छाओं से विरक्ति होने लगेगी।

मोक्ष की इच्छा के अलावा इच्छओं को समाप्त करना है तो सिर्फ एक ही वाक्य सोचना की इसकी मुझे क्या जरूरत है? 
अप्राप्त की इच्छा और प्राप्त की मूर्छा (आसक्ति) ये ही जीव को तृप्त होने नही देती है। फिर कहता है कि मैं दुखी हो गया हूं, स्वयं कई इच्छाये उत्पन्न करता है तो दुखी तो होगा ही न। इच्छाये छूटेगी तो ही तो शांति समाधि प्राप्त होगी जैसे आकाश में चील के मुंह मे मांस का टुकड़ा होता है तो अन्य चील उस ओर झपटती है और जैसे ही वो टुकड़ा छोड़ा तो अन्य चीले भी चली जाती है और उस चील को शांति मिल जाती है। 
इच्छा ही करना है तो मात्र मोक्ष की इच्छा करना ताकि अखण्ड सुख शांति समाधि प्राप्त हो। इच्छाओं की गति को रोकने के लिए "इसकी मुझे क्या जरूरत है" का चिंतन करना यह सोचते ही इच्छाओं पर ब्रेक लग जायेगा।

प्रवचन के कुछ मुख्य अंश -

@- जो महाराज होते है वो नाराज नही होते और जो नाराज होते है वह महाराज नही होते।
@- इच्छाओं का संथारा करना ही संयम है।
@- दुसरो के दिया जाने वाला- दान !! और दान देने के बाद वापस लेने वाला (नाम, प्रशंसा के रूप में) नादान। 
@- इच्छा का निरोध ही इच्छा की तृप्ति को समाप्त कर सकता है ।
@- वर्तमान में अहम का ज्यादा पोषण हो रहा है उसने जो किया उससे अच्छा में करू, इसी में पिसा रहा है।

उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र  परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
करही, 3 सितंबर 22
संकलंकर्ता:-
✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110

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