त्याग नही होता तो रामायण की जगह महाभारत होती

 


संयोग को स्वभाव मानने के कारण ही जीव दुखी होता है व तनाव में आ जाता है 

त्याग नही होता तो रामायण की जगह महाभारत होती
पूज्य श्री गुलाबमुनिजी म.सा.

जीव अनंत योनि में भटक कर मानव बना और फिर भी उसे यहाँ समझ नही आ रही है, ये मेरा है, ये मैने किया, अरे भाई समझ जाओ नही तो फिर से भटकना पड़ेगा और अनंत योनियाँ करनी पड़ेगी। 
उक्त विचार आगम ज्ञाता पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में व्यक्त किये। 
गुरुदेव ने फरमाया की दो बाते होती है एक संयोग और दूसरा स्वभाव। व्यक्ति संयोग को ही स्वभाव मान लेता है और यही उसके दुखी होने का कारण है इसके विपरीत यदि जीव संयोग को संयोग मान ले तो आत्मा को शांति, समाधि मिलेगी और दुर्गति व कष्ट से बच सकते है। 
ना चाहते हुए भी जो हो जाता है वह संयोग है और  जो बदलता नही है वह स्वभाव है।
पानी को गर्म कर लो लेकिन वो फिर ठंडा हो जाएगा क्योकि उसका स्वभाव शीतल व ठंडा है। संयोग हर किसी के जीवन मे आते है वह शुभ व अशुभ दोनों हो सकते है। किसी को गुस्सा व क्रोध आया तो वह कितनी देर रहेगा ? कुछ समय ! क्योकि जीव लम्बे समय तक शांति से तो रह सकता है लेकिन लम्बे समय तक क्रोध में नही रह सकता और क्रोध के संयोग को स्वभाव मान लेने से जीव कषाय पैदा करता है, पूर्वाग्रह कर लेता है कि यह तो ऐसा ही है, वैसा ही है, और इस पूर्वाग्रह के कारण स्वयं अंडरग्रांउड के कर्म बांध लेता है। 
किसी दूसरे के द्वारा किये गए प्रतिकूल व्यवहार को हम संयोग ना मानते हुए उसका व्यवहार मान लेते है, हो सकता है कि वो पुनः ऐसा व्यवहार ना करे और कर्म सत्ता ने हमारे निमित्त उससे ये व्यवहार करवाया हो ताकि हमारे कर्म कट सके।
किसी के जीवन कि त्रुटि देखोगे तो तनाव में आ जाओगे और तनाव जीव को डिप्रेशन में ले जाता है। फिर डॉक्टरों के चक्कर लगाते रहो क्योकि दुनिया मे तनाव की कोई दवा नही है डॉक्टर डिप्रेशन के लिए नींद की दवा दे देते है जिससे हमें नींद आ जाती है और हम रिलेक्स हो जाते है और हमको लगता है कि दवाई लागू हो गयी। 
अरे क्या लागू हुई, तुम्हारे तन में नही तुम्हारे मन मे बीमारी है और ये तनाव आता है, संयोग को स्वभाव मानने के कारण। 
तनाव में आने के दो कारण है एक असहकार और दूसरा अस्वीकार। यदि व्यक्ति से बिगड़ता है तो असहकार और परिस्थिति से बिगड़े तो अस्वीकार। 
जो व्यक्ति शक्ति होते हुए भी प्रतिकार नही करता है वह व्यक्ति सदैव तनाव से बच सकता है और वह शांति, समाधि और परम शांति को प्राप्त कर ही लेता है। 
वर्तमान में अधिकांशतया हक़ की नही हराम की लड़ाई चल रही है क्योकि हराम का लेने की प्रवृति ज्यादा बढ़ गयी है और हराम की लड़ाई के कारण ही द्वेष व तनाव बढ़ता है। 
राजा रामचंद्रजी  सामर्थवान होते हुए भी 1 सेकंड विलम्ब किये बिना अपना अधिकार का त्याग किया। वही भरत ने अहंकार का त्याग किया व माता कौशल्या ने प्रतिकार का त्याग किया। यदि ये त्याग नही होते तो रामायण की जगह महाभारत होती।
पूण्य उदय से यदि तुम्हे संपत्ति प्राप्त हो तो किसी को नीचा, हल्का, तुच्छ न समझना और किसी का तिरस्कार व अपमान मत करना। कोई भी फैसला चाहे वो हाई कोर्ट का हो या सुप्रीम कोर्ट का यदि कर्म सत्ता को मंजूर नही है तो कोई चन्दजी भी कुछ नही कर पायेगा। आतंकवादी कसाब के मौत की सजा कर्मसत्ता को मंजूर नही थी तो उसने सरकार के जवाई के रूप में 4 वर्ष और निकाले ना। तो अभी समय है यही समझ लो अच्छे कर्म करके धर्म में श्रद्धा करो तो भव सुधर जाएगा।
उक्त बातें पूज्य गुरुदेव के प्रवचन अंश से ली गयी है, भूलवश जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कड़म।
उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र  परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार
करही, 14 अगस्त 22
संकलंकर्ता:-
✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110


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