श्री नारायण की भक्ति से ही परम् आनंद की प्राप्ति सम्भव- आचार्य डॉ. देवेंद्र शास्त्री
इससे पहले व्यास पूजन हुआ। इस दाैरान कथा के मनोरथी बसंतीलाल सोलंकी मोहनकोट वालों ने सपत्नीक किया एवं वैभव सोलंकी, अनिकेत सोलंकी, कुंजन मालवीया, हेमेंद्रसिंह राठौड़, पंकज पाटीदार ने पुष्पगुच्छ से स्वागत किया।
धर्म का शाश्वत अर्थ ही सत्य है..
आचार्यश्री ने कहा कि धर्म दूसर सत्य समाना....। यानी सत्य का पालन ही धर्म है। लाख पूजा करो, पर उसमें सत्य नहीं तो कोई फायदा नहीं। कई लोग इतने धार्मिक होते हैं कि प्याज-लहसुन तक नहीं खाते, पर घूस खाते हैं। गलत काम कर माल बनाते हैं। इस तरह के धार्मिक लोगों को कभी शांति नहीं मिल सकती है। कैसे आएगी शांति। जब तक जीवन में शुद्धि नहीं, शांति नहीं हो सकती। लोग पहले भी दुखी थे जब झोपड़ियाें में रहते थे। आज भी दुखी हैं, जब एसी कमरों में रहते हैं।
सद्गुरु की सेवा ही आध्यात्म् दृष्टि है
कथा व्यास श्रीशास्त्री ने कहा कि दर्पणकभी झूठ नहीं बोलता है। जब कोई तुम्हारी निंदा या बड़ाई करे, तो दर्पण जरूर देखें। दर्पण ही जीवन का दर्शन कराने वाला। दृष्टि सद् गुरु देता है और यह सत्संग से मिलती है। सदगुरु की सेवा करनी चाहिए। सेवा का मतलब है उसके बताए मार्ग पर चलना। वैसा आचरण होगा, तभी मन-मुकुर साफ होगा। इसके लिए जरूरत है मन के दर्पण को साफ स्वच्छ रखने की। अध्यात्म की दृष्टि सद्गुरु की सेवा करने से ही प्राप्त होती हैं*
जो आनंद सिंधु सुख राशि...यानी जो आनंद का सिंधु है वही सुख का खजाना है
आचार्यश्री शास्त्री ने कथा में कहा कि जोआनंद सिंधु सुख राशि...। यानी जो आनंद का सिंधु है। वही सुख का खजाना है। परमात्मा ऐसे कृपा सिंधु हैं कि उनकी थोड़ी सी कृपा से त्रिलोक सुखी हो जाता है। आचार्यश्री ने भगवान राम के साथ सूर्पणखा शबरी का उदाहरण देते हुए राग और अनुराग में अंतर समझाया। कहा कि राग हमेशा अपने स्वार्थ सुख की चिंता करता है, जबकि अनुराग तत्सुख का चिंतन करता है। राग अपने स्वार्थ को साधने के लिए दिखावा करता है, नाटक करता है। सूर्पणखा राम की सुंदरता पर मोहित थी। जबकि सबरी रामचंद्र जी को, इसलिए जूठे बेर खिला रही थी कि प्रभु को खट्टे बेर नहीं मिले।
धर्म का संबंध करूणा से है
श्री शास्त्री ने कहा कि कट्टरता से धर्म का संबंध नहीं है। धर्म का संबंध सत्य से है, संख्या से नहीं। जिस दिन धर्म में कट्टरता आ जाए धर्म समाप्त होने लगता है। धर्मांतरण जैसा कोई अधार्मिक कार्य हो ही नहीं सकता है। हमें हिन्दू धर्म को परम वैभव पर पहुँचाना हैं। यदि हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा।
भागवत का कार्य है विवेक को जागरूक करना
आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री ने कहा कि जीवन में सही मार्गदर्शन के लिए सदगुरु सत्संग की आवश्यकता है। असत्य का त्याग ही सत्संग है। भागवत कथा सिर्फ एक बार सुनने की चीज नहीं है, यह रेगुलर सुनने की चीज है। जिस तरह दवा रेगुलर यूज करने से फायदा पहुंचाती है, उसी तरह कथा भी जीवन को संवारती है। जिसमें रुचि होती है, लोग पहले वही करते हैं। यही कारण है कि लोग कथा छोड़ वेब सीरीज देखने लगते हैं। कथा के तीसरे दिन भाजपा जिलाध्यक्ष प्रवीण सुराणा, कोषाध्यक्ष महावीर भंडारी, संयोजक हेमंत भट, ठाकुर डूंगरसिंह राठौर, अशोक भटेवरा सहित समूचे अंचल से हजारों की तादात में श्रद्धालु उपस्थित थे।


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