पाप भोग से होता है और धर्म त्याग से होता है, जब तक ऐसी सही समझ जीव को नही आएगी तब तक वह परतंत्र बना रहेगा
पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब
सही समझ के आभाव में जीव अनंत काल से भटक रहा है क्योकि वह दाम, चाम और धाम में पड़ा हुआ है और इनमें यदि राम (सही समझ) नही है तो फिर बंटाढार है।
गुरूदेव ने फरमाया की अन्याय, अनीति और पाप का धन जुटाने में व्यक्ति ये नही सोचता कि ये मुझे अंडरग्राउंड (नरक) ले जाएगा। दाम (पैसा) में यदि राम नही है तो संक्लेश और संघर्ष हुए बिना रह नहीं सकते। ऐसे ही चाम (शरीर) में राम नहीं है उसका दुरुपयोग किया तो दुर्गति का मेहमान बनना ही पड़ेगा। धाम में राम नही है, घर मे धर्म नही है, घर मे महफिले हो रही है तो निश्चित भव बिगड़ेगा।
यदि जीव में सही समझ नही है तो उसे हमेशा परतंत्र ही बनना पड़ेगा।
जीव सात प्रकार से परतंत्र बना हुआ है।
पहली कर्म परतंत्रता- कर्म परतंत्रता के कारण जीव कभी भी मनचाहा नही कर सकता है। कई बच्चे डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, सीए बनाना चाहते है लेकिन कर्म परतंत्रता के कारण नही बन पाते है। अनन्त शक्ति संपन्न भगवान को भी कर्म ने परतंत्र बना दिया, छः माह खून के दस्त हुए, वाचना उपदेश सभी बन्द हो गए, जब भगवान भी कर्म से नही बच पाए तो तुम किस खेत की मूली हो। इसलिये जब कर्म सत्ता में हो तब साधना करना, उदय में आये तो सहन करना और कर्मबन्ध के समय सावधान रहना। यदि आज तुम्हारे पास धनबल, बुद्धिबल, सत्ताबल मिला है तो क्यो हेकड़ी दिखाते हो याद रखना दाल पतली हो जाएगी, अंडर ग्राउंड जाना पड़ेगा।
दूसरी विकार परतंत्रता- जीव इंद्रियों की कषाय की डोरी में बंधा हुआ है। मन और आत्मा का युद्ध हो और मन जीते तो गुलाम और आत्मा जीते तो समझना स्वतंत्र हो गए। जीव करता तो क्रोध है और कहता है कि ये कंट्रोलिंग पावर है। करता मान है और बोलता है ये स्टेटस है। करता माया है और कहता है ये सेल्समैनशिप है और करता लोभ है और कहता है ये इनवेस्टमेन्ट है। वाह रे भले आदमी जब तक इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं करेगा भव कैसे सुधरेगा।
तीसरी संज्ञा परतंत्रता- जीव चार संज्ञा आहार, भय, मैथुन और परिग्रह संज्ञा से ग्रस्त है। संसार मे एक भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसमें भय न हो, ये भय क्यों है क्योंकि पिछले भव में हम भी किसी को डरा कर आये है। जीवों को अभयदान दो, उनको साता पहुंचाओ तो अगले भव में डरने की जरूरत नहीं पड़ेगी। परिग्रह संज्ञा के कारण करोड़पति भी चौकीदार बना हुआ है।
चौथी मिथ्यात्व परतंत्रता- पाप किसमें है जीव को यही अभी तक पता नहीं तभी तो उसका भव भ्रमण जारी है। त्याग में धर्म नहीं मानना और भोग में पाप मानना नहीं, यही तो मिथ्यात्व है और अंडरग्राउंड (नरक) जाने का कारण है। संयम में रुचि पैदा करो तो आत्मा का उत्थान होगा।
पाप भोग से होता है और धर्म त्याग से होता है, जब तक ऐसी सही समझ जीव को नहीं आएगी तब तक वह परतंत्र बना रहेगा।
पांचवी गति परतंत्रता- जीव अनंत काल से चार गति में भटक रहा है। दुर्लभता से मनुष्य योनि मिली तो उसका सदुपयोग करो क्योंकि सिर्फ मनुष्य योनि से ही आत्मा मोक्ष जा सकती है और सही समझ के चलते ही दुर्गति से बचा जा सकता है। संसार मे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसके पास समय नहीं है, जो समय गया सो गया लेकिन आज से सचेत हो जाओ और आत्मा के उत्थान और चार गति का अंत करने के लिए आज से ही समय निकालो।
चार गति से छुटना है और स्वतंत्र बनना है तो धर्म मे लीन होना ही पड़ेगा।
छठी देह परतंत्रता- जीव को शरीर की गुलामी करते अनंत काल निकल गया है। ये जीव शरीर की खूब देख भाल करता है और एक दिन शरीर ही आत्मा को धोखा दे देता है। इस आत्मा की बेड़ी है ये शरीर, इसे अब देह रहित बनाओ और शरीर का मोह त्याग दो।
सातवी परिवार परतंत्रता- जीव परिवार में उलझा हुआ है । जब उसे लगता है कि अब सब कुछ सेट हो गया तभी कुछ ऐसा होता है कि वह अपसेट हो जाता है। तुम हमेशा नारद और मन्थरा जैसे लोगो से बच के रहना क्योकि ये तुम्हे कब छू लगा देंगे व तुम्हारी व परिवार की शांति भंग कर देंगे पता ही नही चलेगा। ऐसे ही जीव परिवार का भी परतंत्र है ।
इन सभी परतंत्रताओ से स्वतंत्र होना चाहते हो तो गुरु आज्ञा को शिरोधार्य कर लो।
गुरु के प्रति परतंत्रता, ही स्वतंत्रता का मूल मंत्र है ।गुरु की आज्ञा को तहत्ती करके उनके वचन को स्वीकार कर लो तो शीघ्र ही आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है ।
उक्त बातें पूज्य गुरुदेव के प्रवचन अंश से ली गयी है, भूलवश जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कड़म।
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उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 15 अगस्त 2022 के प्रवचनों से साभार


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