सामने वाले का व्यवहार कैसा है यह महत्वपूर्ण नही है तुम्हारा व्यवहार कैसा है यह महत्वपूर्ण है

कैंसर का कीड़ा तो एक बार फिर भी निकल सकता है लेकिन शंका का कीड़ा लाइलाज है, शंका का कीड़ा व्यक्ति को जिंदा जला देता है

उक्त विचार सयंम सुमेरु, कर्म सिद्धांत के ज्ञाता पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब ने  व्यक्त किये। 

आप संसार के अंदर कुटुम्ब, परिवार, मित्र आदि के साथ रहते है। उन्होंने आपसे अच्छा व्यवहार किया वह याद रखते है या बुरा व्यवहार किया है वह याद रखते है ? 
सामने वाले ने आपके साथ दस अच्छे व्यवहार किये उसे तो आप भूल जाते हो और एक बुरे व्यवहार को दिमाग मे फ्रीज (जमा) कर लेते हो तो बताओ कैसे शांति और समाधि मिलेगी।

गुरुदेव फरमाते है कि घर से कचरा बाहर निकाल देते हो, सब्जी का कचरा बाहर फेंक देते हो, कपड़े, फर्नीचर आदि खराब होने पर उसे भी घर से बाहर निकाल देते हो तो फिर खराब वचनों को, अशुद्ध भाव को अंदर क्यो घुसा के रखते हो यही तो अशांति का कारण है, ये ही तो गति के चक्कर को बड़ा रही है। 

सामने वाले का व्यवहार कैसा है यह महत्वपूर्ण नही है तुम्हारा व्यवहार कैसा है यह महत्वपूर्ण है। बताओ तुम रास्ते मे जा रहे हो और कुत्ता तुम पर भौक रहा है तो तुम क्या करोगे ? उस पर ध्यान नही दोगे, तुम तो नही भौंकोगे ना, क्योकि यदि तुम भी भौकोगे तो लोग तुम्हे ही पागल कहेंगे। जब तुम यहाँ कुछ नही कहते हो तो कोई भी तुम्हे कुछ भी बोले, तुम क्यो उस पर ध्यान देते हो।
 
द्रव्य काल क्षेत्र से अपनी आत्मा ने बहुत परिवर्तन किए है लेकिन भाव के परिवर्तन किए बिना जीव को मोक्ष की प्राप्ति नही होगी। अपने को किसी भी प्रकार की प्रतिकूल स्थिति आये किसी दूसरे को प्रताड़ित नही करना क्योकि यह सब स्वयं के कर्मो का ही दोष है।
 
प्रबल पूण्य के उदय से तुम्हे मनुष्य जन्म मिला है। सामने वाले ने क्या किया है यह मत सोचो, तुमने क्या किया है यह सोचना। पूण्य से राशि कितनी भी एकत्रित हो जाये लेकिन भाव सुधारे बिना शांति नही मिलेगी। 

गुरुदेव कहते है कि कैंसर का कीड़ा तो एक बार फिर भी निकल सकता है लेकिन शंका का कीड़ा लाइलाज है, शंका का कीड़ा व्यक्ति को जिंदा जला देता है। 

गर्भ अवस्था मे दिए गए संस्कार बच्चे में हमेशा रहते है। इसके कई उदाहरण है, महाभारत में अर्जुन अपनी पत्नी को गर्भवस्था में चक्रव्यूह तोड़ने के बारे में बताते है तभी अभिमन्यु उसे सीख लेते है। माता को नींद आने से उससे बाहर निकलना नही सीख पाए। तो आज की माताएं भी सावधान रहना, धर्मआराधना करते नींद मत लेना। 

जो गर्भवती महिला जिनवाणी सुनती है, तीर्थंकर चरित्र पढ़ती है, धर्म आराधना में लीन रहती है वह संस्कार बच्चो में हमेशा रहते है। 

कर्म की गति बहुत न्यारी है जीव सोचता क्या है और होता क्या है। जिस रात को पूरी अयोध्या नगरी अपने चहेते राजा राम के राज्यभिषेक के लिए आनंद व उत्सव में रत थे लेकिन सूर्य उदय होते ही सारी प्रजा व परिजन दुख व शोक मग्न हो गए क्योकि कर्म सत्ता को मंजूर नही था, और इतनी बड़ी बात के लिए राजा रामचन्द जी ने किसी को दोष नही दिया, बल्कि स्वयं के कर्मो का उदय बोलते हुए बिना द्वेष के, सहज भाव से वन चले गए क्योकि उनके भाव बदल गए थे। 

दुनिया मे रायचंदो की कोई कमी नही है, सलाह देने वाले तो हर गली में मिल जाएंगे लेकिन सहकार (सहयोग) देने वाले नही मिलते। 

सती अंजना के कथानक में बताया कि सती अंजना पर व्यभिचारी, चोरी, झूठ का कलंक उनकी सास ने लगाया, उन्हें घर से बाहर निकाल दिया फिर भी सती अंजना ने किसी को दोष नही दिया, बल्कि स्वयं के कर्मो का ही दोष मानते हुए उसे सहज भाव से सुन लिया। बिना भाव बदले जीव को शांति समाधि नही मिलेगी।
उक्त प्रवचन प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक, संयम सुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र  परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब के करही के सफलतम चातुर्मास 2022 के प्रवचनों से साभार

संकलंकर्ता:-✍🏻विशाल बागमार - 9993048551
डा. निधि जैन - 9425373110




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