जब पूण्य उदय से शक्ति सम्पत्ति सत्ता का बल मिले तो "सहाय" करना वरना बाद में "हाय हाय" करना पड़ेगा -
कर्म सिद्धांत के ज्ञाता, पूज्य गुरुदेव गुलाबमुनिजी म.सा.
ये संसार दुख का घर है और ये शरीर रोग का घर है ये दोनों कब आएंगे पता नही।
ज्ञानी कहते है कि सावधान रहो क्योकि स्वयं के दोष के बिना किसी को दुख आता नही है, वह दोष चाहे इस भव का हो या पिछले भव का।
उक्त विचार सयंम सुमेरु, कर्म सिद्धांत के ज्ञाता पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में व्यक्त किये।
गुरूदेव ने फ़रमाया की तुम जैसे टेंडर भर कर आये हो वैसा यहाँ खुल रहा है फिर क्यो दुसरो को दोष देते हो।
जीवन मे कुछ बाते समय समझता है और कुछ बाते वय (उम्र)। इसलिए उतावलापन नही करना, दुख आये तो धैर्य रखना और हँसते हुए धैर्य रखो या रोते हुए, बिना धैर्य के दुख दूर नही होंगे।
जीवन मे भाव परिवर्तन के बिना सुख शांति समाधि की प्राप्ति नही हो सकती है।
आप सोचते हो भाव परिवर्तन में क्या करना ? बस हमेशा ये सोचना की मैं स्वयं कर्म का कर्ता हूँ, और स्वयं ही कर्म का भोक्ता हु और स्वयं ही कर्म को नष्ट करने वाला हूँ।
यदि तुम्हारा पूण्य का उदय है तो संसार की कोई ताकत तुम्हारा बाल बिगाड़ नही सकती और पाप के उदय में संसार की कोई ताकत तुम्हें बचा नही सकती, फिर क्यो दुसरो को दोष देना की तूने मेरा ऐसा कर दिया और वैसा कर दिया। अरे भाई किसी ने कुछ नही किया ये सब तो कर्मो का खेल है बाकी तो सभी निमित्त है, माध्यम है।
इस दुनिया मे कोई अपराधी, विरोधी और दुश्मन नही है तुम्हारा, ये सब तुम्हारे कर्म के कारण ही हो रहा है।भाव बदल लोगे तो कर्म बंध नही बंधेगे और मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा। खन्दक मुनि, पुनिया श्रावक, सति अंजना आदि कई आत्माओं ने भाव बदले तो उनका भव सुधर गया।
आदमी मुहूर्त के चक्कर मे पड़ा हुआ है अरे जब तुम्हारा जन्म हुआ वह बिना मुहूर्त के हुआ, मरण होगा वह भी बिना मुहूर्त के तो इस चक्कर मे क्यों पड़ते हो।
राजा राम के राज्याभिषेक के लिए भी महागुरु वशिष्ठ ने श्रेष्ठ मुहूर्त निकाला था लेकिन उसी मुहूर्त में उन्हें वनवास जाना पड़ा क्यो ? क्योंकि कर्मसत्ता को यह मंजूर नही था।
किसी के जीवन मे टांग अड़ाना यानी स्वयं के जीवन मे टांग अड़ाना होता है।
जब तुम्हे पूण्य उदय से शक्ति सम्पत्ति व सत्ता का बल मिला है तो लोगो को "सहाय" करना वरना बाद में "हाय हाय" करना पड़ेगा।
साधनों के पीछे मत पड़ो क्योंकि साधनों से कभी सुख नही मिलता, सुख व शांति तो साधना करने से मिलती है।
भाव बदलने वाला व्यक्ति ही सीधा, सरल रह सकता है। कोई भी दुख आये तो खुद के कर्मो को ही दोष देना, दुसरो को दोष दोगे तो कर्म तो कटेंगे नही और फिर नए सिरे से टेंडर भरा जाएगा और टेंडर भरा तो फिर दुख भोगो, इसलिए इस चक्र को यही समाप्त करो तो यहाँ भी आनंद और वहाँ भी आनंद।


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