5/5/23 प्रवचन बुरहानपुर
उदय में आए हुए कर्मों का फल भोगना निश्चित है
उक्त बात प्रवचन प्रभावक, प्रखर वक्ता तपस्वीराज परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने आनंद भवन बुरहानपुर मे फरमाया की
प्रभु महावीर ने उत्तराध्यान सूत्र में तीसरे अध्ययन में बताया कि उदय में आए हुए कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता -
"कडाण कम्माण ण मोक्ख अट्ठी" अर्थात कर्मों को तभी तक बदला जा सकता है जब तक कि वे उदय में ना आए हो उदय में आए हुए कर्मों का फल भोगना निश्चित है। इसके लिए कथाकार एक दृष्टांत देते हैं कि एक सुतार था वह फर्नीचर बनाने का काम करता था। उसके ऊपर बहुत कर्जा हो गया था बहुत परेशान था। घूमते घूमते गांव के बाहर गया वहां उसे चोरों की टोली मिली चोर के सरदार ने पूछा- भाई ! तुम बहुत परेशान लग रहे हो ? उसने कहा कि हां बहुत परेशान हूं कर्जा बहुत बढ़ गया है। तब चोरों के सरदार ने कहा कि - आ जाओ हमारी टोली में अच्छी इनकम होगी धीरे-धीरे कर्जा भी चुक जाएगा। सुतार को सरदार की बात जच गई। वह चोरों की इस टीम में शामिल हो गया। एक दिन उन्होंने एक सेठ जी के घर चोरी करने की योजना बनाई। रात में चोर मिलकर चोरी करने गए। पहले लकड़ी के बड़े-बड़े दरवाजे होते थे। सेठ जी के यहां भी बहुत मजबूत और बड़ा दरवाजा लगा था। चोरों के सरदार ने कहा कि- तुम सुतार हो कांटो दरवाजा। सुतार ने दरवाजा काटते हुए अपनी कारीगरी बताई। अपनी होशियारी दिखाते हुए कंगूरे रखें अब उसके काटने की आवाज से अंदर सेठ जी और उनके चारों बेटे जाग गए। वे समझ गए कि जरूर चोर आए हैं और वह सेंध लगा रहे हैं। उन्होंने भी योजना बनाई कि जैसे ही कोई अंदर आते जाएंगे हम उनको पकड़ लेंगे। अब चोरों के सरदार ने कहा कि जो सबसे पहले अंदर जाएगा उसको आधा हिस्सा मिलेगा तो सुतार ने सोचा कि अच्छे बड़े घर में चोरी हो रही है और आधा हिस्सा मिलेगा तो मैं तो मालामाल हो जाऊंगा और मेरा कर्जा बहुत जल्दी समाप्त हो जाएगा। तो सुतार ने कहा कि सबसे पहले मैं जाऊंगा। चोरों का सरदार खुश हो गया। वह अंदर घुसने के लिए सिर डालने लगा। अबे ! चोर लोग कभी भी अंदर जाते समय पहले पैर अंदर डालते हैं तो वैसे ही वह सुतार ने अपने दोनों पैर अंदर डालें अब उसका आधा शरीर अंदर और आधा शरीर बाहर। अभी इधर सेठ जी और उनके चारों बेटे भी तैयार खड़े थे जैसे ही उसके पैर अंदर आए उन्होंने उसके पैर पकड़ लिए सुतार चिल्लाया तो और इधर उसका धड़ बाहर था तो चोरो ने धड़ पकड़ ली सेठ जी अंदर खींचे और चोर बाहर खींचे और वह जो कंगूरे डिजाइन बनी थी उसके पूरे शरीर में चुगने लग गई। इसीलिए ज्यादा होशियारी अपने को ही महंगी पड़ती है। जिस तरह से सेंध लगाता हुआ चोर पकड़ा जाता है, सजा पाता है उसी तरह से उदय में आए हुए कर्मों को भोगाना पड़ता है।
हराम का अन्याय अनीति का पैसा कभी भी पचता नहीं।
पाप किसी का सगा होता नहीं और पुण्य किसी को दगा देता नहीं
इसलिए हराम का पैसा कभी घर में लाना नहीं हराम का पैसा कभी भी पचता नहीं वह तीन रास्ते से निकलता है
पहला डॉक्टर यदि आपने आपके घर में हराम का पैसा आया है तो आपको ए बी सी डी लग सकती अर्थात ए मतलब अटैक, बी मतलब ब्लड प्रेशर, सी याने कैंसर, डी अर्थात डायबिटीज और उसके आगे इ लग जाएगा याने end of life ।
दूसरा रास्ता है डाकू या तो कोई आपके घर चोरी हो जाएगी या रास्ते में कोई पैसा लूट लेगा, बैग छीन लेगा।
तीसरा रास्ता है या तो रेड पड़ेगी सीबीआई की जांच होगी ईड़ी की जांच होगी या फूड इंस्पेक्टर आ जाएगा किसी भी रास्ते से पैसा चला जाएगा। इसीलिए हराम का पैसा घर में लाना नहीं हराम का पैसा कमाना नहीं ईमानदारी से भले कम कमाओ लेकिन ईमानदारी का कमाओ हराम का पैसा यदि आपने कमाया तो आपके लिए अंडर ग्राउंड तैयार है, 7 मंजिल की हवेली तैयार है। तो तय आपको करना है कि आपको ऊपर की 12 मंजिल के बंगले (देवलोक) में जाना है या नीचे की 7 मंजिल की हवेली (नरक) में जाना है।
एक बनिया था उसका पूरा परिवार खत्म हो गया था वह अकेला था और उसकी आंखें भी चली गई थी बेचारा अपनी जिंदगी से बहुत परेशान हो गया था। रोज मांग - मांग कर खाना तो उसने सोचा कि इससे तो मर जाना अच्छा इसलिए वह मरने की कोशिश कर रहा था। उसको एक 'रायचंद' मिल गया उसने कहा भाई क्यों मर रहे हो ? वह बोला मैं मेरी जिंदगी से बहुत परेशान हो गया हूं। रायचंद ने कहा तो वैसे भी तुम मर रहे हो तो एक प्रयोग करो गांव के बाहर जंगल में एक देवी का मंदिर है। कहते हैं कि वहां हर मनोकामना पूरी होती है तो तुम भी वहां अपनी मनोकामना मांग कर देखो वैसे भी तो मर रहे हो। उसने कहा कि अब मैं मंदिर तक कैसे जाऊंगा रायचंद बड़ा भला आदमी था उसने कहा कि चलो मैं तुम्हें मंदिर तक छोड़ देता हूं। उसने उसे मंदिर तक छोड़ दिया। बनिया को वहां मंदिर के ओटले पर बिठा दिया और रायचंद वहां से चला गया। अब वहां दिनभर माता का जप साधना करने लग गया। 1 दिन, 2 दिन, 3 दिन ऐसे 8 दिन हो गए 8 दिन में देवी प्रकट हुई। देवी ने सोचा यह तो अंधा है, पैसा लेकर क्या करेगा और आंखें दी तो पैसा नहीं है तो क्या करेगा। देवी ने उससे कहा कि मैं तुम्हें कोई भी एक चीज दूंगी या तो आंखें दूंगी या पैसा। ठीक है माता जी आप मुझे एक ही चीज देना। देवी ने कहा कि मांगों तुम्हें जो मांगना है 7 मंजिल की हवेली में सातवीं मंजिल पर मैं अपने पोते को सोने के झूले में बिठाकर सोने की थाली में भोजन करते हुए देखना चाहता हूं। देवी को तो तथास्तु कहना ही था क्योंकि वह वचन से बंधी हुई थी। उस बनिया ने आंखें तो मांग ही ली दीर्घायु के साथ पैसा और परिवार भी मांग लिया। अर्थात देवी को भी' बना' दिया।
यह तो एक रूपक है कि बनिये ने देवी को भी बना दिया। किंतु सोचिए क्या कभी कोई कर्म सत्ता को बना सकता है ? कर्म सत्ता को कोई नहीं बना सकता।
अतः कर्म बंध में सावधानी बहुत आवश्यक है। अन्याय अनीति हराम - हाय का पैसा कभी नहीं लाना चाहिए। वर्तमान में लोगों ने आवश्यकताएं बहुत अधिक बढ़ा ली हैं और उनकी पूर्ति करने के लिए चाहे जैसे हथकंडे अपनाए जाते हैं। आवश्यकता ही कम कर दी जाए तो अनावश्यक भागा दौड़ी नहीं करनी पड़ेगी और जीवन में शांति समाधि आएगी।


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