प्रवचन हरदा 28 मार्च 2023
कर्म सत्ता किसी के ऊपर रहम नहीं करती, कर्म सत्ता जैसी ईमानदार कोई सत्ता नहीं
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प्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज सहाब ने हरदा के धर्म स्थान में फरमाया -
कर्म सत्ता किसी के ऊपर रहम नहीं करती, कर्म सत्ता जैसी ईमानदार कोई सत्ता नहीं
भगवान महावीर ने अपने ज्ञान में देखकर बतलाया है कि हमारी आत्मा अनंत शक्ति संपन्न है। हमें अपनी शक्ति पहचानने का पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। धैर्यता के बिना कोई काम सफल होगा नहीं। आज हम सभी दुख के दास बन बैठे हैं।
धर्म के दास बनेंगे तो कभी किसी का दास नहीं बनना पड़ेगा।
कर्म अगर उदय में आया है तो भुगतना तो होगा ही। भगवान महावीर स्वयं तीर्थंकर बन गए, देवों के देव 64 इंद्र सेवा में थे फिर भी उन्हें 6 महीने तक खून के दस्त लगे। 12 देवलोक के इंद्र जो कि लौकिक क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली होते हैं वे भी भगवान को ठीक ना कर पाए।
अगर हम बीमार है तो डॉक्टर हमें बीमारी दूर करने का उपाय बताएगा, दवाइयां हमें स्वयं ही लेनी होगी। ठीक उसी प्रकार साधु साध्वी जी हमें दुख दूर करने का मार्ग दिखाते हैं, उस मार्ग में हमें स्वयं ही चलने का पुरुषार्थ करना होगा।
हमारी आत्मा अनंत शक्ति संपन्न है। हमें अपने दुखों को दूर करने के लिए कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है। हमारे कर्म (धर्म आराधना ) स्वयं ही हमारे दुख दूर को करने की क्षमता रखते हैं। अगर हमें भूख लगी है तो खाना भी हमें ही खाना होगा ।
राजा के राज महल में एक बेटे का जन्म हुआ। उसी समय कुछ ही दूरी पर एक भंगी के यहां भी एक बेटे का जन्म हुआ। देखा जाए दोनों की कुंडलियां और ग्रह एक ही है परंतु उनके पूर्व कर्मों के कारण एक का जन्म राज करने के लिए और दूसरे का जन्म दुख भोगाने के लिए हुआ।
इसीलिए कहा गया है - " पाप कर्म किया है तो दुख आएगा ही और पुण्य कर्म किया है तो सुख को आने से कोई नहीं रोक सकता।"
भीम को मारने के लिए दुर्योधन ने कई बार उसे जहर देने की कोशिश की, पर हर बार असफलता ही हाथ लगी। क्योंकि भीम के पुण्य कर्म प्रबल थे।
इसीलिए ज्ञानी जन फरमाते हैं - " कर्म उदय में आने के बाद कोई बदल नहीं सकता, इसलिए कर्म उदय में आने के पहले ही आराधना कर लेनी चाहिए। धर्म आराधना से पुराने पाप कर्मों का पावर कम होता है और उसे सहन करने की शक्ति बढ़ जाती है।
जैसा सप्लाई होगा वैसा ही रिप्लाई आएगा। जैसा एक्शन होगा वैसा ही रिएक्शन होगा।
दुख से जीव घबराता है इसीलिए दुखी होता है। हमें समय, शक्ति और संपत्ति तीनों को बचाने का और सदुपयोग करने का पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। हमें हमेशा दूसरो के लिए प्रतिकूल बनने से बचना चाहिए। हमें निरंतर करुणा के भाव लाने का प्रयास करना चाहिए।
पांचवा आरा दुखम आरा है। दुख लकड़े के जैसा होता है। यदि हम 1 टन के लकड़े को हिलाने का प्रयास करें तो हमें मुश्किल होगी। यदि वही लकड़ा पानी में डाल दिया जाए तो आसानी से हिलाया जा सकता है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि लकड़ा पानी से ही उत्पन्न होता है अतः उसे स्वीकार कर लेता है। और जिसे स्वीकार कर लिया जाता है उसका भार महसूस नहीं होता। लकड़ी जब पानी में होती है तो पानी लकड़ी का भार अपने अंदर ले लेता है और लकड़ी का वजन हल्का हो जाता है। उसी प्रकार जो दुख हमें आए हैं वह हमारे हैं उसे हमने पैदा किया है। हम भी अगर हमारे दुखों को स्वीकार करेंगे तो वह भी हल्के महसूस होने लगेंगे।
संसार में ऐसा कोई दुख नहीं है जिसे बेचा जा सकता है और ऐसा कोई सुख नहीं है जिसे खरीदा जा सकता है।
अगर बीमारी को ठीक करना है तो वह करना चाहिए जो डॉक्टर ने कहा है। वैसे ही अगर जीवन को सुधारना है तो वह करें जो भगवान ने फरमाया है।
भाव के साथ साथ क्रिया भी करनी होगी तभी सुख की प्राप्ति संभव है।
संकलंकर्ता:- महक बाफना, हरदा
डा. निधि जैन
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