प्रवचन हरदा
स्वभाव , सदभाव और समभाव की शक्तिप्रखर वक्ता, प्रवचन प्रभावक परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज सहाब ने हरदा के धर्म स्थान में फरमाया कि एक साधक ने ज्ञानी भगवान से पूछा - "भगवन मैं दो टाइम की सामायिक, प्रतिक्रमण, त्याग और तप यह सभी करता हूं फिर भी मुझे जीवन में शांति क्यों नहीं है ? ज्ञानी भगवान ने फरमाया - जीवन में शांति पाने के लिए तीन बातों का अवश्य ध्यान रखें -
पहली स्वभाव को सुधारो, दूसरी सदभाव को बढ़ाओ और तीसरी समभाव में पधारो
कैंसर और क्रोध दोनों एक ही राशि के हैं लेकिन कैंसर जब आखिरी स्टेज पर हो तो दुश्मन भी पास आ जाते हैं और क्रोध जब आखिरी स्टेज पर हो तो बेटा भी दूर हो जाता है. हमेशा लेट गो का एटीट्यूट रखें पॉजिटिव एटीट्यूट रखें. जिस प्रकार बाजार में बोर्ड लगा होता है जिस पर रुको, देखो और चलो लिखा होता है उसी प्रकार हमें भी हमारे जीवन के निर्णय सोच कर, देख कर ही लेना चाहिए, अगर हम ऐसा करते हैं तो हम प्रतिसन्नलीनता तप का लाभ लेते हैं, लोभ प्रतिसन्नलीनता का लाभ लेते हैं और इंद्रिय प्रतिसन्नलीनता का लाभ लेते हैं।
अच्छा सोचने से, मन में शुभ विचार लाने से हमे पाँच फायदे होते हैं -
1.अशुभ कर्म कटते है।
2.नए अशुभ कर्म नहीं बंधते है।
3.नए शुभ कर्म का बंध होता है।
4.मानसिक साता वेदनिय कर्म का बंध होता है।
5.प्रसन्नता की प्राप्ति होती हैं।
संसार में चार प्रकार के दुख बताए गए हैं
शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और आर्थिक
संसार के सभी जीवो को सुख चाहिए, सभी जीना चाहते है, पर आज संसार में सुख बढ़ने की अपेक्षा घटते जा रहा है। देखिए पुराने लोगों को उन्होंने कितना संघर्ष किया कितने उपसर्ग परिसह सहन करें। किन्तु आज दुख है ही कहां ? दुखों को मनुष्य ने अपने मन से निर्मित किया है। मन में वही उत्पन्न करता है फिर सतत चिंता करता रहता है। और सोचता है कि मुझे बहुत टेंशन है अरे भाई! टेंशन तूने खुद ही तो निर्मित किया है। आवश्यक है हम सुख के कारणों को घटाने की बजाए उसे बढ़ाने का प्रयास करें। तभी हमें मरण में समाधि, परलोक में सदगति और मोक्ष गति प्राप्त हो सकती है।
सुख के कारण क्या है, दया परोपकार तब त्याग आदि
"टेंशन के दो कारण बताए गए हैं- मन की बात ना होने पर और अपनी बात ना सुनी जाने पर"
"जीव स्वयं ही कर्म का करता और भोक्ता है जब दुखों का निर्माण हमने स्वयं किया है तो दूसरों को अपराधी क्यों मानना"
"पाप किसी का सगा होता नहीं, पुण्य किसी को दगा देता नहीं"
संकलंकर्ता:- महक बाफना हरदा
डा. निधि जैन

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