संयम की सुगंध से महका थांदला: नव्या शाह ने चुना मोक्षमार्ग, दीक्षा से पहले हुआ भव्य बहुमान समारोह
17 अप्रैल 2025 सम्यक दृष्टि न्यूज़नव्या शाह 30 अप्रैल को लेंगी जैन भागवती दीक्षा, किया गया भावभीना बहुमान
थांदला. संयम और आत्मनियंत्रण की कठिन राह को अपनाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। पर जिसने इस मार्ग को चुना, वह वास्तव में चंदन के समान सुगंधित हो जाता है। ऐसे ही संयम की मिसाल बनी हैं नगर की 17 वर्षीय नव्या शाह, जो इस महीने के अंत में जैन भागवती दीक्षा ग्रहण कर संसारिक बंधनों से मुक्त हो आत्मकल्याण की ओर अग्रसर होंगी। इस शुभ अवसर पर जैन श्वेतांबर महावीर भवन, थांदला में उनके परिवार द्वारा एक भावभीना बहुमान समारोह आयोजित किया गया, जिसमें समाज के गणमान्यजनों ने भाग लिया और नव्या के इस निर्णय की मुक्तकंठ से सराहना की।
संयम मार्ग अपनाने वाला व्यक्ति चंदन के समान सुगंधित होता है: श्रीमती प्रीति मूणत
समारोह की मुख्य वक्ता रहीं रतलाम की धर्मश्राविका श्रीमती प्रीति मूणत। उन्होंने अपने भावपूर्ण वक्तव्य में कहा, “जिस शख्स ने संयम का मार्ग चुना, वह सबसे चंदन के समान सुगंधित हो जाता है।” उन्होंने आगे कहा कि यह भूमि – थांदला – स्वयं में धन्य है, क्योंकि यह श्री जवाहरलाल जी म. सा. की जन्मस्थली है। यहां संयम, त्याग और तपस्या की प्रवाहमान धारा बहती है, जो आज नव्या शाह जैसे नवयुवकों के माध्यम से और भी व्यापक होती जा रही है।
उन्होंने श्रद्धा से कहा कि जब श्री उमेश मुनिजी म. सा. जैसे विरले संतों की तपस्या और साधना के पश्चात उनकी दृष्टि किसी श्रावक पर पड़ती है, तो वह श्रावक जीवनपर्यंत के लिए निहाल हो जाता है। संयम का मार्ग केवल आत्मनियंत्रण ही नहीं, बल्कि समर्पण, सेवा, और संकल्प की एक लंबी यात्रा है। इस मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और मानसिक शुद्धता की आवश्यकता होती है।
श्रीमती मूणत ने यह भी कहा कि इस संसार में जीव जन्म लेता है और उस पर माता-पिता का अनंत उपकार होता है, जिसका ऋण कोई नहीं चुका सकता। नव्या शाह ने अपनी दीक्षा से पहले यह स्पष्ट किया कि वे इस ऋण को आदर्श आचरण और धर्म साधना के माध्यम से उतारने का प्रयास करेंगी।
संयम का मार्ग कठिन पर आत्मकल्याण की ओर ले जाने वाला है: नव्या शाह
इस आयोजन में नव्या शाह ने स्वयं अपने विचारों को शब्द दिए। उन्होंने गहरी गंभीरता के साथ कहा, “यह संसार एक भूल-भुलैया है, एक गहरा सागर है। यह संसार एक जेल के समान है, जिसमें केवल एक ही दरवाज़ा है—संयम का। इस संसार सागर में पाप की लहरें चारों ओर उठती हैं और केवल संयम के नौका द्वारा ही इसे पार किया जा सकता है। मैंने यह मार्ग इसलिए चुना है ताकि मैं पापों से मुक्त होकर धर्म आराधना कर सकूं और भवसागर को पार कर सकूं।”
नव्या के विचार सुनकर उपस्थितजन भावविभोर हो उठे। इस मौके पर समाजसेवी रजनीकांत झामर, सुशील गोरेचा, मनसुख गांधी (रतलाम), और नागिन शाहजी (थांदला) ने भी सभा को संबोधित किया। सभी वक्ताओं ने नव्या शाह के निर्णय की भूरी-भूरी प्रशंसा की और इसे समाज के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बताया।
नव्या शाह के दादा-दादी व माता-पिता का बहुमान, भावुक हुआ माहौल
समारोह में नव्या शाह के दादा-दादी – श्रीमती चंद्रकांत सुजानमाल शाहजी, तथा माता-पिता – रीना मनीष शाहजी का सार्वजनिक बहुमान भी किया गया। यह पल अत्यंत भावुक कर देने वाला था, जहां एक ओर माता-पिता की आंखों में अपनी पुत्री के आत्मिक उत्थान की खुशी थी, तो दूसरी ओर विरह की छाया भी थी। फिर भी, उन्होंने नव्या के निर्णय को पूर्ण समर्थन देते हुए उसे आत्मकल्याण की ओर अग्रसर होने के लिए आशीर्वाद दिया।
महेशचंद्र शाहजी बने आयोजन के लाभार्थी, समाज की सहभागिता रही सराहनीय
इस आयोजन के प्रमुख लाभार्थी महेशचंद्र शाहजी थे, जिनके सत्प्रयासों से यह समारोह अत्यंत भव्य और स्मरणीय बन पाया। कार्यक्रम में नगर सहित आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में जैन समाजजन शामिल हुए। महिलाओं, बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों सभी ने नव्या की संयम यात्रा को श्रद्धा और आदर के साथ स्वीकार किया।
यात्रा के अंत में सभी समाजजन मूर्तिपूजक श्री संघ में विराजित पूज्य आचार्य श्री जयानंद विजय जी म.सा. के दर्शन लाभ के लिए पहुंचे।
पूज्य आचार्य श्री जयानंद विजय जी म.सा. के दर्शन से हुआ आयोजन पूर्ण
आचार्यश्री से सभी ने नव्या की भावी संयम जीवन के लिए मंगल आशीर्वाद प्राप्त किए। पूज्य आचार्यश्री ने भी नव्या की प्रशंसा करते हुए कहा कि इतने कम उम्र में संयम का यह व्रत लेना अत्यंत दुर्लभ है। यह आत्मा की पुरानी साधना और संस्कारों का ही परिणाम है कि कोई इतने युवा अवस्था में ही मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ने का साहस करता है।
नव्या शाह का यह आत्मिक निर्णय न केवल उनके परिवार बल्कि संपूर्ण समाज के लिए प्रेरणादायक है। आज जब संसारिक आकर्षण और भौतिकता की दौड़ में युवा उलझते जा रहे हैं, वहीं नव्या जैसी आत्माएं संयम और साधना की ओर बढ़कर आत्मिक जागरण का संदेश दे रही हैं।
थांदला की यह पुण्य भूमि, जिसने अनेकों संतों को जन्म दिया है, आज एक और आत्मा के संयम की ओर अग्रसर होने की साक्षी बन रही है। यह आयोजन इस बात का प्रतीक बन गया है कि धर्म, संयम और त्याग की परंपरा आज भी जीवित है, और भविष्य में भी समाज को नई दिशा देती रहेगी।
मीडिया साथी राजेश वैध ने किया समाचार संकलन, आयोजन को दी शब्दों की उड़ान
Dr.Talera's Multi-speciality Dental Clinic, Thandla
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