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सम्यक भाव (सही समझ) के आभाव में जीव अनावश्यक कर्म बांधता है और अपने भव बंधन बढ़ाता है।
पूज्य श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब
डेम में बहुत अधिक मात्रा में पानी है और उसमें छोटा सा छिद्र हो जाए तो क्या होगा, अनर्थ हो जाएगा, छोटा छिद्र धीरे धीरे बड़ा होगा और एक समय बाद फूटने पर बाढ़ आ जायेगी ऐसे ही संसार मे रहते हुए आत्मा ने अनेक छिद्र बनाये रखे और जिससे पाप कर्मों की बाढ़ आ जायेगी और इस कारण से आत्मा चार गति में बह जाएगी।
सम्यक भाव (सही समझ) के आभाव में जीव अनावश्यक कर्म बांधता है और अपने भव बंधन बढ़ाता है।
उक्त विचार आगम ज्ञाता पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब ने फरमाया की
जगत में दो दुख है जिसमे सारे दुख शामिल हो जाते है-
पहला असाता और दूसरा असमाधि। दुख तो है अब इसे दूर कैसे करे तो ज्ञानियों ने इन दुखो को दूर करने के लिए बताया कि अप्रमारी परिवर्तन करने से असाता दुख आता है।
असाता दुख को दूर करने के लिए हमेशा सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव को भी अभयदान दो, छः काय जीवो की रक्षा करो, जीवो की यतना करो और उन्हें सहाय दो तो असाता दुख खत्म हो जाता है।
ऐसे ही क्रोध और मान करने से, किसी का मन दुखाने से, मनभेद, झगड़ा आदि करने से हमेशा टेंशन बना रहता है जिससे असमाधि दुख होता है। असमाधि दुख को दूर करने का उपाय है क्षमादान कर दो।
क्षमा करने से खुद को भी शांति और सामने वाले को भी शांति हो जाती है।
संसार के सारे भौतिक साधन सिर्फ शरीर को सुखी कर सकते है लेकिन आत्मा (मन) को नही, लेकिन यदि क्षमापना का भाव मन में आ गया तो निश्चित ही असमाधि दूर हो जाएगी।
जिनके साथ रह रहे है उन्होंने उल्टा सीधा बोल दिया, अपमान कर दिया, झगड़ा हो गया तो असमाधि हो जाती है तो उसे LET GO करो और सोच लो कि उससे गलती हो गई होगी और उसे क्षमा कर दो तो शांति व समाधि मिल जाएगी।
क्षमा का व्यापार कहा पर होता है ? क्रोध के बाजार में। यदि किसी प्रतिकूलता में तुम्हे क्रोध आ गया तो गड़बड़ ही गड़बड़ और वही यदि LET GO करके क्षमा कर दिया तो समाधि और शांति मिल जाएगी।
गुरुदेव ने पर्युषण के पांचवे दिन फरमाया कि हम पांच पहलुओं पर विचार करेंगे कि क्षमा कौन कर सकता है और कैसे कर सकता है। उसके लिए पांच बिंदुओ पर विचार करते है -
1. स्वभाव - क्षमा का स्वभाव जीव में ही होता है अजीव में नही। और क्षमापना किससे करनी जीव से या अजीव से। कोई लकड़ी से तुम्हारा सिर टकरा गया तो क्या तुम उसे माफी मांगोगे नही, क्योकि वो तो अजीव है । इसलिए क्षमा का स्वभाव जीव में ही है ।
2. भव्यत्व - क्षमा भवी जीव ही कर सकता है अभवी जीव कभी क्षमा नही कर सकता है क्योंकि वह मन मे गांठ बांध लेता है लेकिन अनंत भव्य आत्माओ ने क्षमा के द्वारा मन की गांठ खोलकर इस संसार से बेड़ा भी पार कर लिया है ।
3. काल - जो शुक्ल पक्षी हो वही जीव क्षमा कर सकता है, कृष्ण पक्षी जीव भले ही भवी हो लेकिन वो क्षमा नही कर सकता है । शुक्लपक्षी यानी जिसका संसार का परिभ्रमण काल अर्द्ध पुदगल परावर्तन के अंदर रह गया है वह शुक्लपक्षी और इस काल से ज्यादा समय वाला कृष्णपक्षी।
शुक्लपक्षी ही भूल, पाप और अपराध को स्वीकार क्षमा दे सकता है कृष्णपक्षी नही।
इन तीनो (स्वभाव, भव्यत्व और काल) के लिए कोई पुरुषार्थ करने की जरूरत नही पड़ती है ये तो अपने आप होती है, ये तीनो नियत है और इसे ही तो नियति कहते है।
4.कर्म - हलु कर्मी जीव ही क्षमा प्रदान कर सकता है भारी कर्मी जीव क्षमा नही करेगा।
5. पुरुषकार पराक्रम - क्रोध, मान, भय, असहिष्णुता और दीनता इन सब को जितने का जो पुरुषार्थ करता है वही क्षमा प्रदान कर सकता है इसे जीते बिना क्षमा नही कर सकते है। नम्र बनने से, झुकने से कोई छोटा नही बन जाता है, अभी जिसके सामने अपनी अकड़ बता रहे हो न अगले भव में कर्मसत्ता उसी के सामने झुकायेगी।
लोग कहते है कि कभी में झुक गया तो लोग कायर समझेंगे।
अरे भाई भगवान महावीर स्वामी को साढ़े बारह वर्ष में कितने दुख आये, उन्होंने कितने परिषह को सहन किया लेकिन अनंत शक्तिवान होने के बाद भी कभी भी उन्होंने प्रतिकार नही किया, कष्टों को सहन किया, क्या वो कायर थे नही, अनंत शक्ति के धनी होने पर भी उन्होंने क्षमा भाव रखा और सभी को क्षमा प्रदान की।
हम भी तो उनके ही अनुयायी है और अनुयायी मतलब अनुसरण करने वाला तो हमें भी तो संसार के सभी जीवों को क्षमा देनी है, सभी जीवों के प्रति स्नेह रखना है तभी तो हम भी सिद्ध बनेंगे।
माफ करो, क्षमा करो और आगे बढ़ो। सामने वाला जो कर रहा है उससे उसके कर्म बन्ध रहे है तुम तो क्षमा मांगो, क्षमा दो और अपने कर्मो का नाश करो।
क्षमा कैसे करना है तो क्षमा पांच प्रकार से करते है-
1. उपकार क्षमा
2. अपकार क्षमा
3. विपाक क्षमा
4. वचन क्षमा
5. स्वभाव क्षमा
कुछ विशेष पंक्तियां कथानक से -
💢 अशुभ कर्म के उदय होने पर सज्जन व्यक्ति भी दुर्जन बन सकता है और शुभ कर्म उदय होने पर दुर्जन व्यक्ति भी सज्जन बन सकता है।
💢 प्रतिकूलता में समभाव में रहे तो निर्जरा की दुकान चालू रहेगी और थोड़ा सा भी दुर्भाव आ गया तो नया टेंडर भरा जाएगा।
💢 संसार मे कही भी चले जाओ तुम्हारा पुण्य और बुद्धि कोई छीन नही सकता है।
💢 जब पाप कर्म का उदय है तो किसी की सही बात भी समझ मे नही आती।



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