सम्यक बोध के आभाव में ये आत्मा भव भ्रमण कर भटकती रहती है। जो जैसा है उसे वैसे ही मानना सम्यक बोध है
ममत्व जैसा बंधन नहीं, सम्यकत्व जैसी साधना नहीं और सिद्धत्व जैसा सुख नहीं
उक्त विचार संयम श्रेष्ठ परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में व्यक्त किये। गुरुदेव ने बताया कि
सम्यक बोध के आभाव में ये आत्मा भव भ्रमण कर भटकती रहती है। जो जैसा है उसे वैसे ही मानना सम्यक बोध है।
ममत्व जैसा बंधन नही, सम्यकत्व जैसी साधना नही और सिद्धत्व जैसा सुख नही।
कर्म उदय से प्राप्त सारी चीजें लीज में मिलती है जो कभी भी वापस चली जाती है, संसार मे दो ही चीज ऐसी है जो आने के बाद कभी जाती नही, एक केवल ज्ञान दूसरी सिद्ध गति।
सिद्ध भगवान और अपनी आत्मा में कोई फर्क नही है सिर्फ कर्मो का अंतर है, क्योकि उन्होंने राग और द्वेष पर विजय प्राप्त की।
व्यक्ति हमेशा कहता रहता है मैंने ये किया, मैने वो किया, मैंने उसका अच्छा किया अरे तेरी क्या औकात है, तूने कुछ नही किया, तू तो सिर्फ एक माध्यम है बाकी तो सब कर्मो का खेल है। और तेरी इसी मैं मैं के कारण तू आज भी भटक रहा है।
नाम, बेनर, प्रतिष्ठा के लिए किसी को दान मत दो, किसी की मदद मत करो, क्योकि किसी का भी नाम तो टिकता नही और ये नाम की चाह, ये मान, अहंकार तुम्हे अंडरग्राउंड में ले जाएगा।
दान 1 रु का दो या 1 करोड़ का बिना नाम के दो तो भले नाम नही बढ़ेगा लेकिन पुण्यवानी जरूर बढ़ेगी।
सेवा करने का मौका मिले तो तत्काल करना, किसी के निमंत्रण का रास्ता मत देखना की कोई कहे तो मदद करू। सहाय का मतलब किसी को पता नही चले और सहायता लेने वाले का मुंह भी नीचा न हो वही वास्तविक सहायता है।
बीज भी जमीन के अंदर अदृश्य होकर ही वटवृक्ष बनता है।
डरना है तो पाप से डरो बाकी किसी के बाप से मत डरो और यदि तुम्हे डर लग रहा है यानी पेट मे पाप पल रहा है।
इसलिये पाप का रास्ता छोड़ो, राग और द्वेष का त्याग करो, जीवन मे धर्म को अधिक स्थान दो तभी आत्मा का कल्याण होगा।


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