8/04/23 चारुवा, प्रवचन
धर्म का प्रेम है तिरा देगा, और संसार का प्रेम है डूबा देगानिर्भय प्रखर वक्ता, शासन प्रभावक, जन-जन की आस्था के केंद्र परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी महाराज साहब ने धर्मसभा में फरमाया
जीव संसार में सुखी होना चाहता है। आदर कदर सम्मान सत्कार प्राप्त करना चाहता है। यश कीर्ति प्राप्त करना चाहता है ज्ञानी भगवन्तों ने बताया कि यह तो सहज ही प्राप्त हो सकता है जैसे खेत में फसल के साथ चारा तो अपने आप ही आ जाता है इसी प्रकार संसार के अंदर सुख, सम्मान, सत्कार, यश कीर्ति चारे के समान है। चारा कब तक टिकता है एक समय के बाद खराब हो ही जाता है। इसी प्रकार आदर सत्कार सत्ता यश कीर्ति संपत्ति का सदुपयोग कर लो नहीं तो यह भी खराब हो जाएगी। इसके लिए एक ही उपाय है ( टिकाने के लिए ) ढाई अक्षर का धर्म, धर्म का प्रेम है तिरा देगा और संसार का प्रेम है डूबा देगा। अगर यह ढाई अक्षर का धर्म जीवन में आ जाए तो देव भी उसे नमस्कार करते हैं। धर्म तो उत्कृष्ट मंगल है पर कौन सा धर्म ? अहिंसा संयम व तप रूप धर्म। जहां किसी भी जीव की धर्म के नाम पर हिंसा ना हो, इंद्रियों का पोषण ना हो। जो तप मात्र कर्म की निर्जरा के लिए हो और ऐसे धर्म में मन रहेगा तो देवता भी नमस्कार करेंगे। आप लोग असली ससुर के सामने व्यवस्थित रहोगे या उनकी फोटो के सामने। असली धर्म में मन नहीं लगता इसलिए लोग नकली धर्म के आगे सिर झुकाते हैं। लक्खण सुधारो तो कल्याण अपने आप ही हो जाएगा। अहिंसा किसे कहते हैं स्वयं के लिए कठोर बनना और दूसरों के लिए कोमल बनाना इसी से जीव का कल्याण हो जाता है।
भगवान महावीर साधना के समय स्वयं के लिए कठोर बन गए थे। सामर्थ्य और शक्ति होने के बाद भी उसका प्रयोग नहीं किया। भगवान शारीरिक व मानसिक उपसर्ग समभाव से सहन करते गए स्वयं कठोर बन गए पर उपसर्ग देने वाले जीवो के प्रति कोमल बन गए कि यह नादान है अज्ञानी है। ज्ञानी होता तो यह ऐसा करते ही नहीं इसे कहते हैं अहिंसा। क्या आपके जीवन में अहिंसा आई है ? दूसरों ने आपके प्रति भूल की तो उस पर रोष करने के बजाए यह सोचो कि यह तो मेरे ही कर्मों का दोष है मेरे ही कर्मों का उदय है। यह लोग तो मात्र निमित्त है।
पुराना पाप आत्मा में होगा तो नया पाप आएगा ही। सिद्ध आत्मा में पाप है ही नहीं तो नए कर्म का बंध होता ही नहीं है और ना ही उदय होता है। किसी के दुर्व्यवहार को देख मन में जो संकल्प विकल्प आता है वह भाव हिंसा है। द्रव्य हिंसा से ज्यादा नुकसान भाव हिंसा से होता है। सत्तर हजार पांच सौ साठ अरब वर्ष का एक पूर्व होता है। ऐसे क्रोड पूर्व की आयुवाला एक हजार योजन लम्बा असन्नी जलचर अपनी पूरी जिंदगी में टनो से मछली खाकर भी पहली नरक से आगे नहीं जा सकता क्योंकि मन नहीं है तो भाव हिंसा नहीं होगी। किन्तु सन्नी तंदुल मच्छ जिसका आयुष्य मात्र अंतर्मुहूर्त का होता है जो उसी मगरमच्छ की आंख पर अपना घर बना लेता है वही एक हजार योजन वाला जिसकी मुंह में हजारों मछली भीतर समा जाती है और मुंह बंद करता है तो बहुत सारी मछलियां बाहर भी निकल जाती है। वह तंदुल मच्छ मगरमच्छ की पलक पर बैठा बैठा सोचता है- कैसा मूर्ख है मैं होता तो सब खा जाता एक को भी नहीं छोड़ता। मात्र अंतरमुहूर्त अर्थात 48 मिनट से भी कम आयुष्य वाला वह मन वाला तंदुल मच्छ सातवी नरक का आयुष बांध लेता है। मन से विशेष कर्म का बंध होता है।
हम स्वयं के नहीं दूसरों के प्रति कठोर बनते आए हैं तभी तो यह स्थिति बनी है। सामयिक, प्रतिक्रमण , दान धर्म सब कर रहे हैं पर विपरीत स्थिति आते ही दूसरे के प्रति कठोर बन जाते हैं। किसी का आयुष बलवान है तो आपके बुरे भाव उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। पुद्गगल के पीछे दुनिया चक्कर लगा रही है चाहे किसी भी रूप में हो सोना, चांदी, चल, अचल संपत्ति। जीव का थोड़ा सा भी कोई नुकसान होगा तो रोद्र रूप धारण कर लेता है। जैसे कोई अपराधी जेल गया। कोर्ट मे उसे न्यायाधीश ने सजा सुना दी। वह जेलर से रोज हंटर खा रहा है पर वहां पर जेलर का क्या दोष ? वह तो अपने पेट के लिए कर रहा था। यदि जेलर या न्यायाधीश उसके प्रति द्वेष के भाव रखते है तो कर्म सत्ता उन्हे पकड़ लेगी और न्यायाधीश और जेलर को भी उनके रोष की सजा देगी। पर हम तो वर्षों से न्यायधीश का काम करते आ रहे हैं राय देते रहते हैं रोष करते आ रहे हैं। उसको ऐसा करना चाहिए उसको वैसा करना चाहिए। वाह रे तू इंस्पेक्टर है क्या ? किसने दी आपको यह डिग्री ? किसी को अगर आपने कुछ ना बोला और मात्र मन में ही बुरे भाव उसके प्रति आए तो आपने अपना ही सीरियल तैयार कर लिया है और भविष्य में वह आपके सामने आ जाएगा। सामने वाले का कुछ भी बिगड़ना नहीं है। इस पांचवें दुखम आरे में कदम कदम पर दुख आएगा ही। अगर कोई डरा रहा है, दबा रहा है आपको दुख पहुंचा रहा है तो वह जेलर है, उसे कर्म सत्ता ने ही भेजा है। स्वयं सोच लो क्या कर रहे हो क्या बनना है। अगर आपने यहां भाव गिराए तो मनुष्य भव से गिर जाएंगे। मैंने उसकी सेवा की उसने मेरी कदर नहीं की। वाह रे मांगीलाल! यह तो धंधा हो गया ना, नेकी कर दरिया में डाल। जो घटना घटित हो रही है उसको सहज रूप में स्वीकार करोगे तो तकलीफ नहीं होगी। सांस ले रहे हो कब से,किसीसे मां के गर्भ से बाहर निकले तब से, कभी विश्राम नहीं किया। कभी सांस लेने में थकान आई क्या ? नहीं, जैसे यह सहज प्रक्रिया है उसमें थकान महसूस नहीं होती वैसे ही जो भी असहज स्थिति आए सामने उसे सहज स्वीकार करो कि मैं ऐसा करके आया हूं इसलिए ये सब हों रहा हैं। मैं भी कोई दूध का धुला नहीं हूं।आज कदम कदम पर दुख है निमित्त कोई भी बन सकता है। चेतन भी बन सकता है। ज्ञानी भगवन बताते हैं कि जो घटना घट रही है उसे सहज रूप से स्वीकार करोगे तो दुख नहीं होगा। अगर आपका पुण्य होगा तो कोई ना कोई रक्षक आ जाएगा, नहीं होगा तो भक्षक आ जाएगा। जो भी हो रहा है आपके कर्मों से हो रहा है। संसार की आधि,व्याधि, उपाधि का यही कारण है। किसी पागल ने आपको गाली दी आप बाजू से निकल गए।आपको दुख नहीं होगा क्योंकि आपने उसे सहज में लिया। किसी समझदार ने गाली दी तो तुरंत आपका चेहरा बिगड़ गया क्योंकि आपने उसे सहज में नहीं लिया, तुरंत गाली ग्रहण कर ली। यह आपके असाता वेदनिय कर्म का उदय है तभी तो गाली सुनने को मिली। असाता वेदनिय कर्म 8 प्रकार से भोगा जाता है अमनोज्ञ 1- रूप 2- शब्द 3- गंध 4-रस 5-स्पर्श 6- मन का दुख, 7-वचन का दुख, 8-काया का दुख।
मौसम के कारण शरीर में बीमारी आई तो असाता वेदनिय कर्म का उदय है। सामने वाले ने गाली देकर अपने कितने कर्म बांध लिए अगर आप उसे सुनकर सहज हो गए मन में क्षमापना के भाव लाए तो आपकी महान निर्जरा। यदि नहीं लाए तो कितना ही कर्ज बढ़ जाएगा। इसलिए यदि कटु शब्द सुनना भी पड़े तो सहज में लीजिए ना पसंद आए तो छोड़ दीजिए। कोई भी आपको कटु शब्द बोले बुराई चुगली करें तो आप भी रॉन्ग नंबर कह दे आगे कर्म नहीं बंधेंगे। नॉनवेज बेचने वाले उन्हें देखकर घृणा मत करिए यह सोचो कि बेचारे ने कैसे कर्म करके आया कि उसे यह काम करना पड़ रहा है। आप भी पूर्व जन्मों में कितने ही ऐसे काम करके आए हो। हो सके तो उसे सही राह पर लाने का प्रयास करें और समझाने की कोशिश करें।
मरना है तो डरना क्यों और सहना है तो कहना क्यों सहन करना है तो इसको उसको क्यों कहना किसी के सामने यदि एक उंगली की तो समझ लेना स्वयं की ओर 3 उंगली है अंगूठा साक्षी के लिए है। सामने वाला 1 गुना खराब तो आप 3 गुना खराब हो। आप चलोगे ट्रेन से तो कर्म चलेंगे प्लेन से इसलिए ज्ञानी भगवंत कहते हैं कि प्रतिकूल परिस्थिति से भागो मत स्वयं को बदलो। जैसे आप भारत में रह रहे हो आपको बीपी है आपने देश बदला तो क्या बीपी की गोली बंद हो जाएगी नहीं। देश कितने ही बदल लो पर शरीर तो वही है। धनचंद और भाईचंद ये विश्वासघात कर सकते है पर करमचंद सदा साथ में रहेगा। तू चल मैं तेरे साथ हूं। खाने में नमक नहीं डाला तो दोष किसका? सामने वाले का, पत्नी का, नहीं। आपके असाता वेदनिय कर्म के उदय से आपको अमनोज्ञ रस की प्राप्ति हुई अर्थात बिना नमक का खाना मिला है। प्रतिकूलता को यदि सहज में स्वीकार कर लिया तो नए कर्म बंध नहीं होंगे। जन्म मरण का चक्र खत्म हो जाएगा।एक व्यक्ति को भी यदि आपने पाप से बचा लिया तो आपका भी बेड़ा पार हो जाएगा।
जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म I
संकलंकर्ता:- कीर्ति पवार, डा. निधि जैन, राजेश मेहता

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