शुद्ध भाव से की गई शुद्ध आराधना से ही मोक्ष प्राप्त होगा
प्रखर वक्ता, परम् पूज्य श्री गुलाबमुनि जी महाराज साहब
समझ के कारण ही जीव सदगति में जाता है और समझ के आभाव में ही जीव दुर्गति में जाता है। अकाम निर्जरा से बंधे हुए पूण्य के कारण ही जीव का मन आश्रव में लगता है लेकिन संवर में बिल्कुल मन नही लगता है।
गुरूदेव ने फरमाया की विटामिन एम (धन) के कारण तुम्हारा घर, गाड़ी, फर्नीचर, रहन सहन में तो परिवर्तन आ जाता है लेकिन लक्खण में परिवर्तन नही आते है और लक्खण बदले बिना उत्थान होने वाला नही है।
सोचो जब एक पागल जब तुम्हे गाली देता है तो तुम्हे गुस्सा नही आता है तुम उसे लेट गो कर देते हो, वहाँ गुस्सा कंट्रोल कर लेते हो, क्योकि वह नासमझ है, पागल है और कोई तुम्हारा अपना ही तुम्हे दो शब्द बोल देता है तो तपेली गर्म कर लेते हो। यानी क्रोध भी तुम्हारी सहूलियत से करोगे। क्योकि पागल पर क्रोध करोगे तो लोग तुम्हे भी पागल बोलेंगे। तो जब यहां तुम कंट्रोल कर सकते हो, तो सब जगह क्यो नही ?
भगवान महावीर ने अपने अनुभव से बताया है कि भाव बदले बिना जीव का उद्धार संभव नही है।
भाव ऐसे बदलो की एक भी जीव के प्रति द्वेष उत्पन्न नही हो। हम थोड़े से दुख से घबरा जाते है, भगवान महावीर पर जितने परिषह आये, उतने यदि तुम पर आ जाये तो भागते फिरोगे। जबकि भगवान ने बड़ी सहजता से, निर्मल भाव से उसे भोगा और मोक्ष की प्राप्ति की। खन्धक मुनि की चमड़ी छिली जा रही थी लेकिन उन्होंने थोड़ा भी रोष, क्रोध या गुस्सा नही किया, भाव को बहुत शुद्ध व उत्कृष्ट रखा, भाव नही बदले, उन्होंने सोचा ये मेरे शरीर को काट सकते है, लेकिन मेरी आत्मा का कुछ बिगाड़ नही सकते, शुद्ध भाव के चलते ही उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति हुई। शुद्ध भाव से की गई शुद्ध आराधना से ही मोक्ष प्राप्त होगा।
अब क्वांटिटी नही क्वालीटी की जरूरत है। धन संग्रहित करने से नही, बाटने से बढ़ता है।
जिसे तीन टाइम भरपेट भोजन मिलता है उसे भोजन की कीमत नही मालूम है, अरे भोजन की कीमत उस गरीब से पूछो जिसे तीन दिन में एक बार भोजन करने को मिला। और जब ऐसा व्यक्ति ह्रदय से दुआ देता है तो पूण्य भी मिलता है और कर्मो का क्षय भी होता है। आप किसी को सौ रु. देकर ये सोचते हो कि ये मेरे रु. से क्या करेगा, अरे तुम तो सद् भावना पूर्वक दान देकर भूल जाओ, नाम और फोटू की चाह मत रखना, सद्भावनापूर्वक दिए हुए दान से निश्चित ही तुम्हारे जीवन का उद्धार होगा।
पुनिया श्रावक रोजाना दो रु कमाता और एक रु. दान देता। फिर बचे हुए एक रु. से भोजन बनाता और उसमें भी आधा दान देता, और तुम सोचो तुम्हारे पास कितना है और तुम क्या दे रहे हो। पूण्य उदय से आज सक्षम हो तो उसका सदुपयोग करना, परोपकार करना तभी गति सुधर पाएगी।


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