धर्म का दास बनो किसी का दास बनने की जरूरत नहीं पड़ेगी। धर्म का दास रहता नहीं कभी कहीं उदास

 22.4. 23, गुड़ी (महाराष्ट्र)


संसार की ऐसी कोई शक्ति नहीं जो दुख को सुख में, सुख को दुख में बदल सके। 

एकमात्र धर्म शक्ति ही ऐसी है जो उदय में आने से पहले कर्मो को परिवर्तित कर सकती हैं।

उक्त बात प्रवचन प्रभावक, प्रखर वक्ता, संयम सुमेरु, परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाब मुनि जी म.सा. ने गुड़ी में धर्म सभा को संबोधित करते हुए फरमाया कि 

भव्य जीवो के कल्याण कामना से चरम तीर्थंकर भगवान महावीर देव ने मोक्ष मार्ग बताया है।                                    

जीव के किए कर्म जीव को स्वयं को भुगतना है।                                   

संसार की ऐसी कोई शक्ति नहीं जो दुख को सुख में, सुख को दुख में बदल सके। एकमात्र धर्म शक्ति ही ऐसी है जो उदय में आने से पहले कर्मो को परिवर्तित कर सकती हैं।

अनंत काल से जीव संसार में इच्छाएं करता चला आ रहा है। आज तक किसी की भी इच्छाएं कभी पूरी हुई नही, होती नही, होगी भी नहीं।                                                                                    

जीव सुखी होने के लिए अनुकूल साधनों को प्राप्त करने की कोशिश करता है, लेकिन फिर भी अनुकुलताए प्राप्त होती नही। फिर क्यों इच्छा पूर्ति के लिए हाय -हाय करते हो ? हाय हाय करने से नए कर्मो का बंध होगा। अपेक्षाएं पूरी होगी नहीं। जहां अपेक्षा वहां उपेक्षा, और उपेक्षा दुख का कारण है। आखिर दुख का निर्माण किसने किया.... स्वयं ने।            

अनुकूलता प्रतिकूलता स्वयं के कर्मों के ही कारण है। 

जीव अनुकूलताओ के लिए अनावश्यक कर्मों का बंध करता है। अभी गर्मी के दिन है थोड़ी सी गर्मी लगी नहीं कि पंखा कूलर AC चालू हो जाता है। ऊपर भी कूल- कूल(cool) अंदर भी कूल -कूल फिर भी जीव कुर-कुर करता ही रहता है।

अहम का शिकार बनकर कभी-कभी जीव ऐसेे कर्मों का बंध करता है कि जिसका तिरस्कार किया हो उसी की शरण में जाना पड़ता है। जिसको दबाया उसी से दबना पड़ता है। सब दिन एक समान नहीं होते हैं भाई अतः क्यों किसी का तिरस्कार करना ? क्यों किसी को दबाना ? कब कैसे कर्म का उदय होगा कुछ नहीं कह सकते।                                 

नौकर अमीर और मालिक गरीब हो सकता है एक ही जीवन में। कर्म सत्ता कब किसको कहां किधर कैसे चाटा मारेगी कुछ नहीं पता। कर्म सत्ता सिग्नल देती है। पुण्य के उदय में कोयले में हाथ डालो, मिट्टी में हाथ डालो तो भी सोना निकलेगा। पाप के उदय में पास रहा पैसा परिजन प्रतिष्ठा भी साथ छोड़ देंगे।

3 प्रकार के उपकारी इनकी उपेक्षा कभी मत करना -

1 जन्म देने वाले माता- पिता 

2 पेट की पढ़ाई कराने वाले गुरु (सेठ शिक्षक)

3 ठेठ की पढ़ाई कराने वाले धर्मगुरु

मीठी जुबान खुला हाथ सारा जहां आपके साथ।

स्वयं का पुण्य और बुद्धि यह दोनों हमेशा आपके साथ रहेगी।

बुद्धि का बल, सत्ता का बल, धन बल, तन बल इन चारों का अहंकार कभी मत करो। जहां तक शक्ति संभव हो इनका सदुपयोग करो। पाप के उदय काल में चारों प्रकार के कष्ट आने लगते हैं। शारीरिक कष्ट, मानसिक कष्ट, आर्थिक कष्ट, पारिवारिक कष्ट।                                                  

गरीब मंदिर के बाहर मांगता है और अमीर मंदिर के अंदर। गरीब तो जिसके पास है उससे मांगता है लेकिन अमीर जिसके पास कुछ नहीं है (मूर्ति )उससे मांगता है। 

धर्म का दास बनो किसी का दास बनने की जरूरत नहीं पड़ेगी। धर्म का दास रहता नहीं कभी कहीं उदास। 

नजर किसी की नहीं लगती स्वयं के कर्मों की लगती है। मान लीजिए किसी के पास खूब धन दौलत संपत्ति है और उसने घमंड कर लिया कि जितने मेरे पास सुख साधन है मेरे रिश्तेदार जान पहचान वालों में नहीं है। इस तरह से मद (घमंड) करने से जो सुख साधन थे वह भी चले जाएंगे। फिर दुख आने पर  लोग कहते फिरते हैं कि अरे! किसी की नजर लग गई किसी ने हमारे घर में कुछ कर दिया। किसी के करने से आपका कभी कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। आपने यदि अशुभ कर्म किए हैं तो ही आपका कुछ बिगड़ सकता है।

हे कर्म! तुझे नहीं शर्म,

तेरा नहीं है कोई धर्म,

जीव जानता नहीं तेरा मर्म

तभी तो 4 गति में हो रहा है गर्म 

एक ही जीवन में कैसी कैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती है। परिस्थितियों को स्वीकार कर नए कर्मों के बंधन से बचते रहे।

जो भूतकाल को रोता नहीं भविष्य से डरता नहीं वह दुखी होता नहीं।

संसार गोल झूले की तरह है कभी नीचे वाला सीधे ऊपर टॉप पर तो कभी ऊपर वाला सीधे नीचे।

आपका स्वभाव अच्छा होगा तो जहां जाओगे वहां शांति होगी और आपका स्वभाव अच्छा नहीं होगा तो जहां से जाओगे वहां शांति होगी। 

दान देने से, बोने से बढ़ता है घटता नहीं। अच्छे कार्य के समय में यदि बुद्धि छोटी और हाथ छोटे हो तो समझना कोई गड़बड़ होने वाली है। 

जो अपना है वह कहीं जाने वाला नहीं जो अपना नहीं है वह रहने वाला नहीं। जो मिलता है वह गमता नहीं जो गमता है वह रहता नहीं। यही तो संसार का स्वभाव है।

जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म 🙏

संकलंकर्ता:- दीपा नितिन जी जैन, खिरकिया

डा. निधि जैन - 9425373110


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

". "div"