,14/3/23 *प्रवचन*
दुख आए तो स्वीकार कर लो हल्का हो जाएगा: परम् पूज्य गुलाबमुनिजी म.सा.
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खिरकिया
प्रवचन प्रभावक,संयम सुमेरु,जन-जन की आस्था के केंद्र, तपस्वीराज पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनि जी महाराज साहब, सेवाभावी पूज्य श्री कैलाश मुनिजी म.सा., पूज्य श्री प्रदीप मुनिजी म. सा., पूज्य श्री अर्पितमुनिजी म.सा., पूज्य श्री कपिलमुनिजी म. सा. ठाणा 5 खिरकिया शेष काल में विराजित रहे, प्रवचन के अंश 14/3/23
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धर्मदास संप्रदाय के प्रवचन प्रभावक, संयमसुमेरु, जन-जन की आस्था के केंद्र, प्रखर वक्ता, आगम एवं कर्म सिद्धांत के ज्ञाता परम् पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी म.सा.ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए फरमाया कि
संसार में तीन तरह की बीमारियां है- आधि, व्याधि, उपाधि
आधि - मन की बीमारी है।
व्याधि - शरीर की बीमारी है।
उपाधि - परिवार और आर्थिक बीमारी है।
यह तीनों बीमारी हर एक जीव को लगी है, जो झोपड़े में रहने वाले को भी और महल में रहने वाले को भी, जितने साधन बढ़ते जा रहे हैं उतनी अशांति बढ़ती जा रही है, साधनों में सुख नहीं सुख तो साधना में मिलेगा जैसा सप्लाई वैसा रिप्लाई अगर कोई सुखी और दुखी बनाता है तो स्वयं के कर्म, पुण्य का उदय हो तो कोई बाल भी बांका नहीं कर पाएगा।
दुख लकड़े जैसा होता है। एक टन का लकड़ा जमीन पर पड़ा है तो आप उसे खिसका नहीं सकते और वही लकड़ा पानी पर पड़ा हो तो एक हाथ से भी खिसका देंगे, क्योंकि लकड़ा पानी से पैदा हुआ है पानी ने उसे स्वीकार कर लिया इसलिए वह हल्का हो गया है वैसे ही दुख आए तो स्वीकार कर लो हल्का हो जाएगा जब तक निमित्त की तरफ उंगली रहेगी तो कर्मबंध होते रहेंगे, सोचो! निमित्त क्यों बना ? आगे सोचो सामने वाला तो आपके लिए निमित्त मात्र है।
यदि आपके पुण्य का उदय हो तो कोई कुछ नहीं कर सकता और आपका पाप का उदय होगा तो निमित्त लग जाएगा।
पत्थर से ठोकर लगी तो पत्थर क्या करें स्वयं का दोष है देखकर चलना था निमित्त को दोष दिया तो मिथ्यात्व है पांच साल की लड़की दो साल के अपने छोटे भाई को गोद में उठा उठाकर घूम रही थी, पसीना पसीना हो रही थी किसी में कहा वजन लगेगा उसे उतार दे, लड़की बोली नहीं उतारूंगा मेरा भाई है, फिर कहा - तू चल नहीँ पाएगी उतार दे वजन बहुत है, लड़की फिर बोली मेरा भाई है नहीं उतारूंगी, क्योंकि वहा अपनापन है इसलिए उसे वजन नहीं लगा।
श्रवण कुमार कावड़ मे अपने अंधे माता पिता को उठाकर पैदल चारों धाम यात्रा करवाई, क्योंकि यहा मां बाप उपकारी हे। जन्म देने वाले ने 9 महीने पेट में रखा।
दुख चार तरह के हैं शारीरिक दुख, मानसिक दुख, पारिवारिक दुख, आर्थिक दुख, एक बहन मेरी पास आई गुरुदेव मैं बहुत दुखी हूं मेरे जैसा दुखी संसार में कोई नहीं I
अब मैं बताता हूं दुख को कैसे कम करें ? मैंने उस बहन से कहा क्या आपके शरीर में कोई बीमारी है ? नहीं तो 25 पर्सेंट दुख तो खत्म। परिवार में सब है उसका मतलब पारिवारिक दुख भी खत्म। मतलब 50 पर्सेंट दुख खत्म। आपके पास कार बंगला गाड़ी है जीवन के साधन है अतः आर्थिक दुख भी नहीं है अतः आपके 75 पर्सेंट दुख खत्म। बचे 25 पर्सेंट वह हमें अपनी मात्र सोच बदलने से खत्म करना है। सामने वाला आपकी क्यों नहीं सुनता स्वयं विचार करें क्योंकि आपके पुण्य की कमी है तो कौन सुनेगा ? आपको नहीं पूछा तो आपका टेंडर नहीं भरेगा l
दुख आए तो उसका स्वागत करें दुख टिकेगा नहीं, पॉजिटिव थिंकिंग से इम्युनिटी पावर बढ़ जाती है बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है इसलिए दुख को स्वीकार करें हाय हाय नहीं करें
धर्मसभा में पूज्य श्री कैलाश मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया
दो दोस्त थे एक जिनवाणी सुनकर आया दूसरा सिनेमा देख कर आया। जो जिनवाणी सुनकर आया उसे रास्ते चलते कांटा लग गया और दूसरा जो सिनेमा देख कर आया उसे ठोकर लगी और पांच सोने के सिक्के मिल गए वह सिनेमा देख कर आया मित्र कहने लगा तू धर्म करके आया तो भी तुझे कांटा लगा और मैं सिनेमा देख कर आया तो भी मुझे सिक्के मिले चल इसका समाधान गुरुदेव से करते हैं। गुरुदेव के पास गए गुरुदेव ने कहा जो जिनवाणी सुनकर आया उसे उस वक्त फांसी लगने वाली थी लेकिन जिनवाणी सुनने से पुण्य का उदय हुआ और सिर्फ कांटा लगने में ही उसका पाप कर्म क्षय हो गया और दूसरा जो सिनेमा देखने गया था उसे 5 गांव का राज्य मिलने वाला था लेकिन सिनेमा देखने से पुण्य क्षय हुआ और मात्र पांच सोने के सिक्के ही मिले। संतो की वाणी सुनेंगे तो सौभाग्य जगेगा।
तीन व्यक्ति गुरु दर्शन करने गए, एक देवीय प्रकृति का, एक मानवीय प्रकृति का और आसुरी प्रकृति का संत ने उपदेश दिया- द द द देवीय प्रकृति वाले ने सोचा द का अर्थ मैं इंद्रियों का दमन करूं, वही मानवीय प्रकृति वाले ने सोचा कि मेँ परीग्रह करता हूं इसलिए द का अर्थ दान करो, वही आसुरी प्रकृति वाले ने सोचा द का अर्थ है मैं जीव पर दया करू। सभी ने द का अर्थ अपने-अपने अनुसार लगाया।
दान का महत्व बताते हुए कहा कि बीज बोया और उसे वापस निकालकर दिखाएंगे तो वह उगेगा नहीं वैसे ही दान देकर बताएंगे तो वह फलीभूत नहीं होगा अतः दान दिए बिना सोना नहीं, दे करके रोना नहीं, देने के बाद कहना नहीं।
संकलनकर्ता🖋️:- रश्मि आनंद श्री श्रीमाल, खिरकिया
डा. निधि जैन - 9425373110


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