हमारी कथनी करनी में बहुत अंतर है, मोक्ष जाने की भावना पर वैसा हमारा आचरण नहीं है:
धर्म जिसमें अहिंसा, सत्य है, वही धर्म सत्य धर्म है
परम् पूज्य श्री गिरीश मुनि म.सा.
खिरकिया 8.1.2023
आचार्य प्रवर श्री उमेशमुनि जी म.सा. प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती श्री हेमंतमुनिजी म.सा., श्री अभयमुनिजी म.सा., श्री गिरीश मुनिजी म.सा. ठाणा 3 सुखसाता पूर्वक खिरकिया स्थानक में विराज रहे है। इस दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रवचन में गिरीशमुनि म.सा. ने कहा कि हमारी कथनी करनी में बहुत अंतर है। मोक्ष जाने की भावना है, पर वैसा हमारा आचरण नहीं है। जैसा बोला वैसा चाल्या उना नाम कौशल्या हमें कौशल्या बनना है, केकई नहीं। मोक्ष मार्ग के 3 उपाय है। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र पांचवा आरा दुखमा आरा है। जहां केवल दुख है, पर हमें फिर भी सुख का अनुभव हो रहा है, पर यह सुख हमारा भ्रम रूप है। वास्तव में मोक्ष का सुख ही वास्तविक सुख है, बिना सम्यकत्व आए जीव मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता जैन किसे कहते है, जो जिन को माने उसमें आस्था रखे वह जैन समय तत्व के 5 लक्षण हैं लेकिन अभवी को भी वे चार लक्षण प्राप्त होते है। वास्तव में मिथ्या दृष्टि जीव गौतम स्वामी जैसी करनी कर नवग्रेवयक तक की यात्रा अनंत बार कर चुका है लेकिन वह मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता धर्म किसे कहते हैं। धर्म को दो भागों में बांटा गया है प्रवृत्ति वादी धर्म और निवृत्ति वादी धर्म हमारा जैन धर्म निवृत्ति वादी धर्म है। धन की प्राप्ति कैसे होती है, भाग्य से और पुनवानी से दुकान पर बैठने से धन प्राप्त नहीं होता धन तो पुनवानी से प्राप्त होता और पुण्य वाणी धर्म से बनती है। संप्रदाय सभी अच्छे है, पर संप्रदाय वाद खराब है। चरित्र आत्माओं ने घर तो छोड़ा पर चारित्र लेकर घर बड़ाने के कारण मूर्छा भाव रखने के कारण अभ्यंतर परिजनों को बड़ाने में लगे हुए है, जो मोह कर्म का पोषण करता है। जब तक वह कर्म का क्षय नहीं होगा तब तक मोक्ष नहीं प्राप्त होगा मोह कर्मों को कर्मों का राजा कहा गया है, जैसे शतरंज के खेल में राजा के जाते ही
खिरकिया 8.1.2023
आचार्य प्रवर श्री उमेशमुनि जी म.सा. प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती श्री हेमंतमुनिजी म.सा., श्री अभयमुनिजी म.सा., श्री गिरीश मुनिजी म.सा. ठाणा 3 सुखसाता पूर्वक खिरकिया स्थानक में विराज रहे है। इस दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रवचन में गिरीशमुनि म.सा. ने कहा कि हमारी कथनी करनी में बहुत अंतर है। मोक्ष जाने की भावना है, पर वैसा हमारा आचरण नहीं है। जैसा बोला वैसा चाल्या उना नाम कौशल्या हमें कौशल्या बनना है, केकई नहीं। मोक्ष मार्ग के 3 उपाय है। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र पांचवा आरा दुखमा आरा है। जहां केवल दुख है, पर हमें फिर भी सुख का अनुभव हो रहा है, पर यह सुख हमारा भ्रम रूप है। वास्तव में मोक्ष का सुख ही वास्तविक सुख है, बिना सम्यकत्व आए जीव मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता जैन किसे कहते है, जो जिन को माने उसमें आस्था रखे वह जैन समय तत्व के 5 लक्षण हैं लेकिन अभवी को भी वे चार लक्षण प्राप्त होते है। वास्तव में मिथ्या दृष्टि जीव गौतम स्वामी जैसी करनी कर नवग्रेवयक तक की यात्रा अनंत बार कर चुका है लेकिन वह मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता धर्म किसे कहते हैं। धर्म को दो भागों में बांटा गया है प्रवृत्ति वादी धर्म और निवृत्ति वादी धर्म हमारा जैन धर्म निवृत्ति वादी धर्म है। धन की प्राप्ति कैसे होती है, भाग्य से और पुनवानी से दुकान पर बैठने से धन प्राप्त नहीं होता धन तो पुनवानी से प्राप्त होता और पुण्य वाणी धर्म से बनती है। संप्रदाय सभी अच्छे है, पर संप्रदाय वाद खराब है। चरित्र आत्माओं ने घर तो छोड़ा पर चारित्र लेकर घर बड़ाने के कारण मूर्छा भाव रखने के कारण अभ्यंतर परिजनों को बड़ाने में लगे हुए है, जो मोह कर्म का पोषण करता है। जब तक वह कर्म का क्षय नहीं होगा तब तक मोक्ष नहीं प्राप्त होगा मोह कर्मों को कर्मों का राजा कहा गया है, जैसे शतरंज के खेल में राजा के जाते ही
खेल समाप्त हो जाता है, वैसे ही मोह कर्म कैसे होते ही शेष घाती कर्म भी अंतर मुहूर्त में क्षय हो जाते है। बाय वन गेट 7 फी अर्थात मोहनिया कर्म हमारी सत्ता से गया तो उसे सातों कर्म निश्चित रूप से चले जाएंगे जैन धर्म किसी जाति विशेष का धर्म नहीं है भाई भी जो धर्म को अपनाएं वह जैन होते हैं और ऐसे जैन जो जनत्व के संस्कार को सुरक्षित नहीं करते वह नाम से जैन है, इतने धर्मों के बीच यदि हमारे धर्म पर हमें श्रद्धा नहीं है तो कोई बात नहीं पहले उस धर्म की परीक्षा करो सत्य के अन्वेषक बनो और जब परीक्षा में वह पूर्ण रूप से खरा उतर जाए फिर उस धर्म पर श्रद्धा करो 20 का नारियल भी हम बजा बजा कर लेते हैं, मटका खरीदना हो तो उसे भी ठोकते बजाते है, फिर धर्म की परीक्षा में हम भला पीछे क्यों रहें वह धर्म जिसमें अहिंसा है सत्य है। वही धर्म सत्य धर्म है जैसे हम जीना चाहते है, वैसे ही दुनिया का हर प्राणी जीना चाहता है इसलिए जहां अहिंसा है। वही सत्य धर्म है।
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